न जातु गच्छेद्धिश्वासे सन्धितोऽपि हि बुद्धिमान।
अद्रोहसमयं कृत्यां वृत्रमिन्द्रः पुरात्त्वद्यीत्।।
हिन्दी में भावार्थ-अगर किसी कारणवश किसी से संधि भी की जाये तो उस पर विश्वास नहीं करना चाहिए। ‘मैं वैर नहीं करूंगा’ यह कहकर भी इन्द्र ने वृत्रासुर को मार डाला था।
अद्रोहसमयं कृत्यां वृत्रमिन्द्रः पुरात्त्वद्यीत्।।
हिन्दी में भावार्थ-अगर किसी कारणवश किसी से संधि भी की जाये तो उस पर विश्वास नहीं करना चाहिए। ‘मैं वैर नहीं करूंगा’ यह कहकर भी इन्द्र ने वृत्रासुर को मार डाला था।
विकारं याति पुत्रो हि राज्यान्नीचः पिता तथा।
तल्लोकवृत्तांन्नृपतेरन्यद्वृत्नं प्रचक्षते।।
हिन्दी में भावार्थ-जिस प्रकार के व्यवहार से पुत्र तथा पिता नीच हो जाता है राजा का ऐसा व्यवहार लोक व्यवहार से भिन्न है।
तल्लोकवृत्तांन्नृपतेरन्यद्वृत्नं प्रचक्षते।।
हिन्दी में भावार्थ-जिस प्रकार के व्यवहार से पुत्र तथा पिता नीच हो जाता है राजा का ऐसा व्यवहार लोक व्यवहार से भिन्न है।
ज्यायांसं सिंहः साहसं यथं मध्नाति दन्तिनः।
तस्मार्तिह इवोदग्रमात्मानं वीक्ष्ण सम्पतेत्।।
हिन्दी में भावार्थ-शक्तिशाली सेना को साथ लिए शत्रु को युद्ध में मारने पर राजा का प्रभाव बढ़ता है। इसी प्रताप के कारण सभी जगह उसके दूसरे शत्रु भी पैदा होते हैं।
तस्मार्तिह इवोदग्रमात्मानं वीक्ष्ण सम्पतेत्।।
हिन्दी में भावार्थ-शक्तिशाली सेना को साथ लिए शत्रु को युद्ध में मारने पर राजा का प्रभाव बढ़ता है। इसी प्रताप के कारण सभी जगह उसके दूसरे शत्रु भी पैदा होते हैं।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-मनुष्य जीवन अद्भुत है और रहस्यमय भी। मनुष्य को अन्य जीवों से अधिक बुद्धि वरदान में मिली है और वही उसकी सबसे शत्रु और मित्र भी है। जहां पशु पक्षी तथा अन्य जीव मनुष्य के एक बार मित्र हो जाते हैं तो फिर शत्रुता नहीं करते मगर स्वयं मनुष्य ही एक विश्वसनीय जीव नहीं है। वह परिस्थितियों के अनुसार अपनी वफादारी बदलता रहता है। अतः यह कहना कठिन है कि कोई मित्र अपने संकट निवारण या स्वार्थ सिद्धि का अवसर आने पर विश्वासघात नहीं करेगा। ऐसे में किसी शत्रु से संधि हो या मित्र से नियमित व्यवहार की पक्रिया उसमें कभी स्थाई विश्वास की अपेक्षा नहीं करना चाहिए।
इसके अलावा एक बात यह भी ध्यान रखना चाहिए कि दूसरे के प्रति कठोरता या हिंसा का व्यवहार न करें। अनेक बार मनुष्य अपने को प्रभावशाली सिद्ध करने के लिये अपने से हीन प्राणी पर अनाचार करता है या फिर हमला कर उसे मार डालता है। इससे अन्य मनुष्य डर अवश्य जाते हैं पर मन ही प्रभावशाली आदमी के प्रति शत्रुता का भाव भी पाल लेते हैं। समय आने पर प्रभावशाली आदमी जब संकट में फंसता है तो वह उनका मन प्रसन्न हो जाता है। इसलिये जहां तक हो सके क्रूर तथा हिंसक व्यवहार से बचना चाहिए।
————-
संकलक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,Gwalior
Editor and writer-Deepak Raj Kukreja ‘Bharatdeep’
http://deepkraj.blogspot.com
————————-
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन