किताबों में प्रकाशित
समूह में एकत्रित शब्द
हमेशा कुछ बोलते हैं।
पढ़ने वालों ने
कितना पढ़ा
कितना समझा पता नहीं
अर्थ की लाचारी कितना छिपायें
उनके शब्द ही राज खोलते हैं।
कहें दीपक बापू बाज़ार के शब्द
कभी ज्ञानहीन होते हैं,
दाम पाने की नीयत में
बड़े ही दीन होते हैं,
यह अलग बात है कि
हृदय में कामनाओं के साथ
सौदागर अर्थहीन शब्द
प्रचार करते डोलते हैं।
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मन में दबी आशायें
खुली आंखों से सपना
देखंने की आदत
मानव को नशा करने का
आदी बना देती हैं।
आकाश में उड़ने की
नाकाम कोशिश
पूरी जिंदगी बर्बादी से
सना देती हैं।
कहें दीपक बापू टूटते हुए
दौलत से ऊब रहे हैं,
बोतलों के नशे में डूब रहे हैं,
उनकी लाचारियां
दिवालियों को भी
दौलतमंद बना देती हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja “”Bharatdeep””
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak ‘Bharatdeep’,Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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