सर्वशक्तिमान के दरबार में
अब वह हाजिरी नहीं लगायेंगे,
कूड़े के इर्द गिर्द झाड़ू
झंडे की तरह लहराकर
प्रतिष्ठा का दान पाकर
शिखर पर चढ़ जायेंगे।
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शहर में कचरा बहुत
उम्मीद है कोई तो आकर
उसे हटायेगा।
कभी अभियान चलेगा
स्वच्छता का
कोई तो झाड़ू झंडे की तरह
लहराता आयेगा।
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पुरानी किताबों में लिखे
शब्दों के अर्थ का व्यापार
वह चमका रहे हैं।
स्वर्ग का सौदा करते
बंदों में सर्वशक्तिमान के दलाल बनकर
नरक के भय से
वह धमका रहे हैं।
कहें दीपक बापू सांसों से
लड़खड़ाते बूढ़े हो चुके चेहरे
इंसानों में पुराने होने के भय से
खंडहर हो चुके ख्यालों को
नया कहकर चमका रहे हैं।
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लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’
लश्कर, ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
hindi poet,writter and editor-Deepak ‘Bharatdeep’,Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com
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