अक्लमंदों को नहीं आता
समाज सुधारने का तरीका
वह नहीं खेद भी जताते।
जात भाषा और धर्म के
नाम पर उठाते मुद्दे
इंसानों में भेद बताते।
कहें दीपक बापू एकता के नाम
चला रहे अपना व्यापार
वही समाज में छेद कराते।
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बरसात का मौसम है
मैंढकों की आवाज
चारों तरफ आयेगी।
कोयल मौन हो गयी
संगीत जैसी सुरीली
आवाज अब नहीं आयेगी।
कहें दीपक बापू शोर कर
छिपाते लोग अपनी कमजोरी,
स्वार्थ से तोड़ते और जोड़ते
प्रेम की डोरी,
झूठ का तूफान उठाते
इस उम्मीद में कि
उनकी सच्चाई दब जायेगी।
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कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’
ग्वालियर, मध्य प्रदेश
कवि, लेखक और संपादक-दीपक “भारतदीप”,ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak “BharatDeep”,Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
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