Tag Archives: हिन्दीसाहित्य

निष्काम भाव में आनंद ही आनंद है-हिन्दी लेख


                                   कर्म तीन प्रकार होता है-सात्विक, राजसी और तामसी। हम यहां राजसी कर्म  फल और गुण की चर्चा करेंगे।  अहंकार, क्रोध, लोभ, मोह तथा काम के वशीभूत ही राजसी कर्म होते हैं। अतः ज्ञानी लोग कभी भी राजसी कर्म में तत्पर लोगों से सात्विकता की आशा नहीं करते। आज के संदर्भ में देखा जाये तो प्रचार माध्यमों में राजसी कर्म में स्थित लोग विज्ञापन के माध्यम से सात्विकता का प्रचार करते हैं पर उनके इस जाल को ज्ञानी समझते हैं।  पंचसितारा सुविधाओं से संपन्न भवनों में रहने वाले लोग सामान्य जनमानस के हमदर्द बनते हैं।  उनके दर्द पर अनेक प्रकार की  संवदेना जताते हैं।  सभी कागज पर स्वर्ग बनाते हैं पर जमीन की वास्तविकता पर उनका ध्यान नहीं होता।  हमने देखा है कि अनेक प्रकार के नारे लगाने के साथ ही वादे भी किये जाते हैं पर उनके पांव कभी जमीन पर नहीं आते।

                                   इसलिये जिनका हमसे स्वार्थ निकलने वाला हो उनके वादे पर कभी यकीन नहीं करना चाहिये। सात्विकता का सिद्धांत तो यह है कि निष्काम कर्म करते हुए उनका मतलब निकल जाने दें पर उनसे कोई अपेक्षा नहीं करे। आजकल के भौतिक युग में संवेदनाओं की परवाह करने वाले बहुत कम लोग हैं पर उन पर अफसोस करना भी ठीक नहीं है।  सभी लोगों ने अपनी बुद्धि पत्थर, लोहे, प्लास्टिक और कांच के रंगीन ढांचों पर ही विचार लगा दी है।  मन में इतना भटकाव है कि एक चीज के पीछे मनुष्य पड़ता है तो उसे पाकर अभी दम ही ले पाता है कि फिर दूसरी पाने की इच्छा जाग्रत होती है।  जिन लोगों को लगता है कि उन्हें सात्विकता का मार्ग अपनाना ठीक है उन्हें सबसे पहले निष्काम कर्म का सिद्धांत अपनाना चाहिये।  किसी का काम करते समय उससे कोई अपेक्षा का भाव नहीं रखना चाहिये चाहे भले ही वह कितने भी वादे या दावा करे।

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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’

ग्वालियर मध्यप्रदेश

Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”

Gwalior Madhyapradesh

संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

athor and editor-Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”,Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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हादसों का अंदेशा हर पल शहर में-हिन्दी कवितायें


 हर पल हादसों का अंदेशा छाया हर शहर में हैं,

इंसान और सामान के खोने का खतरा दिन के हर पहर में है।

कहें दीपक बापू तरक्की का पैमाना कभी नापा नहीं

ऊंचे खड़े बरगद गिरने के किस्से आंधियों के कहर में हैं।

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दायें चलें कि बायें या रुकें कि दौड़ें समझ में नहीं आता,

सड़क पर चलती बदहवास भीड़ चाहे जो किसी से टकराता।

कहें दीपक बापू एक हाथ गाड़ी पर दूसरे में रहता मोबाईल

लोग आंखें से रिश्ता निभायेंगे या कान से समझ में नहीं आता।

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हम सावधानी से चलते हैं क्योंकि घर पर कोई इंतजार करता है,

मगर उसका क्या कहें जो हमारे लिये हादसे तैयार करता है।

कहें दीपक बापू नये सामानों ने इंसान को कर दिया बदहवास

खुद होता है शिकार या दूसरे पर वार करता है।

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 कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

 

कवि, लेखक और संपादक-दीपक “भारतदीप”,ग्वालियर 

poet, writer and editor-Deepak “BharatDeep”,Gwalior

http://rajlekh-patrika.blogspot.com

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संत कबीर वाणी:क्रोध की अग्नि में जलता है संसार


क्रोध अगनि घर घर बढ़ी, जल सकल संसार
दीन लीन निज भक्त जो, तिनके निकट उबार

संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते है कि क्रोध की अग्नि घर घर में जल रही है और उसमें सारा संसार ही जल रहा है। परंतु जो भक्त परमात्मा का स्मरण कर उसमें लीन रहता है उसकी संगति करने से उद्धारा हो सकता है। सत्संग कर ही क्रोध से बचा जा सकता है।

कोटि करम लागे रहै, एक क्रोध की लार
किया कराया सब गया, जब आया हंकार

संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते है कि क्रोध की साथ करोड़ों पाप लगे रहते हैं। जब आदमी अहंकार में आता है तो उसके सब किये कराये पर पानी फिर जाता है।

वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-सच देख जाये आदमी के संकट का कारण क्रोध ही होता है जो उसके अंदर स्थित अहंकार प्रकृति से उत्पन्न होता है। आदमी पहले क्रोध करता है फिर ऐसे काम कर बैठता है जिसका उसे बाद में पछतावा करने का भी अवसर नहीं मिलता। बाद में वह अपने ही क्रोध के उन पलों को यादकर भारी तकलीफ उठाता है, जिसमें उसने वह कर्म किया था। जब क्रोध आये तो अपने आप पर नियंत्रण करने का सरल उपाय जो इन पंक्तियों के लेखक की समझ में आता है वह यह कि जब शरीर में क्रोध की लहर उठती हुई लगे अपने मन में ओम शब्द का स्मरण करना चाहिए या जो हमारा इष्ट है उसकी मूर्ति को अपने मन की आंखों में ध्यान करना चाहिए। इससे क्रोध पर नियंत्रण किया जा सकता है।

रहीम के दोहे:जहाँ छलकपट हो वहाँ नहीं जाएं


रहिमन वहां न आइए, जहां कपट को हेत
हम तन ढारत ढेकुली, सींचत अपनो खेत

कविवर रहीम कहते हैं कि वहां कतई न जाईये जहां कपट होने की संभावना है। रात भर ढेंकली कोई किसान चलाता रहे पर कोई कपटी उसके खेत का पानी अपनी खेत की तरफ कर ले ऐसा भी होता है।

वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-छलकपट तो पहले भी था पर अब तो आधुनिक तरीके आ गये हैं और इस तरह छलकपट होता है कि कई बार पता भी नहीं चलता कि हमने क्या और क्यों गंवाया? पहले तो आमने-सामने ही कपट होता था पर अब तो मोबाइल और इंटरनेट के आने से तो वह व्यक्ति हमारी आंखों के सामने भी नहीं होता जो हमें ठगता है। खासतौर से उन युवक और युवतियों को सजग रहना चाहिए जो अपने लिये जीवन साथी ढूंढते है। यहंा तो इतना झूठ बोला जा सकता है कि जिसे पकड़ना संभव ही नहीं है। कोई छद्म नाम रखकर, किसी बड़े परिवार से संबंध बताकर या अपने को बहुत व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत कर धोखा देना बहुत आसान है। एक की जगह दूसरे की फोटो भी रखी जा सकती है। ऐसे सैंकड़ों मामले हैं। अभी कई लोगों का यह पता भी नहीं होगा कि हिंदी में ब्लाग लिखे जाते हैं और वह इन कपटों की जानकारी बहुत अच्छी तरह रखते हैं। जो लोग इंटरनेट पर सक्रिय हैं उनको नित-प्रतिदिन हिंदी के ब्लाग पढ़ना चाहिए क्योंकि जिस तरह के धोखेबाजी की जानकारी यहां मिल जाती है अखबारों में भी नहीं मिल पाती।

इसीलिये कपट से बचने के लिए जितना हो सके सावधानीपूर्वक अपने संबंध बनाने चाहिए। नई तकनीकी ने आजकल धोखे के नये तरीकों को जन्म दिया है जिससे यह आसान हो गया है कि न नाम का पता चले न शहर की जानकारी हो और किसी से भी धोखे का शिकार जाये।

संत कबीर वाणी:प्रेम बाजार में बिकने वाली वस्तु नहीं है


प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट विकाय
राजा परजा जो रुचे, शीश देय ले जाय

संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि किसी खेत में प्रेम की फसल नहीं होती न किसी बाजार में यह मिलता है। जिसे प्रेम पाना है उसे अपने अंदर त्याग की भावना रखनी चाहिए और इसमें प्राणोत्सर्ग करने को भी तैयार रहना चाहिए।

यह तो घर है प्रेम का, ऊंचा अधिक इकंत
शीश काटि पग तर धरै, तब पैठ कोई संत

संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि प्रेम का घर तो ऊंचे स्थान और एकांत में स्थित होता है जब कोई इसमें त्याग की भावना रखता है तभी वहां तक कोई पहुंच सकता है। ऐसा तो कोई संत ही हो सकता है।

वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-लोग कहते हैं कि ‘अमुक से प्रेम करते हैं’ या ‘अमुक हमसे प्रेम करता है’। यह वास्तव में बहुत बड़ा भ्रम हैं। सच देखा जाये तो अपने जिनके साथ हमारे स्वार्थों के संबंध हैं उनसे हमारा प्रेम तो केवल दिखावा है। प्रेम न तो किसी को दिखाने की चीज है न बताने की। वह तो एकांत में अनुभव करने वाली चीज है। ध्यान लगाकर उस परमपिता परमात्मा का स्मरण करें तब इस बात का आभास होगा कि वास्तव में उसने प्रेम के वशीभूत होकर ही यह हमें मानव जीवन दिया है। उसका हमारे प्रति निष्काम प्रेमभाव है जो हमारे जीवन का रास्ता सहज बनाये देता है। जब हम इसी निष्काम भाव से उसका स्मरण करेंगे तब पता लगेगा कि वास्तव में प्रेम क्या है? जो लोग एक दूसरे के प्रति प्रेमभाव का दिखावा करते हैं व न केवल स्वयं भ्रमित होते है बल्कि दूसरे को भी भ्रमित करते हैं।