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आसमान से रिश्ते तय होकर आते हैं-हिन्दी कविताएँ


उधार की रौशनी में
जिंदगी गुजारने के आदी लोग
अंधेरों से डरने लगे हैं,
जरूरतों पूरी करने के लिये
इधर से उधर भगे हैं,
रिश्त बन गये हैं कर्ज जैसे
कहने को भले ही कई सगे हैं।
————–
आसमान से रिश्ते
तय होकर आते हैं,
हम तो यूं ही अपने और पराये बनाते हैं।
मजबूरी में गैरों को अपना कहा
अपनों का भी जुर्म सहा,
कोई पक्का साथ नहीं
हम तो बस यूं ही निभाये जाते हैं।
————–
लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर, मध्यप्रदेश
writer and editor-Deepak Bharatdeep,Gwalior, madhyapradesh
http://dpkraj.blogspot.com

                  यह आलेख/हिंदी शायरी मूल रूप से इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका’पर लिखी गयी है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन के लिये अनुमति नहीं है।
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नापसंद लेखक, पसंदीदा आशिक-हिन्दी हास्य कविता (rejected writer-hindi hasya kavita)


आशिक ने अपनी माशुका को
इंटरनेट पर अपने को हिट दिखाने के लिये लिए
अपने ब्लाग पर
पसंद नापसंद का स्तंभ
एक तरफ लगाया।
पहले खुद ही पसंद पर किल्क कर
पाठ को ऊपर चढ़ाता था
पर हर पाठक मूंह फेर जाता था
नापसंद के विकल्प को उसने लगाया।
अपने पाठों पर फिर तो
फिकरों की बरसात होती पाया
पसंद से कोई नहीं पूछता था
पहले जिन पाठों को
नापसंद ने उनको भी ऊंचा पहुंचाया।
उसने अपने ब्लाग का दर्शन
अपनी माशुका को भी कराया।
देखते ही वह बिफरी
और बोली
‘‘यह क्या बकवाद लिखते हो
कवि कम फूहड़ अधिक दिखते हो
शर्म आयेगी अगर अब
मैंने यह ब्लाग अपनी सहेलियों को दिखाया।
हटा दो यह सब
नहीं तो भूल जाना अपने इश्क को
दुबारा अगर इसे लगाया।’’

सुनकर आशिक बोला
‘‘अरे, अपने कीबोर्ड पर
घिसते घिसते जन्म गंवाया
पर कभी इतना हिट नहीं पाया।
खुद ही पसंद बटन पर
उंगली पीट पीट कर
अपने पाठ किसी तरह चमकाये
पर पाठक उसे देखने भी नहीं आये।
इस नपसंद ने बिना कुछ किये
इतने सारे पाठक जुटाये।
तुम इस जमाने को नहीं जानती
आज की जनता गुलाम है
खास लोगों के चेहरे देखने
और उनका लिखा पढ़ने के लिये
आम आदमी को वह कुछ नहीं मानती
आम कवि जब चमकता है
दूसरा उसे देखकर बहकता है
पसंद के नाम सभी मूंह फुलाते
कोई नापसंद हो उस पर मुस्कराते
पहरे में रहते बड़े बड़े लोग
इसलिये कोई कुछ नहीं कर पाता
अपने जैसा मिल जाये कोई कवि
उस अपनी कुंठा हर कोई उतार जाता
हिट देखकर सभी ने अनदेखा किया
नापसंद देखकर उनको भी मजा आया।
ज्यादा हिट मिलें इसलिये ही
यह नापसंद चिपकाया।
अरे, हमें क्या
इंटरनेट पर हिट मिलने चाहिये
नायक को मिलता है सब
पर खलनायक भी नहीं होता खाली
यह देखना चाहिये
मैं पसंद से जो ना पा सका
नापसंद से पाया।’’

इधर माशुका ने सोचा
‘मुझे क्या करना
आजकल तो करती हैं
लड़कियां बदमाशों से इश्क
मैंने नहीं लिया यह रिस्क
इसे नापसंद देखकर
दूसरी लड़कियां डोरे नहीं डालेंगी
क्या हुआ यह नापसंद लेखक
मेरा पसंदीदा आशिक है
इसमें कुछ बुरा भी समझ में नहीं आया।’
……………………………..

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हिंदी

बहुत हैं लोग इस जहाँ में झूठे आंसू बहाने वाले -हिंदी गज़ल


बहुत लोग है इस जहां में झूठे आंसू बहाने वाले
वैसे ही उनके साथ होते,नकली हमदर्दी दिखाने वाले
दूसरों के क्या समझेंगे, अपने ही जज्बात नहीं समझते
निगाहें बाहर ही ठहरीं होतीं, अंदर लगे दिल पर ताले
ताकत पाने की चाहत में सभी ने खुद को किया लाचार
हैरान होते हैं वह लोग,बैठे जमाने के लिये जो दर्द पाले
घाव होने पर लोग आंसू बहाते और भरते सिसकियां
सूख तो फिर टकराते उसी पत्थर से, जिसने जख्म कर डाले
जंग की तरह जिंदगी जीने के आदी हो गये है दुनियां के लोग
अमन का पैगाम क्या समझेंगे, सभी है बेदर्द दिल वाले

……………………………..

दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
कवि एंव संपादक-दीपक भारतदीप

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इस तरह अपमान करना कोई कठिन काम नहीं था-आलेख


अमेरिका के राष्ट्रपति पर इराक के एक पत्रकार द्वारा जूता फैंके जाने की घटना को लेकर कुछ लोग जिस तरह उसकी प्रशंसा कर रहे हैं वह हास्यास्पद है। सबसे अजीब बात यह है कि अनेक देशों के पत्रकार उसका समर्थन कर रहे हैं। वह यह भूल रहे हैं कि उसने अपने ही देश के लोगो को धोखा दिया है। वह एक पत्रकार के रूप में उस जगह पर गया था किसी आंदोलनकारी के रूप में नहीं। इतना ही नहीं वहां इराक के प्रधानमंत्री भी उपस्थित थे और वह पत्रकार किसी स्वतंत्रता आंदोलन का प्रवर्तक नहीं था। अगर वह पत्रकार नहीं होता तो शायद इराक के सुरक्षाकर्मी ही उसे अंदर नहीं जाने देते जो कि उसके देश के ही थे।
आज के सभ्य युग में प्रचार माध्यमों में अपना नाम पाने के लिये उससे जुड़+े लोगों को सभी जगह महत्व दिया जाता है और इस पर कोई विवाद नहीं है। टीवी चैनलों के पत्रकार हों या अखबारों के उन जगहों पर सम्मान से बुलाये जाते हैं जहां कहीं विशिष्ट अतिथि इस उद्देश्य से एकत्रित होते हैं कि उनका संदेश आम आदमी तक पहुंचे। कहीं कोई विशेष घटना होती है तो वहां पत्रकार सूचना मिलने पर स्वयं ही पहुंचते हैं। कहीं आपात स्थिति होती है तो उनको रोकने का प्रयास होता है पर वैसा नहीं जैसे कि आदमी के साथ होता है। पत्रकार लोग भी अपने दायित्व का पालन करते हैं और विशिष्ट और आम लोगों के बीच एक सेतु की तरह खड़ होते हैंं। ऐसे में पत्रकारों का दायित्व बृहद है पर अधिकार सीमित होते हैं। सबसे बडी बात यह है कि उनको अपने व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों से परे होना होता है। अगर वह ऐसा नहीं कर पाते तो भी वह दिखावा तो कर ही सकते है। अमेरिका के राष्ट्रपति का विरोध करने के उस पत्रकार के पास अनेक साधन थे। उसका खुद का टीवी चैनल जिससे वह स्वयं जुड़ा है और अनेक अखबार भी इसके लिये मौजूद हैं।

ऐसा लगता है कि अभी विश्व के अनेक देशों के लोगों को सभ्यता का बोध नहीं है भले ही अर्थ के प्रचुर मात्रा में होने के कारण उनको आधुनिक साधन उपलब्ध हो गये हों। जब इराक मेंे तानाशाही थी तब क्या वह पत्रकार ऐसा कर सकता था और करने पर क्या जिंदा रह सकता था? कतई नहीं! इसी इराक में तानाशाही के पतन पर जश्न मनाये गये और तानाशाह के पुतलों पर जूते मारे गयेै। यह जार्ज बुश ही थे जिन्होंने यह कारनामा किया। जहां तक वहां पर अमेरिका परस्त सरकार होने का सवाल है तो अनेक रक्षा विद्वान मानते हैं कि अभी भी वहां अमेरिकी हस्तक्षेप की जरूरत है। अगर अमेरिका वहां से हट जाये तो वहां सभी गुट आपस मेंे लड़ने लगेंगे और शायद इराक के टुकड़े टुकड़े हो जाये। अगर उनके पास तेल संपदा न होती तो शायद अमेरिका वहां से कभी का हट जाता और इराक में आये दिन जंग के समाचार आते।
अमेरिका के राष्ट्रपति जार्जबुश कुछ दिन बाद अपने पद से हटने वाले हैं और इस घटना का तात्कालिक प्रचार की दृष्टि से एतिहासिक महत्व अवश्य दिखाई देता है पर भविष्य में लोग इसे भुला देंगे। इतिहास में जाने कितनी घटनायें हैं जो अब याद नहीं की जाती। वह एक ऐसा कूड़ेदान है जिसमें से खुशबू तो कभी आती ही नहीं इसलिये लोग उसमें कम ही दिलचस्पी लेते हैं और जो पढ़ते है उनके पास बहुत कुछ होता है उसके लिये। घटना वही एतिहासिक होती है जो किसी राष्ट्र, समाज, व्यक्ति या साहित्य में परिवर्तन लाती है। इस घटना से कोई परिवर्तन आयेगा यह सोचना ही मूर्खता है। कम से कम उन बुद्धिजीवियों को यह बात तो समझ ही लेना चाहिये जो इस पर ऐसे उछल रहे हें जैसे कि यहां से इस विश्व की कोई नयी शुरुआत होने वाली है।

चाहे कोई भी लाख कहे एक पत्रकार का इस तरह जूता फैंकना उचित नहींं कहा जा सकता जब वह वाकई पत्रकार हो। अगर कोई आंदोलनकारी या असंतुष्ट व्यक्ति पत्रकार के रूप में घूसकर ऐसा करता तो उसकी भी निंदा होती पर ऐसे में कुछ लोग उनकी प्रशंसा करते तो थोड़ा समझा जा सकता था।

पत्रकार के परिवार सीना तानकर अपने बेटे के बारे में जिस तरह बता रहे थे उससे लगता है कि उनको समाज ने भी समर्थन दिया है और यह इस बात का प्रमाण है कि वहां के समाज में अभी सभ्य और आधुनिक विचारों का प्रवेश होना शेष है। समाचारों के अनुसार मध्य ऐशिया के एक धनी ने उस जूते की जोडी की कीमत पचास करोड लगायी है पर उसका नाम नहीं बताया गया। शायद उस धनी को यह बात नहीं मालुम कि पत्रकार ने अपने ही लोगों के साथ धोखा किया है। वैसे भी कोई धनी अमेरिका प्रकोप को झेल सकता है यह फिलहाल संभव नहीं लगता। अमेरिका इन घटनाओं पर आगे चलकर क्या प्रतिक्रिया व्यक्त करता है यह अलग बात है पर कुछ दिनों में उसी पत्रकार को अपने देश में ही इस विषय पर समर्थन मिलना कम हो जायेगा। अभी तो अनेक लोग इस पर खुश हो रहे हैं देर से ही सही उनके समझ में आयेगी कि इस तरह जूता फैंकना कोई बहादुरी नहीं है। किसी भी व्यक्ति के लिये प्रचार माध्यम से जुड़कर काम के द्वारा प्रसिद्धि प्राप्त करने कोई कठिन काम नहीं है इसलिये उसे धोखा देकर ऐसा हल्का काम करने की आवश्यकता नहीं है। कुछ समय बाद क्या स्थिति बनती है यह तो पत्रकार और उसके समर्थकों को बाद में ही पता चलेगा। मेहमान पर इस तरह आक्रमण करना तो सभी समाजों में वर्जित है और समय के साथ ही लोग इसका अनुभव भी करेंगे।
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मस्तराम के नाम से असत् साहित्य की लोकप्रियता से हिंदी को लाभ नहीं-आलेख


मस्तराम कोई भी हो सकता है। यह किसी का नाम भी हो सकता है और कई लोग अपने अल्हड़ स्वभाव के कारण इसी नाम से पुकारे जाते हैं। अंतर्जाल पर मस्तराम के नाम से कई लोग लिख रहे हैं यह अलग बात है हर कोई अपने साथ अपना नाम या अपना तख्ल्लुस जोड़ देता है।
मैंने एक बार अपने एक ब्लाग में नाम के साथ ही मस्तराम भी जोड़ दिया। वह मेरा एक फालतू ब्लाग था और गूगल के इंडिक टूल मिलने से पहले उस पर लिखकर वहां से कापी कर दूसरे ब्लाग पर पोस्ट करता था। इस दौरान ब्लाग लेखक मित्रों ने विकिपीडिया का हिंदी टूल दिया। उससे कुछ दिन लिखा तो कंप्यूटर खराब हो गया क्योंकि वह पहले ही वाइरस ग्रस्त था। बाद में जब उसका हिंदी टूल लोड किया तो वह अधिक हिंदीमय हो गया था और इसलिये फिर अपने ब्लाग पर ही लिखने लगा। गूगल का इंडिक टूल आने के बाद उसकी जरूरत नहीं रही इसलिये मेरे कम से कम चार फालतू ब्लाग ऐसे ही रह गये। इनमे एक पर उठाकर मस्तराम लिखा और उस पर अपनी रचनाओं पर लेबल लगाने लगा साथ ही कुछ इधर उधर से पोस्ट रखने लगा।

हैरानी की बात यह रही वह मस्तराम नाम धारी ब्लागों में वह हिट पाने लगा। इसी बीच मैंने एक ब्लाग पर मस्तराम के बारे में पढ़ा। पता लगा कि मस्तराम ‘आवारा’ के नाम से हिंदी फोरमों पर जो दो पंजीकृत ब्लाग हैं का नाम भी उनमें शुमार है और उन्होंने इस संबंध में विवाद उठा जो बाद में शांत हो गया। तब मेरी दिलचस्पी इसमें जागी। इसके बाद मैंने अपने मस्तराम के नामधारी ब्लाग की जांच की तो पाया कि चिट्ठाजगत ने उनको अपने यहां रख कर दिखाना शुरू किया। उनमें मेरा वास्तविक नाम था इसलिये चिट्ठाजगत वालों को यह पता था कि यह किसके ब्लाग हैं। उन्होनें मेरे ब्लाग स्पाट के एक और वर्डप्रेस के दो ब्लाग इस तरह मुझसे पूछे बिना रख लिये। चूंकि मैं उनको प्रयोग पर जारी रखे हुए हूं और उन पर कोई नयी पोस्ट नहीं रखता पर जो भी रखता हूं वह चिट्ठाजगत, नारद और हिंदी ब्लाग पर चला जाता है। इसलिये मैंने उनके नाम से मस्तराम हटा लिया पर उसके बाद अन्य ब्लाग पर लिखा। आज पता लगा कि वह भी चिट्ठाजगत वालों ने ले लिया।

मस्तराम अंतर्जाल पर बिना किसी सहायता के हिट पाने का एक उपाय है पर लोग उस पर कोई साहित्य पढ़ने नहीं आते। ऐसा लगता है कि गूगल से जुड़े या अन्य पुराने ब्लाग लेखकों ने अंतर्जाल पर हिंदी को लोकप्रिय बनाने के लिये मस्तराम के नाम से लिखना शुरू किया। गूगल के तो विज्ञापनों में ही इतनी गंदी गालियां लिखी हुईं हैं कि उन्हें यहां कोई लिखना ही नहीं चाहेगा। एक ब्लाग लेखक ने यौन साहित्य लिखा उसमेंं कुछ अश्लील नहीं था पर उसके अनुसार उसके ब्लाग पर व्यस्क सामग्री की चेतावनी आ रही है और किसी ने गूगल को इसकी शिकायत की है उसका यह परिणाम है। मैंने उसे समझाया कि उसकी ब्लाग स्पाट की सैटिंग में गड़बड़ी है वह उसे चेक कर ले। मैंने अपने ब्लागस्पाट के एक ब्लाग पर वह कर देखा था जिससे वह चेतावनी अपने आप आने लगती है। मैंने उसे यह भी लिखा कि उसका ब्लाग क्या किसी का भी ब्लाग गूगल केवल इस कारण बैन नहीं कर सकता क्योंकि उसके विज्ञापनों के शीर्षकों में ऐसी गालियां हैं कि उन्हें कोई सामान्य हिंदी ब्लागर अपने अंदर पाठ में भी नहीं लिख सकता।

मस्तराम कोई असली नाम नहीं हैं और कई छद्म नाम के लोग इस पर लिख रहे हैं। हिंदी का कोई फोरम कभी भी उनको अपने यहां नहीं लिंक देता क्योंकि उनको अपनी श्वेत छबि बनाये रखने के लिये उससे दूर रहना ही श्रेयस्कर लगता है। चूंकि मेरे वह ब्लाग अन्य ब्लाग की तरह सामान्य पाठों हैं इसलिये उनको चिट्ठाजगत वाले लिंक देते हैं। संदेह के घेरे में वह इसलिये हैं कि वह मस्तराम शब्द डालकर ही वहां जाते हैं क्योंकि उन ब्लाग पर जितने भी हिट आये वह इसी शब्द से आये। हिंदी फोरमों पर दिख रहे हिंदी ब्लाग पर कभी कभार मस्तराम के नाम से लिखे जा रहे ऐसे वैसे साहित्य पर चर्चा होती है पर कोई यह नहीं कहता कि हम भी वहां जाते हैं। सच तो यह है कि कई ब्लाग लेखक वह तांक झांक करते हैं नहीं तो मेरे ब्लाग उनके दृष्टिपथ में कैसे आते।

मस्तराम ‘आवारा’ से मैंने जिज्ञासावश एक पूछा था कि उनके ब्लाग पर कितने व्यूज आते हैं। बहुत दिन बाद उन्होंने अपने जवाब में बताया कि प्रतिदिन दोनों ब्लाग पर चालीस से पचास व्यूज आते हैं। जिस दिन पोस्ट नयी होती है उस दिन चारों फोरमों से भी जमकर व्यूज आते हैं। उससे एक बात तो लगी कि मस्तराम वाकई अपने आप में हिट दिलवाने वाला नाम है। वह ब्लाग चेक किये तो उनका पता ही मस्तराम से शूरू है जबकि मैंने जी वगैरह लगाकर पता बनाया है। इसके बावजूद उस पर इतने हिट तो आ ही जाते हैं जो अन्य सामान्य ब्लाग पर नहीं आते। एक बार ख्याल आया था कि मैं भी ऐसा पता बनाऊं पर शब्दलेख सारथी और अंतर्जाल पत्रिका के व्यूज देखकर मन नहीं माना। वह दोनों ही अध्यात्म के दम पर 20 से 25 व्यूज कभी पचास व्यूज तब भी जुटा लेते हैं जब कोई उन पर पाठ नहीं होता। फिर वर्डप्रेस पर मस्तराम की श्रेणी में भी मेरे पास व्यूज आते हैं। इससे एक बात पता लगती है कि मस्तराम नामधारी ब्लाग जमकर हिट ले रहे हैं पर जैसे जैसे हिंदी पर लिखा बढ़ता जायेगा सामान्य जन की रुचि बढ़ेगी और अंततःसत्साहित्य ही हिंदी का सारथी बनेग और उसकी ध्वजपताका अंतर्जाल पर फहरायेगा। मस्तराम आवारा से एक बात और पता लगी कि उन ब्लाग पर टिप्पणियां तभी आती हैं जब वह फोरमों पर होती है। तब मैंने सोचा कि जब मस्तराम शब्द से ही उसके ब्लाग खुल रहा है तो ब्लाग लेखक इतने तो समझदार हैं कि वह वहां टिप्पणियां नहीं लगायेंगे क्योंकि उससे पता लग जायेगा कि वह मस्तराम के इलाके में गये थे।
वैसे हमारे इलाके में मस्तराम का इतना नाम प्रचलित नहीं है पर उस दिन एक आदमी ने बताया कि उसका नाम ऐसी वैसी रचनाओं के लिये खूब जाना जाता है। यही कारण है कि छद्म नाम से ऐसी वैसी रचनायें लिखने वाले वहां अपनी रचनाएं लिख रहे हैं और कुछ भले लोग भी हैं जो इस बात से बेखबर होकर ठीकठाक भी प्रस्तुति के साथ जुड़े हैं। ऐसा लिखने वालों के पुराने ब्लाग लेखकों होने का संदेह इसलिये भी जाता है कि तकनीकी और विज्ञापन की दृष्टि से वह जितना सुसज्तित हैं वह ज्ञान उन्हीं में संभव है। संभवतः हिंदी में लिखे गये वह पहले ब्लाग भी हो सकते हैं क्योंकि मैंने कई पर पांच वर्ष से अधिक पुरानी तारीखें देखीं हैं। मैं वहां अपने पाठकों के आने के मार्ग देखता हुआ वहां जाता हूं और इस दौरान वहां लिख पढ़ता हूं तो सोचता हूं चाहे कितने भी उन पर हिट हों हिंदी भाषा के समृद्धि करने का उनमें सामथर््य नहीं हैं। बहरहाल अब मैं अपने नाम से मस्तराम नहीं हटाऊंगा क्योंकि यह मेरे प्रयोग का हिस्सा है। चिट्ठाजगत वाले हर ब्लाग अपने यहां ले जायेंगे तो मैं किस किसका नाम बदलूंगा। कहीं अगर मस्तराम दीपक भारतदीप पर दृष्टिपथ में आ जाये तो बाद वाला ही नाम पढ़ें क्योंकि पहला नाम तो प्रयोग के लिये है। अगर उनको हटाने से तो मेरे प्रयोग प्रभावित होंगे। बहरहाल अंतर्जाल पर अनेक तरह के नये मसले सामने आते हैं जो केवल यहीं दिख सकते हैं और कहीं नहीं।

यह आलेख ‘दीपक भारतदीप की हिंदी पत्रिका’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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पहले प्रेमपत्र से दूसरा भाया-हास्य कविता


लड़के ने लड़की को प्रभावित करने के लिये
पहले प्रेमपत्र में लिखी कविता और
अपना नाम लिखा प्रेमी
लड़की के लिये प्रिया का संबोधन लगाया
लड़की ने पत्र बिना उत्तर के वापस लौटाया
दूसरे में उसने लिखी शायरी
अपने नाम के साथ आशिक शब्द लगाया
लड़की को आशुका बताया
वहां से प्यार की मंजूरी का पैगाम पाया

पहली मुलाकात में
आशिक ने माशुका से इसका कारण पूछा
तो उसने बताया
‘कविता शब्द से बोरियत लगती है
शायरी में वजन कुछ ज्यादा है
कवियों की कविता तो कोई पढ़ता नहीं
शायरी के फैन सबसे ज्यादा हैं
फिल्मों में शायरों को ही हीरो बनाते हैं
शायरियों को ही बढि़या बताते हैं
कवियों और कवियों का मजाक बनाते हैं
वैसे तो मुझे कविता और शायरी
दोनों की की समझ नहीं है
पर फिल्मों की रीति ही जमाने में हर कहीं है
पहले पत्र में तुम्हारा काव्य संदेश, प्रेमी और
प्रिया शब्द में पुरानापन लगा
दूसरे पत्र में प्यार और शायरी का पैगाम
तुम्हारा आशिक होना और
मुझे माशुका कहने में नयापन जगा
तुम कवि नहीं शायर हो इससे मेरा दिल खुश हुआ
इसलिये मुझे दूसरा प्रेम पत्र भाया
मैंने भी तुम्हें मंजूरी का पैगाम भिजवाया
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क्रिकेट मैच और फिल्म से तो अच्छा है ब्लाग लिखना और पढ़ना-आलेख


क्रिकेट के खिलाड़ी और फिल्म के अभिनेता अभिनेत्रियों के चेहरों और नाम के सहारे ही आजकल देश के सारे समाचार चैनल चल रहे हैं इसमें कोई संदेह नहीं हैं। अगर क्रिकेट का कोई मैच नहीं हो रहा होता है तो भी समाचार चैनल खेलों के समय में खिलाडि़यों की क्रीड़ेत्तर (खेल से अलग) गतिविधियों के समाचार देते हैं-जैसे वह कहां रैम्प पर गया या उसका अभी तक किस किस से प्रेम का संबंध चला। उसी तरह किसी फिल्म अभिनेता या अभिनेत्री की फिल्म नहीं रिलीज हो रही होती तो उसके प्रेम प्रसंग या सामाजिक सेवा की जानकारी फिल्म टाईम में दी जाती है। एक घंटे के समाचार समय में पौन घंटे इन दो क्षेत्रों पर ही व्यय किये जाते हैं। कहते हैं कि बाजार उपभोक्ताओं की मांग पर चलता है पर समाचार चैनल देख ऐसा नहीं लगता कि वह आम दर्शक के भरोसे हैं। उनको विज्ञापन मिल रहे हैं तो वह दर्शकों के कारण नहीं बल्कि अपनी सजावट के कारण मिल रहे हैं।

बहरहाल समाचार चैनलो के लिए खिलाड़ी और फिल्म अभिनेता अभिनेत्रियां एक तरह से प्रचार के लिये माडल हैं। आज भारत से श्रीलंका हार गया तो यह समाचार चैनल (इस लेखक यह जानकारी समाचार चैनलों से ही मिली है) वाले उन पुराने खिलाडि़यों पर बरस रहे है जिनको एक सप्ताह पहले वह मील का पत्थर और अनुभवी बता रहा थे। एक माह पहले तक उनको बीस ओवरीय मैच में न खिलाने पर आलोचना कर रहा थे। आज तो बस वही पुराने खिलाड़ी उनके लिये खलनायक बन गये थे।

‘उनको सोचना चाहिए कि वह अब क्रिकेट खेलना चाहिए या नहीं! केवल नाम के सहारे ही बहुत दूर तक नहीं चला जा सकता।’
‘उन पुराने खिलाडि़यों को अपने आप से पूछना चाहिए कि वह कहां खड़े हैं?’
वगैरह वगैरह। मतलब खिलाड़ी स्वयं तय करें कि उनको आगे खेलना हैं कि नहीं। चयनकर्ता को तो विचार ही नहीं करना चाहिए। यह समाचार चैनल वाले अपीलें कर रहे हैं कि ‘जाओ श्रीमान! आपका खेल पूरा हो गया।‘

चार दिन बाद फिर वह थोड़ा खेल कर दिखायेंगे तो यही कहेंगे कि ‘ साहब वह तो पुराने चावल हैं’। आशय यह है कि दर्शक को अपने हाथ में पकड़े रहना चाहते हैं।

कहते हैं कि आदमी की याद्दाश्त कमजोर होती है।‘ सारे मनोरंजक और जन भावना पर आधारित व्यवसाय इसी तर्क पर चलते हैं पर एक बात जो यह लेखक जोड़ता है कि किसी भी आम आदमी की याद्दाश्त कमजोर होती है पर बुद्धिमानों की नहीं । वैसे आम आदमी की याद्दाश्त भी इतनी कमजोर नहीं होती जितना अपने देश के मीडिया विशेषज्ञ समझते हैे। यह अलग बात है कि नई पीढ़ी के लोग पुराने कारनामों को जान नहीं पाते जबकि वही भावनात्मक रूप से ऐसे ऐसे विषयों से जुड़े होते हैं जो मनोरंजन पर आधारित होते हैं और प्रचार माध्यमों की कमाई का सबसे बड़ा जरिया हैं। इसलिये ऐसे लोगों के व्यवसाय चल जाते हैं, पर अब तो हद ही कर दी है लोगों को भुलक्कड़ समझने की। हाल खिलाड़ी को महान और हाल ही घटिया बताने लगते हैं। उसी तरह जब किसी एक्टर की फिल्म रिलीज होती है तो उसे महान अभिनेता और सामाजिक सेवक बताते हैं और जब वह फंस जाता है किसी मामले में तो उसे खलनायक बताने लगते हैं।

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आशय यह है कि कि यहां कोई अब स्थाई नायक नहीं बन सकता-जो प्रचार माध्यमों के लिये कमाने के लिये एक माडल है चाहे वह कैसा भी हो उसका नाम तो वह रोज लेंगे। टीम हार गयी तो विलाप में भी आधा घंटा और जीत गयी तो खुशी में पोन घंटा समय लगायेंगे। उनको कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि उनको तो उसमें विज्ञापन दिखाने हैं। इसलिये आज अगर कोई नायक है तो कल ही उसे खलनायक कर भी प्रचारित किया जा सकता है। वैसे आम आदमी सब जानते हैं और आपसी बातचीत में प्रचार माध्यमों को केवल पैसे कमाने में संलग्न मानते हैं। कई लोग तो यह साफ कहते हैं कि समाचारों को सनसनीखेज अनावश्यक रूप से बनाया जा रहा है।

ऐसे में जागरुक और पढ़ने लिखने वाले लोगों के लिये अंतर्जाल ही एक जरिया है। अंतर्जाल पर अनेक लेखकों ने लिखस है कि जब से उन्होंनेे यहां लिखना शुरू किया है तब से बाहर टीवी और अखबार में उनका रुझान कम हो गया है। अंतर्जाल पर हिंदी ब्लाग में कई बार ऐसी घटनायें और विचार पढ़ने को मिल जाते हैं जो बाहर नहीं दिखते। हिंदी के ब्लाग दिखाने वाले फोरमों नारद, ब्लागवाणी, चिट्ठाजगत और हिंदी ब्लागस पर सभी हिंदी ब्लाग दिखाये जाते हैं और वहां ऐसे विषय पढ़ने को मिलते हैं जो हम सोच भी नहीं सकते। हालांकि यहां फिल्म और क्रिकेट की चर्चा थोड़ी अजीब लगती है पर लोग उस पर जो प्रतिक्रिया देते हैं उससे भी यह पता चलता है कि आम लोगों में अब इन विषयों पर कम ही रुचि है यह अलग बात है कि प्रचार माध्यम अपनी व्यवसायिक बाध्यताओं के कारण उसे स्वीकार नहीं कर रहे। वह चाहे जब किसी को भी देश के लोगों का हृदय सम्राट बताने लगते है। अभी तो आप देखना आगे कितने देश के हृदय सम्राट बनते और बिगड़ते हैं।
जो लोग इन माध्यमों से बोर हो चुके हैं उनको अब अंतर्जाल पर लिखे जाने वाले ब्लाग पर जरूर आना चाहिये क्योंकि वह अब उनके सामने एक ऐसा साधन बनता जा रहा है जहां वह अपना मन बहला सकें। यहां मित्रता और विवाद दोनों ही इतने दिलचस्प होते हैं कि कई फिल्म वाले भी ऐसी कहानी नहीं लिख सकते। बिना कैमरे के आपके दिमाग में ऐसे दृश्य बनने लगेंगे कि आप हंसेंगें। अगर आप लेखक हैं तो सोने में सुहागा। अपनी कविता या लेख लिखकर पहुंच जाईये इन फोरमों पर। एक बार आदत हो जायेगी तो फिर कहीं और मन लगाने को मन नहीं करेगा। क्रिकेट मैच देखकर अपने देश की हार से दुःखी होना या फिल्म की काल्पनिक कहानी को कोसने से तो अच्छा है ब्लाग लिखें और पढ़ें।

टोपी के व्यापार का शुभारंभ-हास्य व्यंग्य


दीपक बापू बाहर जाने के लिये बाहर निकल रहे थे तो बा (गृहस्वामिनी) ने कहा-‘अभी बिजली नहीं आयी है इसलिये सर्वशक्तिमान के दरबार में दर्शन करने जा रहे हो नहीं तो अभी तक कंप्यूटर पर अपनी आखें झौंक रहे थे।’
दीपक बापू ने कहा-‘कैसी बात करती हो। लाईट चली गयी तो चली गयी। मैं तो पहले ही कंप्यूटर को पर्दा गिराने (शट डाउन) का संदेश भेज चुका था। अपने नियम का मैं पक्का हूं। सर्वशक्तिमान की कृपा है कि मैं ब्लाग लिख पा रहे हूं।
बा ने कहा-‘फंदेबाज बताता रहता है कि तुम्हारे हिट होने के लिये वह कई जगह मन्नतें मांगता है। तुम्हारे फ्लाप शो से वह भी दुःखी रहता है।
दीपक बापू ने कहा-‘तुम भी किसकी बात लेकर बैठ गयी। न वह पढ़ने में न लिखने में। आ जाता है फालतू की बातें करने। हमने कभी अपने फ्लाप रहने की परवाह नहीं की जो वह करता है। जिनके दोस्त ऐसे ही हों वह भला हिट ब्लागर बन भी कैसे सकता है।’

इतने में फंदेबाज ने दरवाजे पर दस्तक दी। दीपक बापू ने कहा-‘और लो नाम शैतान का। अच्छा खासा सर्वतशक्तिमान के दरबार में जा रहा था और यह आ गया मेरा समय खराब करने। साथ में किसी को लाया भी है।’
फंदेबाज उस आदमी को लेकर अंदर आया और बोला-‘दीपक बापू कहीं जा रहे थे क्या? लगता है घर में लाईट नहीं हैं वरना तुम इस तरह जाते नहीं।’
दीपक बापू ने कहा-‘ अब तुम कोई फालतू बात तो करना नहीं क्योंकि हमारे पास समय कम ही है। बताओ कैसे आये? आज हमारा हास्य कविता लिखने का कोई विचार नहीं है।’
फंदेबाज अपने साथ लाये आदमी की तरफ हाथ उठाते हुए बोला-‘ यह मेरा दोस्त टोपीबाज है। इसने कई धंधे किये पर हिट नहीं हो सका। आपको तो परवाह नहीं है कि हिट हैं कि फ्लाप पर हर आदमी फ्लाप होने का दर्द नहीं झेल सकता। इसे किसी तोते वाले ज्योतिषी ने बताया है कि टोपी के धंधे में इसे सफलता मिलेगी। इसलिये इसने झगड़ेबाज की जगह अपना नाम टोपीबाज कर लिया। यह धंधे के हिसाब से अपना नाम बदलता रहता है। यह बिचारा इतने धंधे कर चुका है कि अपना असली नाम तक भूल गया है। अब आप इसके धंधे का शुभारंभ करो। तोते वाले ज्योतिषी ने इसे बताया था कि किसी फ्लाप लेखक से ही उसका शुभारंभ करवाना। लोग उससे सहानुभूति रखते हैं इसलिये तुम्हें लाभ होगा।’

दीपक बापू ने उस टोपीबाज की तरफ दृष्टिपात किया और फिर अपनी टोपी पर दोनों हाथ लगाकर उसे घुमाया और हंसते हुए बोले-‘चलो! यह नेक काम तो हम कर ही देते हैं। वहां से कोई चार छहः टोपी खरीदनी है। इसकी दुकान से पहली टोपी हम खरीद लेंगे। वह भी नगद। वैसे तो हमने पिछली बार छहः टोपी बाजार से उधार खरीदी थी पर वह चुकायी नहीं। जब उस बाजार से निकलते हैं तो उस दुकान वाले रास्ते नहीं निकलते। कहीं उस दुकान वाले की नजर न पड़ जाये। अगर तुम्हारी दुकान वहीं है तो भैया हम फिर हम नहीं चलेंगे क्योंकि उस दुकानदार को देने के लिये हमारे पास पैसा नहीं है। वैसे सर्वशक्तिमान ने चाहा तो इसके यहां से टोपी खरीदी कहीं फलदायी हो गयी तो शायद कोई एकाध ब्लाग हिट हो जाये।
फंदेबाज बोला-‘अरे, तुम समझे नहीं। यह किसी टोपी बेचने की दुकान नहीं खोल रहा बल्कि यह तो ‘इसकी टोपी उसके सिर’ वाली लाईन में जा रहा है। हां, शुभारंभ आपसे करना चाहता है। आप इसे सौ रुपये दीजिये आपको अंतर्जाल का हिट लेखक बना देगा। इसके लिये वह घर पर बैठ कर अंग्रेजी का मंत्र जपेगा अब उसमें इसकी ऊर्जा तो खत्म होगी तो उसके लिये तो कुछ पैसा तो चाहिये न!
दीपक बापू ने कहा-‘कमबख्त, ऐसे व्यापार करने से तो न करना अच्छा। यह तो धोखा है, हम तो कभी हिट लेखक नहीं बन सकते। कहीं ठगीबाजी में यह पकड़ लिया गया तो हम भी धर जिये जायेंगे कि इसके धंधे का शुभारंभ हमने किया था।
फंदेबाज ने कहा-‘तुम्हें गलतफहमी हो गयी है कि इसे सौ रुपये देकर हिट लेखक बन जाओगे और यह कोई अंग्रेजी का मंत्र वंत्र नहीं जपने वाला। सौ रुपये नहीं यह तो करोड़ों के वारे न्यारे करने वाला है। यह तो आपसे शुरूआत है। इसलिये टोकन में सौ रुपये मांग रहा हूं। ऐसे धंधे में कोई पकड़ा गया है आजतक। मंत्र का जाप तो यह करेगा। कुछ के काम बनेंेगे कुछ के नहीं। जिनके बनेंगे वह इसका गुण गायेंगे और जिनके नहीं बनेंगे वह कौन शिकायत लेकर जायेंगे?’
दीपक बापू ने कहा-‘क्या तुमने हमें बेवकूफ समझ रखा है। ठगी के धंधे का शुभारंभ भी हम करें क्योंकि एक फ्लाप लेखक हैं।’
फंदेबाज ने कहा-‘तुम भी चिंता मत करो। कई जगह तुम्हारे हिट होने के लिये मन्नतें मांगी हैं। जब हिट हो जाओगे तो तुमसे किसी और बड़े धंधे का शुभारंभ करायेंगे।’
दीपक बापू ने आखें तरेर कर पूछा-‘तो क्या लूटपाट के किसी धंधे का शुभारंभ करवायेगा।’
बा ने बीच में दखल दिया और बोली-‘अब दे भी दो इस बिचारे को सौ रुपये। हो सकता है इसका ध्ंाधा चल निकले। कम से कम फंदेबाज की दोस्ती का तो ख्याल करो। हो सकता है अंग्रेजी के मंत्रजाप करने से आप कंप्यूटर पर लिखते हुए हिट हो जाओ।’
दीपक बापू ने सौ का नोट टोपीबाज की तरफ बढ़ा दिया तो वह हाथ जोड़ते हुए बोला-‘आपके लिये तो मैं सचमुच में अंग्रेजी में मंत्र का जाप करूंगा। आप देखना अब कैसे उसकी टोपी उसके सिर और इसकी टोपी उसके सिर पहनाने का काम शुरू करता हूं। घर घर जाकर अपने लिये ग्राहक तलाश करूंगा। कहीं न कहीं कोई समस्या तो होती है। सभी की समस्या सुनकर उनके लिये अंग्रेजी का मंत्र जपने का आश्वासन दूंगा जो अच्छी रकम देंगे उनके लिये वह जपूंगा और जो कम देंगे उनका फुरसत मे ही काम करूंगा।’
बा ने कहा-‘महाराज, आप हमारे इनके लिये तो आप जरूर अंग्रेजी का मंत्र जाप कर लेना। अगर हिट हो गये तो फिर आपकी और भी सेवा कर देंगे। आपका नाम अपने ब्लाग पर भी चापेंगे (छापेंगे)
अपना काम निकलते ही फंदेबाज बोला-‘अच्छा दीपक बापू चलता हूं। आज कोई हास्य कविता का मसाला मिला नहीं। यह दुःखी जीव मिल गया। अपने धंधे के लिये किसी फ्लाप लेखक की तलाश में था। यह पुराना मित्र है मैंने सोचा तुमसे मिलकर इसका काम करा दूं।’
दीपक बापू ने कहा-‘कमबख्त, इतने करोड़ो के बजट वाला काम शुरू किया है और दो लड्डे भी नहीं ले आये।’
फंदेबाज ने झुककर बापू के मूंह के पास अपना मूंह ले जाकर कहा-‘यह धंधा किस तरह है यह बताया था न! इसमेें लड्डू खाये जाते हैं खिलाये नहीं जाते।’
वह दोनो चले गये तो बा ने दोनों हाथ उठाकर ऊपर की तरफ हाथ जोड़कर कहा-‘चलो इस दान ही समझ लो। हो सकता है उसके अंग्रेजी का मंत्र से हम पर कृपा हो जाये।’
दीपक बापू ने कहा-‘यह दान नहीं है क्योंकि यह सुपात्र को नहीं दिया गया। दूसरा कृपा तो सर्वशक्तिमान ही करते हैं और उन्होंने कभी कमी नहीं की। हम तो उनकी कृपा से ब्लाग लिख रहे हैं उसी से हीं संतुष्ट हैं। फ्लाप और हिट तो एक दृष्टिकोण है। कौन किसको किस दृष्टि से देखता है पता नहीं। फिर अंतर्जाल पर तो जिसका आभास भी नहीं हो सकता उसके लिये क्या किसी से याचना की जाये।’
बा ने पूछा-‘पर यह मंत्र जाप की बात कर रहा था। फिर धंधे की बात कर रहा था समझ में नहीं आया।’
दीपक बापू ने कहा-‘इसलिये तो मैंने उसे सौ रुपये दे दिये कि वह तुम्हारी समझ में आने से पहले निकल ले। क्योंकि अगर तुम्हारे समझ में आ जाता तो तुम देने नहीं देती और बिना लिये वह जाता नहीं। समझ में आने पर तुम फंदेबाज से लड़ बैठतीं और वह पैसा लेकर भी वह अपना अपमान नहीं भूलता। फिर वह आना बंद कर देता तो यह कभी कभार हास्य कविताओं का मसाला दे जाता है उससे भी हाथ धो बैठते। यह तो सौ रुपये का मैंने दंड भुगता है।’
इतने में लाइट आ गयी और बा ने कहा-‘लो आ गयी बिजली! अब बैठ जाओ। फंदेबाज ने कोई मसाला दिया हो तो लिख डालो हास्य कविता।’
दीपक बापू ने कहा-‘अब तो जा रहे सर्वशक्तिमान के दरबार में। आज वह कोई मसाला नहीं दे गया बल्कि हमारी हास्य कविता बना गया जिसे दस को सुनायेगा। अभी तक हमने उसकी टोपी उड़ायी है आज वह उड़ायेगा।
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सुख अनुभूति की शक्ति भी होना चाहिए-आलेख


 

सुख सभी चाहते हैं पर क्या उसकी कभी अनुभूति कोई कर पाता है? कर पाता है तो कितनी? यह प्रश्न अक्सर मेरे मस्तिष्क में आता है।
सुबह सैर को निकले लोग आपस में बाते कर रहे हैं-‘वह मेरा किरायेदार बहुत बदमाश है। उसकी बीबी ढंग से मकान की सफाई नहीं करती।
इस गर्मी में सुबह कुछ पल चलती ठंडी हवा का अहसास तक वह चारों लोग नहीं कर पा रहे। ताजी हवा  उनके अंदर जा रही है पर वह उसके आनंद की अनुभूति उनसे कोसों दूर है।

एक कह रहा है कि-‘‘यार, आजकल के किरायेदार होते ही ऐसे है। हम इतनी मेहनत के मकान बनवाते हैं और वह लोग थोड़ा पैसा क्या देते हैं जैसे अपने आपको मकान मालिक समझने लगते हैं’।

इस समय वह एक ऐसे पेड़ के पास से निकले जहां गुलाब के फूल लगे हैं।  मगर वह उसकी तरफ देख नहीं पाये। उनका मकान उनका पीछा करता हुआ चल रहा है। पक्षियों के चहचहाने की आवाज उनके कानों में जा रही है पर वह क्या उसे सुनकर उसका सुख क्या उठाते है?

सुबह के जो कीमती पल हैं जिसमें पूरे दिन के लिये अपने तन, मन और विचारों के लिऐ ऊर्जा ऐकत्रित की जा सकती है वह उसे गंवाते जा रहे है। सबके चेहरे बुझे हैं क्योंकि चिंताएं सुबह से ही उनके साथ हो गयी है।

वह पार्क में खड़ा है। मै भी खड़ा होकर सुबह की हवा का आनंद ले रहा हूं।  उससे थोड़ा परिचय है। मैं उसे देखकर मूंह फेरने का प्रयास करता हूं। मुझे वहां तालाब के किनारे शांति से घूमने की इच्छा है। वह मेरे पास आता है।

‘आप उधर ही रहते है’? उसने सवाल किया
‘हां’-मैंने संक्षिप्त जवाब दिया।
‘आप यहां घूमने रोज आते होंगे।’उसने फिर पूछा
मैंने कहा-‘नहीं केवल छुट्टी के दिन आता हूं।’
वह बोला-हां, अच्छा करते हैं। लोग कहते हैं कि सुबह घूमने से लाभ होता है, पर मुझे नहीं लगता। मैं रोज हवा खाने निकलता हूं पर मेरा मन नहीं लगता।’

मैंने कहा-‘‘मैं भी पहले रोज आता था। मुझे शांति मिलती थी। हां, अब योग साधना की वजह से देर हो जाती है और अब नहा धोकर मंदिर जाते हुए कभी कभी यहां आता हूं।’
उसने उत्सुकता से पूछा-‘‘योग साधना से मन को शांति मिलती है।
मैने कहा-‘नहीं! बिल्कुल नहीं।
वह हैरान होकर मुझे देखने लगा। मैंने कहा-‘‘दरअसल मैं पूरे दिन शांति और अशांति और दुःख और सुख से परे हो जाता हूं। अपने काम करता रहता हूं। शांति का पता तो तब चले जब अशांति का अनुभव हो। सुख तो तब लगे जब दुःख ने छू लिया हो। मै तो तब भी विचलित नहीं होता जब बुखार मुझे घेर लेता है। मुझे पता है कि यह थोड़ी देर बाद अपने आप उतर जायेगा।

मै चल पड़ा। वह कहने लगा-‘आजकल गर्मी बहुत है। पानी की परेशानी है।’
मैने उससे कहा-‘तुम गर्मी की चिंता इस समय मत करो। इंतजार करा,े सूर्य का ताप बढ़ने वाला है। अभी तो इस ठंडी हवा को अपने मन में आने की जगह दो।
उसने पूछा-‘‘कैसे?’
मैने कहा-‘कल सुबह साढ़े पांच बजे उधर पार्क में चले जाना। वहां लोग योग साधना करते हैं। वह तुम्हें सिखा देंगे। अगर तुम आना चाहो तो मैं भी कल आ जाऊंगा।’

उसने कहा-‘नहीं रात को हम देर से सोते हैं। हालांकि आठ बजे घर आ जाते हूं, पर आपस में बातें करते हुए रात का एक बज जाता है। सुबह सात बजे से पहले मै उठ नहीं पाता। अभी देखिये आठ बजने को हैं।’
मैं उससे कहना चाहता हूं कि जब रात को इतना सुख उठा चुके हो तो फिर सुबह किस सुख की तलाश में यहां आये हो, पर नहीं कह पाता। सोचा बहस ख्वाख्वाह बढ़ जायेगी।
मैं चलते चलते मंदिर की तरफ मुड़ जाता हूं। उससे और अधिक बात करना मुझे ऐसे  लगा जैसे कि वह मेरे को सुबह ही थका देगा। अपनी थकावट वह अपने साथ लेकर निकला है।

कभी फूलों के पास खड़े होकर खुशबू को सूंघ कर देखें। अगर वह नाक से होती हुई पूरे शरीर में घूमती अनुभव न हो, पक्षियों के चहचहाने की आवाज अगर कान से होकर मस्तिष्क के अंतिम छोर तक जाती न लगे और जब हरे-भरे पेड़ों का दृश्य अगर हृदय को प्रभावित न करता लगे तो समझ लो कि सुख तुम्हारी अनुभूति से परे है।

कई बार मन में आता है कि ‘मेरा अमुक काम हो जाये तो मन को शांति मिलेगी‘ या ‘मेरे को अमुक वस्तु मिल जाये तो जीवन सुखमय हो जायेगा‘। बेकार की सोच है। ऐसा होता तो इस समय धरती पर ही स्वर्ग होता। अगर तुम्हारे अंदर  सुख की अनुभूति शक्ति नहीं है तुम्हें कोई सुखी नहीं बना सकता। नाक से आगे सुंगध, आंख से आगे दृश्य और कान से आगे स्वर अगर नही बढ़ता तो इसका मतलब यह है कि आदमी में सुख अनुभव करने की शक्ति नहीं है। इन अंगों को सफाई करने की आवश्यकता है और प्राणायाम के अलावा कोई इस सुख की अनुभूति करने की शक्ति नहीं पा सकता है।

सुबह उठो और पद्मासन में बैठकर सांस को खींचो। अपनी दृष्टि (ध्यान) भृकुटि पर रखो और सांस धीरे-धीरे लेकर छोड़ते रहो। अनुभव करो कि तुम्हारे तन, मन और विचारों के विकास निकल रहे हैं। सुख की अनुभूति की शक्ति अर्जित करने का यही इकलौता साधन है। 

 

दर्द की बजाय लिखना पसंद है संघर्ष पर


अंतर्र्जाल पर मैं लिखता हूं इसका अर्थ यह कदापि नहीं लिया जाना चाहिए कि मै किसी उच्च मध्यम परिवार से हूं। सत्य तो यह है कि मेरा जन्म निम्न मध्यम वर्ग में हुआ और बोर्ड की परीक्षा के बाद भी मैंने मजदूरी की और ठेला चलाया। जिस दुकान पर मैं नौकरी करता था वह थोक की दुकान थी और सामान दूसरी दुकान पर पहुंचाने के लिये मुझे कई बार ठेला चलाना पड़ता था। यह बात मैने अपने पिताजी से भी छिपाई थी। कई बार मेरे पैरों में कीलें घुसकर खून निकाल चुकीं हैं। अपने उस नौकरी के दौरान भी दोपहर जब मैं घर पर आता था तो लिखता था-उसमें कोई पीड़ा नहीं बल्कि जीवन के प्रति आशावाद होता था। आज नहीं तो कल मेरा होगा-यह विश्वास मेरे जीवन की अनमोल पूंजी रहा है।

मैं आजकल आपने काम पर स्कूटर पर जाता हूं पर मेरा साइकिल से अभी भी नाता हैं। मेरा काम भी अब शारीरिक श्रम करने का नहीं है पर फिर मैं उसमें कोई अपनी तरफ से नहीं रखता। शारीरिक श्रम करने वाले को बेचारा या गरीब कहना शायद कुछ लोगों को सहज लगता है पर मुझे नहीं। इसलिये जो लोग गरीब के दर्द पर कहानियां या कविताएं लिखकर वाह’-वाह जुटाते हैं उनमें मेरी रुचि नहीं रही। इस देश में परिश्रम करने वालों की कमी नहीं है पर वह भी ऐसे दर्द भरी रचनाओं को पसंद नहीं करते। हां, एसी कमरों तथा होटलों के भोजन करने वालों को एकांत में बैठकर उनके हृदय में ऐसी संवेदनशील रचनाएं दर्द का रस पैदा करतीं हैं तो वह खुश हो जाते हैं। दर्द भी एक रस है और जिनके पास सब कुछ है पर दर्द नहीं है वह इस रस से वंचित रहते हैं और इसी कारण उनको गरीबों के दर्द पर बनीं फिल्में और रचनाएं पसंद आती हैं। हमारे देश के कुछ विख्यात फिल्मकार और लेखक इसी दर्द के सहारे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त कर चुके हैं पर उनको यहां कोई पूछता भी नहीं था। हां, जब उनको इस देश से बाहर ख्याति मिली तो यहां भी उनको पुरस्कारों प्रदान किये गये पर आम आदमी भावनात्मक रूप से कभी उनसे नहीं जुड़ा।

मैने एक मजदूर के रूप में देखा है मुझे रोटी या सहानुभूति की नहीं सम्मान और प्यार की आवश्यकता होती है और ऐसे में और लोगों की बात क्या करें अपने भी पीछे हट जाते हैं। अपने जीवन में हर चीज अपने परिश्रम से बनाते हुए मैंने एक बात देखी है कि गरीब और मजदूर के दर्द और भावनाओं पर कुछ लोग व्यापार करते हैं। भले ही उनको पैसा अधिक नहीं मिलता पर सम्मान और नाम उन्होंने खूब कमाया। किसी गरीब मजदूर के बीमार होने पर उस पर कुछ असली तो कुछ नकली कथा लिखकर लोगों को दर्द का रस बेचा।
मैं अपनी कविताओं और कविताओं के हमेशा संघर्ष के भाव इसलिये स्थापित कर पाता हूं क्योंकि मेरा यह अनुभव रहा है कि परिश्रम करने से आत्मविश्वास बढ़ता है। इस देश में गरीब और मजदूर के कल्याण के नारे लगाने वाले बुद्धिजीवियों का लंबे समय तक वर्चस्व रहा है और उन्होंने शैक्षणिक तथा सामाजिक संस्थानों इस तरह घुसपैठ कर ली कि उनके ढांचे से बने समाज में लोग आज भी दर्द के रस में प्रफुल्लित होना चाहते हैं-उनमें आत्मविश्वास की कमी है क्योंकि वह परिश्रम नहीं करते और इसलिये दर्द का रस उनमे पैदा ही नहीं होता। जिनके पास धन की कमी है उन्हें जीवित रहने के लिये संघर्ष करना पड़ता है और बीमारी और अन्य सामाजिक संकटों में भी उसे कोई संवेदना न तो कोई देता है न वह चाहता है। वह थोड़ा सम्मान और प्रेम चाहता है और वह कोई नहीं देता।

मेरी पत्नी कई बार ठेला वालों से सामान खरीदते समय मोलभाव करती है तो मैं उसे मना करते हुए कहता हूं कि-‘यह मेहनत कर रहा है तो समाज पर उसे उपकार ही समझो क्योंकि अगर वह ऐसा न करता तो पेट पालने के लिये अपराध भी कर सकता है।’

यह मेरे अंदर मौजूद कोई दर्द नहीं है बल्कि यह अपने जीवन संघर्ष के अनुभव से मिला एक यथार्थ है। अपने जीवन के संघर्ष में मैंने इस बात का अनुभव किया है कि अधिकतर लोग परिश्रम इसलिये करते हैं कि उनका सम्मान किसी के पैरो के तले कुचला न जाये। मैं यह दावा भी नहीं करता कि मैं परिश्रम करने वालों के प्रति मै बहुत संवेदनशील हैं क्योंकि इसका अर्थ यह है कि उनके श्रम को कम कर देखना।
मै आजकल इतना शारीरिक श्रम नहीं करता। जब मैं जमकर शारीरिक श्रम करता था तब भी मै हास्य व्यंग्य लिखता था और जब भी कभी पसीना नहा जाता हूं तब भी मुझे वैसा ही लिखने में मजा आता है। इसलिये जिन लेखकों को यह भ्रम हो कि वह दर्द पर लिखकर लोकप्रियता अर्जित करेंगे उन्हें इस भ्रम का निवारण कर लेना चाहिए। इस देश के परिश्रम करने वाला भी वैसा ही अच्छा पढ़ना चाहता है जैसा कभी कभी कुर्सियों पर काम करने वाले लोग-जो दर्द की फिल्म देखकर या रचना पढ़कर उसके रस से प्रफुल्लित हो जाते है-कभी पढ़ने को इच्छुक होते हैं। इसलिये मुझे दर्द की बजाय संघर्ष पर लिखना पसंद है।

यह नहीं बता सकते कि हिट होगा कि फ्लाप-हास्य कविता


फंदेबाज के घर के दौरे पर
पहूंचे तो उसकी मां अपना नवजात  पोता
दिखाते हुए बोली
‘‘ दीपक बापू.मेरा यह पोता है
तुम्हारे इस दोस्त के बेटे से
हम सास-बहु परेशान हो गये हैं
जब  भी चलते है रात को
टीवी पर अच्छे कार्यक्रम
तब मचाता है चीख पुकार
बाकी समय सोता है
इसका बाप भी उस समय
तुम्हारे घर पर गप्पें हांक रहा होता है
तुम्हारे कंप्यूटर पर ज्योतिष  हो तो
बता दो इसका आगे क्या होता है’

सुनकर पहले टोपी उतारी और फिर
सिर खुजलाया
पर कुछ समझ में नहीं आया
तब फंदेबाज बोला-‘‘ अब यहां तो कंप्यूटर है नहीं
तुम्हारा दिमाग तो बस वहीं चलता है
जब देखो वहीं जाने को मचलता है
असामजिक हो गये हो
जब से यह ब्लाग बनाया
पता नहीं हमारी माताश्री का
प्रश्न तुम्हारी समझ में आया कि नहीं आया
मैरे ही सबको बताया कि
तुम्हारे कंप्युटर में ज्योतिष भी होता है

ब्लाग का नाम सुनते ही बाछें खिल उठीं
और कुर्ते में हाथ डालकर
कंप्यूटर की तरह नचाते हुए बोले
‘‘मित्र देखो
ब्लाग का नाम सुनकर यह भी खामोश हो गया
और हमारा मस्तिष्क भी शूरू हो गया
एक बरस से हमारे ब्लाग लिखते समय
आकर तुम बैठ जाते हो
फिर उसी पर अपनी पत्नी से बतियाते हो
उसका ही असर हुआ है
सास-बहु के धारावाहिकों से उकताऐ
कई लोग ब्लाग लिखने आ गये ं
हम और तुम भी तो कोई रास्ता न मिलने पर
वहीं विचरने आ गये
शायद यह भी बहुत बोर हुआ होगा
जब इन सीरियलों को शोर हुआ होगा
सामाजिकता के नाम  पर अपराध की कथा दिखाते
पता नहीं किससे लिखवाते
तुम्हारा यह लड़का ब्लाग प्रिय लगता है
और भविष्य में चमकेगा
अ-आ पढ़ते ही वहां आ धमकेगा
तुम हम पर कसते हो रोज फब्तियां
यह लगा देगा अंतर्जाल पर अपने नाम की तख्तियां
मगर तुम्हारा क्या होगा
अगर लिखने लगा यह तुम पर
हमारी तरह हास्य कविताएं
बाकी आगे इस भविष्य हम क्या बताएं
अब यह तो हम नहीं कह सकते कि
यह पाएगा जोरदार हिट
या हमारी तरह फ्लाप होता है
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आपसी संपर्क में लिपि बाधक-आलेख


पिछले दिनों मैंने हिन्दी ब्लोग में पाकिस्तानी ब्लोगरों की चर्चा पढी है. पाकिस्तान के कुछ अंग्रेजी ब्लोगरों की हिन्दी में चर्चा होना तो ठीक है पर उनको पाकिस्तान की जनता के मन का सही वैचारिक प्रतिनिधि मानना ठीक नहीं क्योंकि वहाँ भी बहुत सारे अंतर्विरोध हैं.
अभी भारतीय ब्लोगरों और पाकिस्तानी ब्लोगरों में कोई बृहद स्तर पर संपर्क नहीं हुआ है पर इसकी आगे संभावना बन सकती है। एक दो पाकिस्तानी ब्लोगरों से अंतर्जाल पर संपर्क हुआ है पर वह नियमित नहीं है। भाषा तो नहीं लिपि की समस्या इसमें बाधक है। वह मुझसे अरेबिक लिपि में चाहते हैं और मैं लिख नहीं पाता। रोमन लिपि में हिन्दी या उर्दू पढ़ना है ऐसे ही जैसे हक्लाकर पढ़ना। मैंने दूसरी क्लास तक सिन्धी देवनागरी भाषा में हुई थी. हालांकि मैंने अपना लेखन हिन्दी भाषा में ही शुरू किया पर मेरे एक मित्र हैं वह मुझसे सिन्धी में लिखने का आग्रह करते थे और उन्हीं के सुझाव पर मैंने वर्डप्रेस में सिन्धी देवनागरी का ब्लोग बनाया. उसमें टेग जो लगाए वह पाकिस्तान के कुछ उर्दू, अंग्रेजी और सिन्धी भाषी ब्लोगरों के मिल गए. उनमें कुछ ने संपर्क किया पर वह अधिक चल नहीं पाता क्योंकि लिपि के बहुत बड़ी बाधा है, पर उनके अंग्रेजी ब्लोग पढ़ने में आते है तो समझ पाता हूँ. वैसे मुझे देवनागरी में भारतीयों से भी कमेन्ट मिले हैं.
कल मैंने पाकिस्तानी ब्लोगरों के बारे में एक पोस्ट पढी । वह लेख बहुत अच्छा है पर जिस तरह भारतीय ब्लोगरों को काम आँका जा रहा है वह ठीक नहीं है क्योंकि पाकिस्तानी ब्लोगरों को इस समय विश्व में इतनी अहमियत मिल रही है तो केवल इसलिए कि उनके अन्य प्रचार माध्यम बहुत कमजोर हैं और उनको दबाया जा रहा है। भारत में ऐसा कुछ नहीं है। दूसरा वहाँ विश्व की नजरें लगीं हुईं हैं और इसलिए उनके ब्लोग अंतर्जाल पर खोजे जाते हैं। एक अन्य बात यह कि पाकिस्तान के जिन ब्लोग की चर्चा हो रही हैं वह अंग्रेजी के हैं। पाकिस्तान में उर्दू, सिन्धी और पंजाबी भाषा में भी ब्लोग हैं, और वर्डप्रेस के टेग के जरिये वहाँ जाता हूँ। अंग्रेजी पढ़ सकता हूँ पर लिख नहीं सकता पर रोमन लिपि में संयुक्त बोली(हिन्दी और उर्दू) से संपर्क हो सकता है। इन सबके बीच मेरे दिमाग में ख्याल आता है कि क्या हम ऐसा नहीं कर सकते कि हम उनका उर्दू में लिखा पहले रोमन में करें और फिर हिन्दी में ऐसे ही वह भी करें। हमारे देश में हिन्दी ब्लोग के चार फोरम हैं और उनमें कुछ विशेषज्ञ अगर इस बारे में कुछ जानते हों तो बताएं। हाँ, एक बात बिलकुल साफ है मैं वहाँ के अंग्रेजी ब्लोगरों की बजाय वहाँ के प्रचलित भाषाओं के ब्लोग लेखकों से संपर्क की बात कर रहा हूँ। पहले भी ब्लोगर-इनमें में मैं भी शामिल हूँ- वहाँ के अंग्रेजी ब्लोगरों को वरीयता देते हैं। एक वजह और भी है कि पाकिस्तानी ब्लोगर अपनी बात भारत में पहुंचाना चाहते हैं इसलिए शायद अंग्रेजी में अधिक लिखते हैं और वह कभी यह अपेक्षा भी करते दिखते हैं कि उनके भारत के ब्लोगरों से संपर्क बढ़ें। कम से कम मैंने उनके ब्लोग पर भारत विरोधी या कट्टरपंथ से संबंधित सामग्री नहीं देखी अगर कुछ ब्लोगरों ने रखी हो तो मुझे पता नहीं है।

अपने देश के अंदरूनी हालातों से वह जूझते पाकिस्तानी ब्लोगर मुखर हैं, सच तो यह है कि लोकतंत्र के लिए उनको संघर्ष करना पड़ रहा है, जिसे हम भारतीय ब्लोगर शायद ही अनुभव कर सकें। इसलिए उनका लिखा अगर कहीं छपता है तो आश्चर्य की बात नहीं है।

इसके बावजूद अगर उनकी बात अगर हम अपनी चौपालों पर कर रहे हैं तो क्या हम इस बात पर विचार कर सकते हैं कि स्वाभाविक संपर्क कैसे कायम हो? मैं अपने जिस ब्लोग पर देवनागरी और रोमन दोनों लिपि (सिन्धी भाषा) में अपनी पोस्ट रखता हूँ और वह पाकिस्तान में एक ब्लोग पर लिंक है और पाकिस्तानी ब्लोग में मेरा जिक्र भी किया गया है। हिन्दी के ब्लोगरों के लिए यह सूचना देना जरूरी है कि उनके बीच में सक्रिय दो लोग हैं जिन्होंने पाकिस्तान के ब्लोगरों के ब्लोग पर कमेंट रखें और पाए हैं पर मेरे लिए लिपि की वजह से आगे बढ़ना मुश्किल है। एक बात मुझे लगती है कि आज नहीं तो कल भारत के विशेषज्ञ कोई ऐसा टूल निकल लेंगे और दोनों के बीच जो संपर्क ब्लोगर करेंगे वह और कोई नहीं कर सकता। हो सकता है कि अंग्रेजी के कुछ जानकार लोग वहाँ के ब्लोगरों से संपर्क कर लें पर जब तक यह संपर्क संयुक्त बोली में नहीं होगा तब तक मजा नहीं आएगा-क्योंकि ऐसे में मुझ जैसे अंग्रेजी न जानने वाले या कम जानने वाले ब्लोगर के लिए करने को कुछ अधिक नहीं बचता है।

जैसा हम चाहें वैसा लिख और दिख:कविता साहित्य


मेरा लिखा शब्द तेरे लिखे शब्द से भारी
मैंने जो पढा व्याकरण
तेरी भाषा भी उसमें सिमट जायेगी सारी
मेरी भाषा का तू भी हो जा आज्ञाकारी
ऐसी सोचे वाले कहते हैं कि
‘जैसा हम कहते हैं वैसा तू लिख
जैसा चाहें वैसा तू दिख’

अपने अहंकार की देखी
कई बार नाकामी
दो हजार सात तक झेली गुलामी
अभी तक छूटी नहीं वह बदनामी
फिर भी अपना नाम करने की खातिर
चाहे जब अकड़ दिखाते
अपने इलाके के शेर कहलाने वाले
हरिणों की तरह चहकते लोगों पर
अपने अस्तित्व का रुतवा जताते
पड़ जाये तगड़ा विदेशी शिकारी तो
उसके आगे नतमस्तक हो जाते
हाथ उठाकर मांगते उसकी मेहरबानी
और अपने असहाय आदमी पर गुर्राते
‘जैसा हम कहते हैं वैसा तू लिख
जैसा चाहें वैसा तू दिख’

अपनी संस्कृति, भाषा, और विचारधारा
के करते ढेर सारे दावे
कई वाद रचते
उनकी तरफ से कई नारे लगते
इससे आगे उनकी समझ नहीं जाती
कुछ आगे पूछों तो
इतिहास की किताबों में लिखे
खंडहर जैसे शब्द उठाकर दिखाते
‘हम ऐसे थे’ और वैसे थे”
अब का हाल पूछो तो लड़ जाते
बस एक ही बात दोहराते
‘जैसा हम कहते हैं वैसा तू लिख
जैसा चाहें वैसा तू दिख’

भाषा, संस्कृति और विचारधारा का
स्वरूप कभी स्पष्ट नहीं किया
किसी ने जो कुछ सुनाया
अपने रास्ते का नाम वही रख दिया
सदियों से चलता सिलसिला
जब थमने लगता है
वह उठा लेते हैं पत्थर की शिला
‘जैसा हम कहते हैं वैसा तू लिख
जैसा चाहें वैसा तू दिख’
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चाणक्य नीति:जिससे कुछ मिलने की आशा हो उससे मधुर व्यवहार करें


1.जिसके मन में पाप है, वह सौ बार तीर्थ स्नान करने के बाद भी पवित्र नहीं हो सकता, जिस प्रकार मदिरा का पात्र जल पर भी शुद्ध नहीं होता.
*यहाँ चाणक्य के कथन का आशय यह है कि बाहरी स्नान करने से मन मन शुद्ध नहीं होता, जब तक मन में पवित्रता नहीं हो.
2.जिसके प्रति सच्चा प्रेम हैं वह दूर रहते हुए भी समीप रहता है। इसके विपरीत जिससे लगाव नहीं है वह आदमी पास रहते हुए भी दूर रहता है। यह एक वास्तविकता है कि मन के लगाव के बिना आत्मीयता का भाव बन ही नहीं सकता है।
3.जिस किसी व्यक्ति से मिलने की संभावना है उससे सदैव मधुर व्यवहार करना चाहिऐ। उदाहरण के लिए मृग का शिकार करने की इच्छा रखने वाला चालाक शिकारी उसके आसपास रहकर मधुर स्वर में गीत गाता रहता है ।
4.अगर तुम्हें लोगों में अपना सम्मान बनाए रखना है तो किसी के सामने किसी की बुराई नहीं करो .

5.विद्या की शोभा उसकी सिद्धि में है । जिस विद्या से कोई उपलब्धि प्राप्त हो वही काम की है।
6.धन की शोभा उसके उपयोग में है । धन के व्यय में अगर कंजूसी की जाये तो वह किसी मतलब का नहीं रह जाता है, अत: उसे खर्च करते रहना चाहिऐ

जिन्दगी की दो छाप, हिट और फ्लॉप


हिट होने से होती है खुशी
पर चिंताएं भी बहुत हो जाती हैं
अपने मन की फिर कहाँ रह जाती फिक्र
बस इसी चिंता में बंधी बंधाई
लकीर पर चलते जाते कि
सभी जगह हो हमारा जिक्र
आसान राह भी दुर्गम हो जाती है

फ्लॉप होने के ढेर सारे फायदे
चाहे जैसे प्रयोग करो
चाहे जैसे बनाओ कायदे
मन की राह पर चलने की सुविधा
केवल फ्लॉप लोगों के हिस्से ही आती है

कहैं दीपक बापू
कभी मैदान में आ जाएं
कभी दर्शक दीर्घा में बैठ जाएं
मन की मर्जी के मालिक है
पिटते है मोहरे शतरंज में
पर कई बार पैदल भी
वजीर बन जाएं
हारें या जीतें खेल में तो
बस मस्ती आती है
पहले ही फ्लोट तो अब कहाँ गिरेंगे
इन्तजार का फल मीठा होता है
कभी तो दिन फिरेंगे
हिट होकर भी मर्जी से वही चल पाते
जो फ्लॉप होने से नहीं घबडाते
यह जिन्दगी तो ऊबड़-खाबड़ सड़क है
कभी हिट के सीखकर पर बिठाती
कभी फ्लॉप के गढ्ढे में गिराकर
जिन्दगी का मतलब सिखाती है
इसकी दो ही हैं छाप
एक हिट दूसरा फ्लॉप

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