वह होंगे स्वामी
हम ताकेंगे,
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वह होंगे स्वामी
हम ताकेंगे,
कवि, संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
हलवाई कभी अपनी मिठाई नहीं खाते
फिर भी तरोताजा नज़र आते हैं।
बेच रहे हैं जो सामान शहर में
उनकी दवा और सब्जी शामिल हैं जहर में
कहीं न उनके मुंह में भी जाता है
मग़र गज़ब है उनका हाज़मा
ज़हर को अमृत की तरह पचा जाते हैं।
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सुनते हैं हर शहर में
दूध, दही और सब्जी के साथ
ज़हर बिक रहा है,
फिर भी मरने वालों से अधिक
जिंदा लोग घूमते दिखाई दे रहे हैं,
सच कहते हैं कि
पैसे में बहुत ताकत है
इसलिये नोटों से भरा है दिल जिनका
बिगड़ा नहीं उनका तिनका
बेशर्म पेट में जहर भी अमृत की तरह टिक रहा है।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
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जिनकी दौलत की भूख को
सर्वशक्तिमान भी नहीं मिटा सकता,
लोगों के भले का जिम्मा
वही लोग लेते हैं,
भूखे की रोटी पके कहां से
वह पहले ही आटा और आग को
कमीशन में बदल लेते हैं।
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गरजने वाले बरसते नहीं,
काम करने वाले कहते नहीं,
फिर क्यों यकीन करते हैं वादा करने वालों का
को कभी उनको पूरा करते नहीं।
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कवि, संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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वह खून की होली खेलकर
लाल क्रांति लाने का सपना दिखा रहे हैं,
भरे पेट उनके रोटी से
खेल रहे हैं
बेकसूरों की शरीर से निकली बोटी से,
हैवानियत भरी सिर से पांव तक उनके
वही गरीबों के मसीहा की तरह नाम लिखा रहे हैं।
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गोली का जवाब गोली ही हो सकती है
जानवरों से दोस्ती संभव है,
अकेले आशियाना बनाकर
जीना भी बुरा नहीं लगता
पर हैवानों से समझौता कर
अपनी अस्मिता गंवाना है,
लड़ने के लिये उनको
फिर लाना कोई नया बहाना है,
कत्ल करने के लिये तत्पर हैं जो लोग,
उनको है खूनखराबे का रोग,
कत्ल हुए बिना वह नहीं मानेंगे,
जिंदा रहे तो फिर बंदूक तानेंगे,
सज्जन होते हैं ज़माने में
असरदार उन पर ही मीठी बोली हो सकती है।
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कवि, संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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