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सबसे अधिक कायर लोग नायक बनाये जाते हैं-हिन्दी हास्य व्यंग्य कवितायें


कायरों की सेना क्या युद्ध लड़ेगी
सबसे अधिक कायर लोग नायक बनाये जाते हैं।
कुछ खो जाने के भय से सहमे खड़े है
भीड़ में भेड़ों की तरह लोग,
चिंता है कि छिन न जायें
तोहफे में मिले मुफ्त के भोग,
इसलिये लुटेरे पहरेदार बनाये जाते हैं।
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अब तो पत्थर भी तराश कर
हीरे बनाये जाते हैं,
पर्दे पर चल रहे खेल में
कैमरे की तेज रोशनी में
बुरे चेहरे भी सुंदरता से सजाये जाते हैं।
ख्वाब और सपनों के खेल को
कभी हकीकत न समझना,
खूबसूरत लफ्ज़ों की बुरी नीयत पर न बहलना,
पर्दे सजे है अब घर घर में
उनके पीछे झांकना भी मुश्किल है
क्योंकि दृश्य हवाओं से पहुंचाये जाते हैं।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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व्यंग्य भी होता है एक तरह से विज्ञापन-हास्य व्यंग्य


उस दिन उस लेखक मित्र से मेरी मुलाकात हो गयी जो कभी कभी मित्र मंडली में मिल जाता है और अनावश्यक रूप विवाद कर मुझसे लड़ता रहता है। हमारी मित्र मंडली की नियमित बैठक में हम दोनों कभी कभार ही जाते हैं और जब वह मिलता है तो न चाहते हुए भी मुझे उससे विवाद करना ही पड़ता है।
उस दिन राह चलते ही उसने रोक लिया और बिना किसी औपचारिक अभिवादन किए ही मुझसे बोला-‘‘मैंने तुम पर एक व्यंग्य लिखा और वह एक पत्रिका में प्रकाशित भी हो गया। उसमंें छपने पर मुझे एक हजार रुपये भी मिले हैं।’

मैंने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए अपना हाथ बढ़ाते हुए उससे कहा-‘बधाई हो। मुझ पर व्यंग्य लिखकर तुमने एक हजार रुपये कमा लिये और अब चलो मैं भी तुम्हें होटले में चाय पिलाने के साथ कुछ नाश्ता भी कराता हूं।’
पहले तो वह हक्का बक्का होकर मेरी तरफ देखने लगा फिर अपनी रंगी हुई दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए बोला-‘‘बडे+ बेशर्म हो। तुम्हें अपनी इज्जत की परवाह ही नहीं है। मैंने तुम्हारी मजाक बनाई और जिसे भी सुनाता हूं वह तुम हंसता है। मुझे तुम पर तरस आता है, लोग हंस रहे हैं और तुम मुझे बधाई दे रहे हो।’’

मैंने बहुत प्रसन्न मुद्रा में उससे कहा-‘तुमने इस बारे में अन्य मित्रों में भी इसकी चर्चा की है। फिर तो तुम मेरे साथ किसी बार में चलो। आजकल बरसात का मौसम है। कहीं बैठकर जाम पियेंगे। तुम्हारा यह अधिकार बनता है कि मेरे पर व्यंग्य लिखने में इतनी मेहनत की और फिर प्रचार कर रहे हो। इससे तो मुझे ही लाभ हो सकता है। संभव है किसी विज्ञापन कंपनी तक मेरा नाम पहुंच जाये और मुझे किसी कंपनी के उत्पाद का विज्ञापन करने का अवसर मिले। आजकल उन्हीं लोगों को लोकप्रियता मिल रही है जिन पर व्यंग्य लिखा जा रहा है।
मेरा वह मित्र और बिफर उठा-‘‘यार, दुनियां में बहुत बेशर्म देखे पर तुम जैसा नहीं। यह तो पूछो मैंने उसमें लिखा क्या है? मैंने गुस्से में लिखा पर अब मेरा मन फटा जा रहा है इस बात पर कि तुम उसकी परवाह ही नहीं कर रहे। मैंने सोचा था कि जब मित्र मंडली में यह व्यंग्य पढ़कर सुनाऊंगा तो वह तुमसे चर्चा करेंगे पर तुम तो ऐसे जैसे उछल रहे हो जैसे कि कोई बहुत बड़ा सम्मान मिल गया है।’’
मैंने कहा-‘’तुम्हारा व्यंग्य ही मुझे बहुत सारे सम्मान दिलायेगा। तुम कुछ अखबार पढ़ा करो तो समझ में आये। जिन पर व्यंग्य लिखे जा रहे हैं वही अब सब तरह चमक रहे हैं। उनकी कोई अदा हो या बयान लोग उस पर व्यंग्य लिखकर उनको प्रचार ही देते हैं। वह प्रसिद्धि के उस शिखर पर इन्हीं व्यंग्यों की बदौलत पहुंचे हैं। उनको तमाम तरह के पैसे और प्रतिष्ठा की उपलब्धि इसलिये मिली है कि उन पर व्यंग्य लिखे जाते रहे हैं। फिल्मों के वही हीरो प्रसिद्ध हैं जिन पर व्यंग्य लिखे जा रहे हैं। जिस पर व्यंग्य लिखा जाता है उसके लिये तो वह मुफ््त का विज्ञापन है। मैं तुम्हें हमेशा अपना विरोधी समझता था पर तुम तो मेरे सच्चे मित्र निकले। यार, मुझे माफ करना। मैंने तुम्हें कितना गलत समझा।’’

वह अपने बाल पर हाथ फेरते हुए आसमान में देखने लगा। मैंने उसके हाथ में डंडे की तरह गोल हुए पत्रिका की तरफ हाथ बढ़ाते हुए कहा-‘देखूं तो सही कौनसी पत्रिका है। इसे मैं खरीद कर लाऊंगा। इसमें मेरे जीवन की धारा बदलने वाली सामग्री है। तुम चाहो तो पैसे ले लो। तुम बिना पैसे के कोई काम नहीं करते यह मैं जानता हूं, फिर भी तुम्हें मानता हूं। मैं इसका स्वयं प्रचार करूंगा और लोग यह सुनकर मुझसे और अधिक प्रभावित होंगे कि मुझ पर व्यंग्य लिखा गया है।’’

उसने अपनी पत्रिका वाला हाथ पीछे खींच लिया और बोला-‘मुझे पागल समझ रखा है जो यह पत्रिका तुम्हें दिखाऊंगा। मैंने तुम पर कोई व्यंग्य नहीं लिखा। तुमने अपनी शक्ल आईने में देखी है जो तुम पर व्यंग्य लिखूंगा। मैं तो तुम्हें चिढ़ा रहा था। इस पत्रिका में मेरा एक व्यंग्य है और उसका पात्र तुमसे मिलता जुलता है। तुम सबको ऐसे ही कहते फिरोगे कि देखो मुझ पर व्यंग्य लिखा गया है। चलते बनो। मैंने जो यह व्यंग्य लिखा है उसका पात्र तुमसे मिलता जुलता जरूर है पर उसका नाम तुम जैसा नहीं है।’

मैंने बनावटी गुस्से का प्रदर्शन करते हुए कहा-‘‘तुमने उसमें मेरा नाम नहीं दिया। मैं जानता हूं तुम मेरे कभी वफादार नहीं हो सकते।’’

वह बोला-‘मुझे क्या अपनी तरह अव्यवसायिक समझ रखा है जो तुम पर व्यंग्य लिखकर तुम्हें लोकप्रियता दिलवाऊंगा। तुम में ऐसा कौनसा गुण है जो तुम पर व्यंग्य लिखा जाये।’

मैंने कहा-‘‘तुम्हारे मुताबिक मैं एक गद्य लेखक नहीं बल्कि गधा लेखक हूं और मेरी पद्य रचनाऐं रद्द रचनाऐं होती हैं।’’
वह सिर हिलाते हुए इंकार करते हुए बोला-‘नहीं। मैंने ऐसा कभी नहीं कहा। तुम तो अच्छे गद्य और पद्यकार हो तभी तो कोई उनको पढ़ता नहीं है। मैं तुम्हें ऐसा प्रचार नहीं दे सकता कि लोग उसे पढ़तें हुए मुझे ही गालियां देने लगें।
मैंने कहा-‘तुम मेरे लिऐ कहते हो कि मैं ऐसी रचनाऐं लिखता हूं जिससे मेरी कमअक्ली का परिचय मिलता है।’
उसने फिर इंकार में सिर हिलाया और कहा-‘मैंने ऐसा कभी नहीं कहा। तुम तो बहुत अक्ल के साथ अपनी रचनाएं लिखते हो इसी कारण किसी पत्र-पत्रिका के संपादक के समझ में नही आती और प्रकाशन जगत से तुम्हारा नाम अब लापता हो गया है। फिर मैं अपने व्यंग्य में तुम्हारा नाम कैसे दे सकता हूं।

मेरा धीरज जवाब दे गया और मैंने मुट्ठिया और दंात भींचते हुए कहा-‘फिर तुमने मुझे यह झूठा सपना क्यों दिखाया कि मुझ पर व्यंग्य लिखा है।’
वह बोला-‘ऐसे ही। मैं भी कम चालाक नहीं हूं। तुम जिस तरह काल्पनिक नाम से व्यंग्य लेकर दूसरों को प्रचार से वंचित करते हो वैसे मैंने भी किया। तुमने पता नहीं मुझ पर कितने व्यंग्य लिखे पर कभी मेरा नाम लिखा जो मैं लिखता। अरे, तुम तो मेरे पर एक हास्य कविता तक नहीं लिख पाये।’

मैंने आखिर उससे पूछा-‘पर तुमने अभी कुछ देर पहले ही कहा था कि‘तुम पर व्यंग्य लिखा है।’

वह अपनी पत्रिका को कसकर पकड़ते हुए मेरे से दूर हो गया और बोला-‘तब मुझे पता नहीं था कि व्यंग्य भी विज्ञापनों करने के लिये लिखे जाते हैं।’
फिर वह रुका नहीं। उसके जाने के बाद मैंने आसमान में देखा। उस बिचारे को क्या दोष दूं। मैं भी तो यही करता हूं। किसी का नाम नहीं देखा। इशारा कर देता हूं। हालत यह हो जाती है कि एक नहीं चार-चार लोग कहने लगते हैं कि हम पर लिखा है। किसी ने संपर्क किया ही नहीं जो मैं उन पर व्यंग्य लिखकर प्रचार करता। अगर किसी का नाम लिखकर व्यंग्य दूं तो वह उसका दो तरह से उपयोग कर सकता है। एक तो वह अपनी सफाई में तमाम तरह की बातें कहेगा और फिर अपने चेलों को मुझ पर शब्दिक आक्रमण करने के लिये उकसायेगा। कुल मिलाकर वह उसका प्रचार करेगा। इसी आशंका के कारण मैं किसी ऐसे व्यक्ति का नाम नहीं देता जो इसका लाभ उठा सके। वह मुझे इसी चालाकी की सजा दे गया।
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दीपक भारतदीप

उनका नाम ही दरियादिल हो जाता-कविता


अपने दिल का बयां कभी कभी

दूसरे के अल्फाजों में नजर आता है

वह दिल को छू जाता है

इसलिए कहते हैं

दर्द और खुशी दोनो ही

बांट लिया करो दोस्तों से
 
जश्न का मौका हो तो

मजा हो जाता दुगुना

गम आधा रह जाता है

खोये रहोगे अपने ही दिल में

तो रोशनी कहीं से नहीं आयेगी

जो सुनोगे किसी और की आवाज

तभी कोई मिलेगा आसरा

वरना कहते हैं कि

अकेला चना कभी भाड़ नहीं फोड़ पाता है

अपने लिये तो जिंदा हैं सब

बांटकर खाते हैं जो लोगों से मिलकर

उनका नाम ही दरियादिल हो जाता है
……………………….

इस ब्लाग (पत्रिका) की पाठक संख्या बीस हजार के पार


12 दिसंबर 2007 को इस हजार की संख्या पार कर चुके इस ब्लाग ने कल बीस हजार की पाठक संख्या को पार कर लिया। इस संख्या को पार करने वाला यह मेरा  दूसरा ब्लाग है।
इस ब्लाग के साथ मेरी दिलचस्प याद जुड़ी हुई है। ब्लागस्पाट पर टाईप करते हुए यूनिकोड में अपनी पहली पोस्ट छोटी कविता के रूप  में इसी पर रखी-क्योंकि मुझे उसमें बड़ी पोस्ट लिखने में दिक्कत आ रही थी-और सबसे पहला कमेंट भी इस पर आया। उससे पहले मैंने सभी तीनों ब्लाग पर कृतिदेव की पोस्ट रखी थी और मैं मानकर चल रहा था कि अब उसी से आगे जाना है। जब कुछ ब्लाग  लेखक उन ब्लाग पर मुझसे यूनिकोड में लिखने को कह रहे थे तो भी मैं उसकी परवाह नहीं कर रहा था। ऐसे में कोई महिला ब्लाग लेखिका (जिससे  बाद में  फिर संपर्क नहीं हो सका) ने मुझे इस  बारे में ईमेल भेजकर रोमन हिंदी में लिख रही थी कि मेरे ब्लाग पढ़ने मेंे नही आ रहे तब मैंने उसे इस ब्लाग का पता दिया। उसने लिखा-‘वहां तो सब पढ़ने में आ रहा है। वाह,वाह बढ़िया  । मगर उसने कोई कमेंट इस पर नहीं लिखी। हां, मैने तब यूनिकोड में लिखने का निर्णय लिया।

नारद पर उसी समय इसे पंजीकृत नहीं कराया पर ब्लागवाणी के अभ्युदय के साथ ही दोनों जगह इसे पहुंचाया और हिंदी ब्लाग पर तो यह पहले से ही था। यह मेरा ऐसा ब्लाग रहा है जो बिना फोरम पर दिखे भी वर्डप्रेस के डेशबोर्ड पर नंबर एक पर आया था। फोरमों पर दिखने से पहले ही यह ब्लाग अपने लिये तीन  हजार पाठक जुटा चुका था। तब अनुभव की कमी के कारण मुझे समझ में कुछ नहीं आता था पर बाद में यह बात समझ में आयी कि ब्लाग का मार्ग फोरमों से आगे भी जाता है। ब्लाग की डालरों में बताने वाली वेब साईट के मुताबिक यह मेरा सबसे महंगा ब्लाग है। हालांकि फिर भी यह अन्य ब्लाग लेखकों के ब्लाग के मुकाबले बहुत सस्ता है पर फिर भी मैं इससे संतुष्ट हूं। मुझे इस ब्लाग से एक ही संदेश मिलता है‘डटे रहो, तुम जिस रास्ते पर चल रहे हो उससे विचलित नहीं हो’। जिस तरह से पिछले पंद्रह दिन से यह ब्लाग व्यूज ले रहा था उससे मुझे लग रहा था कि  आज शाम तक यह जादूई आंकड़ा पार करेगा पर कल इसने अपने पुराने तेवर दिखाये जब मैं इस पर पोस्ट डालने लगा तो उसी समय यह इस आंकड़े को पार करने की तैयारी में लग रहा  था और आज तो यह उससे भी आगे जा रहा है।

नीचे इस ब्लाग की प्रथम बीस पोस्ट जिन्हें अधिक पाठकों ने देखा और विभिन्न फोरमों से मिलने वाले व्यूज की संख्या। यह स्पष्ट संदेश कि अध्यात्म और व्यंग्य पर ही मुझे लिखते रहना चाहिए। अपने ब्लाग लेखक मित्रों, पाठकों और समय समय पर तकनीकी विषय पर सहायता देने वाले मित्रों का मैं हृदय से आभारी रहूंगा। दूसरों को बहुत लघु लगने वाली यह उपलब्धि मेरे लिये बहुत महत्वपूर्ण है।

प्रथम बीस पोस्ट

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रहीम के दोहे:सुख में अंहकार दु:ख में कुं 244 
चाणक्य नीति:विद्या की शोभा उसकी सिद्धि  205 
मेरा परिचय=दीपक भारतदीप, ग्वालियर  202 
चाणक्य नीति:परोपकार मधुमक्खी से सीखें  175 
पहले आतंकवाद आया कि पर्यावरण प्रदूषण  175 
रहीम के दोहे:जहाँ उम्मीद हो वहीं जाएं  146 
रहीम के दोहे:मछली का जल प्रेम प्रशंसनीय  142 
चाणक्य नीति: कुत्ते और कौवे से गुण ग्रहण 126 
चतुराई से मुट्ठी में कर लो-हास्य कविता  123 
चलना ज़रा संभल कर-हास्य कविता  119 
आज नवमी-भक्तों के रक्षक हैं भगवान् श्रीर 117 
रहीम के दोहे:परिश्रम कर भोजन ग्रहण करें  115 
चाणक्य नीति:पांच वस्तुओं का संग्रह अवश्य 115 
चाणक्य नीति:बेमौसम राग अलापना हास्यास्पद 115 
दादा-पोते की राजनीति और मनोरंजन  112 
मन के बहरों के आगे क्या बीन बजाना  111 
चाणक्य नीति:क्रोध उतना ही करें जितना निभ 104 
दिल हुआ इधर से उधर  103 
असल पर नक़ल का राज  101 
चाणक्य नीति:प्रेम और व्यवहार बराबरी वाले १००
चाणक्य नीति:मनुष्य को हर विधा में पारंगत 100

Referrer Views (पाठकों के आने के मार्ग)

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blogvani.com 718
narad.akshargram.com 369
hi.wordpress.com/tag/%E0%A4%9A%E0%A4%… 223
filmyblogs.com/hindi.jsp 187
botd.wordpress.com 165
chitthajagat.in 151
 

अच्छा हुआ खबर नहीं पढ़ी-हास्य व्यंग्य


श्रीमतीजी ने रात को पूछा-‘‘क्या खाना खाओगे?’’
हमने कहा-‘‘हम रात को कहां खाते हैं?तुम दूध का एक कप ले आओ तो उसके साथ एक छोटा टोस्ट खाकर सो जायेंगे। वैसे तुमने यह पूछा क्यों?’
कहने लगीं-‘तुम अभी कुछ खाने पर लिख रहे थे। मैने देखा तो सोचा कि शायद तुम्हें भूख लग जाये। जब रात को खाना नहीं खाते तो उस पर लिखते क्यों हो?’
मैने कहा-‘अपने लिये तो लिखते नहीं है जो यह सोचें। पढ़ने वाले तो रात को खाते होंगे न! फिर कितनी गंभीर बात है कि अपने देश के लोगों पर अधिक खाने का आरोप लग रहा है तो यह समझाना जरूरी है कि ऐसी कोई बात नहीं है।’
हमारी श्रीमती जी बोली-‘‘लगाने वाला भी तुम जैसा कोई आदमी रहा होगा। सारी दुनियां से कहते हो कि एक समय खाना खाता हूं पर तुम रात को घर आते ही चाय के साथ  दो से चार बिस्कुट  खाते हो और रात को दूध के कप के साथ एक दो टोस्ट उदरस्थ कर जाते हो। यह खाना नहीं तो और क्या है? और लोगों से कहते हो कि एक समय खाता हूं।’

हमने कहा-‘‘तो क्या लोगों का बताता फिरूं कि मैं यह खाता हूं और वह खाता हूं। यह तो तय बात है कि रात को हमारे घर पर खाना नहीं बनता।’’

हमारी श्रीमती जी चुप हो गयीं। सुबह ही एक सज्जन आये और बोले-‘‘देखो यार, अपने देश के  बाहर के लोग क्या कह रहे हैं  भारत के लोग अधिक खाते हैं इसलिये दुनियां में खाद्यान्न का संकट है। अब बताओ, इस देश के लोग गरीब थे तो झंडे और डंडे लेकर इस देश पर विचाराधाराओं के साथ हमला करते थे। सरकारीकरण खत्म करो उदारीकरण चलो। अब कह रहे हैं कि अधिक खाते हैं। अब क्या रोटी भी पेट भरकर  नहीं खायें?’

हमने कहा-‘‘भरपेट तो खाना नहीं चाहिए। जरूरत से एक रोटी कम खाना चाहिए।
वह सज्जन बोले-‘‘यार तुम जैसा तो कोई हो नहीं सकता कि एक समय खाना खाये।’
हमने कहा-‘‘हम आजकल शारीरिक मेहनत कम कर रहे हैं इसलिये कम खाते हैं।
हमारी श्रीमती उनसे परिचित थीं और उनसे बोलीं-‘‘कहां एक समय खाते हैं? रात को आते ही चाय के साथ बिस्किट और रात को दूध के कप के साथ टोस्ट जरूर खाते हैं। वह क्या खाने से कम है?’

हमने सोचा झूठ बोलने से कोई फायदा नहीं है और हमने कहा-‘हम कम कहते हैं कि नहीं लेते?’
वह सज्जन बोले-‘यह तो हम भी करते है पर फिर भी खाना खाते हैं। खाने के बाद दूध का ग्लास जरूर लेते हैं। हा, उसके साथ टोस्ट वगैरह नहीं लेते। भाभीजी, आप क्या समझ रही हो कि केवल आप लोग ही दूध पीते हैं। खाने के बाद हम दूध न पियें तो नींद ही नहीं आये।’
हमने कहा-‘पर आप खाने को लेकर इतने परेशान क्यों हो रहे हैं? आपके लड़के की शादी में आयेंगे तो जरूर हम भी जमकर खायेंगे जैसे दूसरे। ऐसी कोई कसम नहीं खा रखी कि रात को कभी नहीं खायेंगे। हां, जबसे योग साधना शूरू की है तब से रात को खाने की चिंता से मुक्त हो गये हैं पर आपको कभी यह नहीं कहेंगे कि रात का भोजन लेना छोड़ दें। कहने वाला कुछ भी कहता रहे।’

वह बोले-‘मुद्दे की बात यह है कि क्या वाकई हम बहुत खाते हैं?’
हमने कहा-‘‘अधिक मत सोचो? पहले ही तुम मधुमेह की शिकायत करते हो  और उसमें फायदा उन कंपनियों का ही होगा जो बाहर की हैं क्योंकि उनकी गोलियों से ही तुम खाना पचा पाते हो। हो सकता है कि योग साधना के प्रचार से  अब स्वस्थ लोगों की संख्या बढ़ रही हो और उन पर ‘अधिक खाने’ के शगूफे से तनाव बढ़ाकर फिर उनको बीमार बनाया जाये यही इसके पीछे यही चाल हो सकती है।
वह सज्जन बोले-‘‘पर तुमने यह अभी तक नहीं बताया कि क्या हम भारतीय अधिक खाते हैं?’
हमने कहा-‘‘इस देश में एक सौ पांच करोड़ लोग रहते हैं। कहीं लोग गेंहूं अधिक खाते हैं तो कही चावल तो कहीं कुछ और। किसी के पास कोई पैमाना नहीं है। घर में चार एक आयु वर्ग के चार सदस्य होते हैं पर उनके खाने की मात्रा अलग-अलग होती है। अब कैसे कहें कि इस देश के लोग अधिक खाते हैं या कम।’
वह सज्जल बोले-‘हम तो पिछले दस साल से देख रहे हैं कि अपने घर में जितना गेंहूं आता है उससे अधिक कभी लेते नहीं है। बल्कि बाहर के खाने से उसकी खपत कम होती जा रही है। छोटे बच्चे तो तमाम तरह की चिप्स वगैरह खाकर पेट भरते हैं, पीजा, बर्गर और पैट्रीज खाकर पेट भरेंगे तो फिर घर में कहां खायेंगे?’
हमने कहा-‘फिर बाहर खाने से दूसरे लोगों को खाते दिखते हैं। पैसे की आवाजाही सड़क पर होने से बाहर के लोगों को दिख रही हैं इसलिये ऐसी बातें कर रहे हैं। उनको बाजार में खाने के स्थानों पर लोगों की भीड़ और पैसे का बहाव देखकर ऐसा  लगता है कि यह देश बहुत खाता है।’
वह सज्जन चिंता में पड़े रहे तो आखिर हमारी श्रीमती जी ने कहा-‘भाई साहब, इतनी चिंता में आप पड़े क्यों हैं? इस देश के लोग खाते हैं तो किसी से छीनकर थोड़े ही खाते हैं। किसी के खाने में नजर तो नहीं डालते। किसी को सुखी देखकर उससे छीनते तो नहीं हैं? किसी के घर पर जाकर लूटपाट तो नहीं करते। आप यह बताईये हम आपके घर रात के खाने पर कब आयें? आप तो भाभीजी और बच्चों को लेकर कभी खाने पर लेकर  आते ही नहीं।’
 
वह सज्जन बोले-‘आप कमाल कर रही हो? इतनी बहस हो गयी खाने पर और आप फिर खाने की बात  लेकर बैठ गयीं। कभी आयेंगे चाय पीने पर आप खाने के जबरदस्ती करतीं हैं इसीलिये नहीं हम परिवार सहित आपके घर नहीं आते। हां, आप एक बार खाने पर आयें तो फिर सोचेंगे।’
फिर हमने बातचीत का विषय बदला और वह चले गये तो श्रीमतीजी ने कहा-‘‘पर यह कहा किसने है कि भारत के लोग खाते अधिक हैं?’

हमने कहा-‘‘हमें पता है पर तुम जानने की कोशिश कर अपनी चिंता क्यों बढ़ा रही हो। अधिक चिंता शरीर को हानि पहुंचाती है।’
वह बाहर जाते हुए बोलीं-हां यह तो बात है। वैसे आज अखबार में ऐसा कोई ऐसा शीर्षक तो देखा था पर खबर पूरी नहीं पढ़ी। अच्छा हुआ नहीं पढ़ी। बिना मतलब की खबर पढ़ने से क्या फायदा?’

The comic satire on http://rajdpk1.wordpress.com to be read in English

मालिक नहीं तो मजदूर का रोल करेगा-हास्य कविता


फंदेबाज आया और बोला
‘दीपक बापू, मेरा छोटा भाई
बहुत परेशान
चार वर्ष का उसका लड़का है शैतान
उसे वह बड़ा आदमी बनाना चाहता है
उसकी पत्नी अपने बेटे को
अभिनेता या संगीतकार बनाने की करती विचार
भाई उसे क्रिकेट खिलाड़ी बनाना चाहता है
अब कहां से करें शुरू
कौन सा ढूंढें पूछने के लिये कोई गुरू
तुम ही कोई सलाह दो
उन तक पहुंचा देंगे
बता देंगे हमारे दोस्त हैं कितने मेहरबान’

सुनकर उखड़े दीपक बापू और फिर कहें
‘मालुम होता है पूरा घर
टीवी से आगे नहंी सोच पाता
इसलिये तुम्हारे माध्यम से
रोज एक सवाल हमारे पास भिजवाता
अगर हम कुछ बनना-बनाना जानते तो
भला क्या अपना घर कम था
जहां हमारे लिये हर कदम पर गम था
फिर भी अपनी अक्ल से चल रहे
अपनी मेहनत से पल रहे
वैसे तुम कार्यक्रम खूब देखते
पर अक्ल की बात होती तो पत्थर फैंकते
अब गया जमाना किसी एक हुनर में
माहिर होने का
हो न हो अपने अंदर कोई प्रतिभा
पर किसी पर भी यह जाहिर न होने का
तुम अपने भतीजे को
संगीतकार या गायक कलाकर ही बनाओ
चूंकि कोई तुम्हारे घर में फिल्मी हीरो नहीं
इसलिये वह तो भूल जाओ
फिर भी कुछ अपनी कुछ उसकी किस्मत आजमाओ
हो सकता है कहीं
कोई आईडियल वगैरह बन जाये
फिर लोगों के मन में छा जाये
अगर छा गया तो फिर
क्रिकेट तो उसकी जेब में होगी
बल्लेबाजों के बैट उसके इशारे पर नाचेंगे
तो गेंदबाज की गेंद उसके इशारे की मोहताज होगी
फिर भी थोड़ी बहुत क्रिकेट
खेलने को वक्त देते रहना होगा
नहीं तो फिर हर खिलाड़ी की
अकड़ को सहना होगा
नहीं मिला फिल्म में मौका तो
क्रिकेट खिलाड़ी भी ठीक होगा
वह भी नही बन पाया तो
कुछ नाच गाना जानते हुए
मैच के इंटरवैल में भी
कार्यक्रम पेश कर मिनी हीरो होगा
तुम्हारी चाहत अगर
उसको कैमरे में देखने की है
तो बस धकियाते जाओ
मालिक नहीं तो मजदूर का रोल करेगा
कभी न कभी तो वक्त होगा मेरहबान
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कोई स्टार तो कोई फ्लाप ब्लागर-हास्य व्यंग्य


ब्लागर पार्क में दोनों ब्लागर प्रतिदिन सुबह लड़ते थे। एक कहता कि ‘मैं  हिंदी का सबसे बड़ा ब्लागर’ तो दूसरा कहता था कि ‘तुझे कौन जानता है तेरे से बड़ा ब्लागर तो मैं हूं’। दोनों एक दूसरे पर फब्तियां कसते और अभद्र शब्द बोलते। बाकी ब्लागर इस डर के मारे कुछ नहीं बोलते कि कहीं इनकी लड़ाई अपने गले न पड़ जाये। आपस में जरूर बतियाते ‘यार, दोनों माहौल बिगाड़ रहे हैं’, और इस पार्क की बजाय कोई दूसरा पार्क घूमने के लिये ढूंढना चाहिये’। कुछ लोग इसलिये उस पार्क में घूमने आते थे क्योंकि उनको देखकर वह हास्य कविताएं गुनगुनाकर दिल हल्का कर लेते थे‘।

कुछ लोग पार्क के बाहर खड़े होकर कमेंट भी उछालते थे ‘बहुत बढिया’, ‘बहुत सुंदर’ तो कुछ बारी बारी दोनों के समर्थन में नारे लगाते थे। इससे वह दोनों भ्रमित हो जाते थे। कई बार लड़ते-लड़ते दोनो ब्लागर अपने आप को अंतर्जाल पर लिखने में मामले में अपने आपको सुपर स्टार घोषित कर देते थे। बीच-बीच में कोई ब्लागर भी दोनों को सुपर ब्लागर बता देते थे जब उनको लगता था कि इस बहाने लोगों की  ध्यान उनकी तरफ जायेगा।

उस दिन दोनों सुबह अपनी दिनचर्या में व्यस्त थे ‘तू-तू मैं-मैं’’ जारी थी उसी समय पार्क के बाहर खड़ा होकर एक कमेंट देने वाला चिल्लाया कि ‘क्या खाक सुपर स्टार ब्लागर हो, देखो अखबार में एक फिल्म के सुपर स्टार ने अपना ब्लाग बना लिया है और लोगों के साथ आनलाईन लोगों की कमेंट पर कमेंट देंगे तुम्हारी तरह नहीं लिख कर भाग जाते हैं और हमारे कमेंट पड़े रहते है कि कब वह माडरेट हों।’’
दोनों ब्लागर हक्के-बक्के रहे गये। फिर उसे आवाज देकर बुलाया और सुपर स्टार का नाम पूछा तो उसने दूर से ही इशारा कर अपना हाथ ट्रेफिक पुलिस वाले की तरह खड़ा कर दिया और दोनो ही उसे समझ गये और उसकी तरफ भागे और चिल्लाते हुए पूछने लगे-‘‘जल्दी उसका पता दे।’’
एक ब्लागर ने दूसरे से कहा‘‘- यार मजा आ गया वह भी अपनी लाईन में आ गया। अब तो उससे दोस्ती करेंगे। निकाल पेन!
दूसरा बोला-‘‘रोज तुमसे झगड़ा होता है, खो न जाये इस डर के मारे ले नहीं आता।’’
पहले ने तत्काल अपने पास खड़े एक ब्लागर की कमीज पर हाथ डाला और उसकी पेन निकाल ली उसे समझने का अवसर नहीं दिया और दोनों उस आदमी के पीछे भागे। जिसका पेन लिया  वह कोई व्यंग्यकार था और चिल्लाता रह गया-‘‘ऐ….ऐ…..देखो  मैं तुम पर व्यंग्य लिख दूंगा।’’
दूसरा बोला-‘‘तुमसे तो बाद में निपटते हैं। वैसे भी तुम्हारा ब्लाग पढ़ेगा कौन? हम तो सुपर स्टार का ब्लाग पढेंगे।’’

दोनों को अपनी तरफ आता देख दोनों को सूचना देने वाला आदमी भाग निकला। उसे लग रहा था कि वह दोनों ब्लागर उससे झगड़ा कर रहे हैं। वह आगे-आगे भाग रहा था और दोनों पीछे-पीछे चिल्लाते जा रहे थे-‘अबे पता तो देता जा’ हम तुझे भी मुफ्त मे ब्लाग बनाना सिखा देंगे। मगर उस आदमी के मन में व्याप्त भय के कारण कान ही बंद हो गये थे।

आखिर वह भागने में सफल रहा। फिर दोनों लौटकर पार्क में आये। दोनों  ब्लागर हांफ रहे थे। पार्क में आकर दोनों निढाल होकर बैठ गये। बाकी ब्लागर उनका हालचाल जानने उनके पास पहुंच गये। जिसका पेन लेकर गये  थे उसे वापस करते दूसरा ब्लागर बोला-‘‘ऐसा अभागा पेन रखते हो कि किसी के काम नहीं आते। आइंदा ऐसा पेन अपने पास मत रखना। इस बार वापस कर रहा हूं अगली बार नाली में फैंक देंगे।’’
वह ब्लागर डर रहा था तो पहला जोर से चिल्लाया-‘ले न पेन लेता क्यों नहीं।’’
वह रिरियाते हुए बोला-‘‘मेरी तरफ से आप अपने लिऐ तोहफा समझ लेते, पर आप कह रहे हो कि अभागा है तो मुझे दे दीजिये मैं ही नाली में फैंक दूंगा। आप कहते हैं तो यह पेन अभागा ही  होगा।’’
आखिर एक ब्लागर ने हिम्मत दिखाते हुए पूछ लिया-‘‘आपको उस आदमी ने सुपर स्टार के ब्लाग का पता नहीं दिया। आजकल के लोग बहुत संवेदनहीन हो गये हैं। थोड़ी मदद कर देता तो क्या हो जाता?’’
पहला ब्लागर बोला-‘‘वह हम ही हैं जो मुफ्त सेवा कर रहे हैं बाकी लोग तो सब ऐसे ही हैं।

वहीं मौजूद एक अन्य ब्लागर ने धीरे से पास खड़े ब्लागर से कहा-‘‘यार, अखबार तो कहीं भी मिल जाता है। जब यह साथ चलेंगे तो रास्ते में जो चाय वाला है उसके पास अखबार आता है वहां देख लेंगे किस अखबार में आया है तो खरीद लेंगे।’

पास खड़ा ब्लागर बोला-‘‘खामोश हो जाओ। यहां समझदारी की बातें करना वर्जित हैं जैसे यह लोग बोलें उस पर सहमति देत जाओ।’’

इधर दोनों ब्लागर बड़बड़ा रहे थे पहला ब्लागर बोला ‘‘कहां जायेगा? मुझे पता है उसका घर किस गली में है। अभी घर पर नहाधोकर वहीं धावा बोलता हूं। उससे सुपर स्टार के ब्लाग का पता निकलवाये बिना नहीं मानूंगा।’
दूसरा बोला-‘‘मैं भी चलूगा। भले ही मैं तुम्हें पसंद नहीं करता पर यह भी नहीं  चाहता कि कोई मेरे अलावा कोई तुमसे वादविवाद करे।’

एक सज्जन ब्लागर ने कहा-‘‘पर हम लोगों को क्या? उस सुपर स्टार ने ब्लाग बना लिया तो अच्छी बात है सभी ब्लागरों का सम्मान बढ़ेगा।’’

पहला ब्लागर बोला-ए महाशय! कहीं तुम अपने आपको स्टार ब्लागर के रूप में स्थापित होने का ख्वाब तो नहीं देख रहे। इस समय तो हम ही स्टार हैं और हमारे दम पर तुम सब लोग चल रहे हो। हां अब सुपर स्टार ने ब्लाग बना लिया है इसलिये तो यह ख्वाब वैसे भी ख्वाब रहेगा।’’

दूसरा बोला-‘‘अब बहुत लिख लिया। अब तो सुपर स्टार के ब्लाग पर कमेंट लगाकर अपना नाम करेंगे। अरे, पढ़ना तो ब्लाग सभी जानते हैं पर कमेंट तो केवल ब्लागर ही लगाना जानते हैं। हम दोनों ही वहां कमेंट लगायेंगे, अगर किसी और ब्लागर ने वहां कमेंट लगाया तो उसे……………………हम स्टार ब्लागर हैं और रहेंगे और वह तो सुपर स्टार है उसका मुकाबला नहीं कर सकते पर कमेंट लगाकर स्टार तो बनें रह सकते हैं।’’
पहले ने कहा-‘‘अपना ब्लाग भी तो लिखना है?’’
दूसरे ने कहा-‘‘भूल जाओ। अरे हमारा ब्लाग कितने लोग पढ़ते हैं एक दिन में………………अब संख्या क्या बताऊं आदमी को अपनी कमाई नहीं बताना चाहिए, पर उस सुपर स्टार को कितने लोगे पढ़ेंगे और हम तो अपना कमेंट लगाकर आऐंगे। सवाल पर सवाल करेंगे। सोचो लाखों लोग हम दोनोे का नाम  पढ़ेंगे।’’

दोनों चले गये तो सभी ब्लागरों ने राहत की सांस ली। तब एक कवि ब्लागर ने कहा-‘‘यह दोनों कमेंट लगाने पर भी बैन लगा गये अब हम क्या करें? अब तो सुपर स्टार ब्लागर बनने का ख्वाब भी खत्म हो गया।
व्यंग्यकार ब्लागर ने कहा-‘‘छद्म नाम से कमेंट लगायेंगे जब सुपर स्टार के ब्लाग किसी कमेंट देने वाले को कोई पुरस्कार आया तो फिर अपने असली नाम से प्रकट हो जायेंगे। आखिर फिल्मों से आया है और ब्लाग बना रहा है तो वह कमेंट लिख कर सवाल करने वालों के लिये कोई पुरस्कार भी घोषित तो करेगा।’’
सब वहां से चलने को हुए तो वहां एक ब्लागर ऊंघ रहा था तो आवाज देकर उसे जगाया गया तो वह चैंक गया फिर बोला-‘‘यार तुमने जगा दिया मैं तो सुपर स्टार के ब्लाग पर कमेंट लगाने का सपना देख रहा था।’’
अन्य ब्लागर ने कहा-‘‘अगली बार देखना तो अपने असली नाम से नहीं छद्म नाम से कमेंट लिखना। वरना वह दोनों तुम्हारा कचूमर निकाल देंगे।’
उन सज्जन ने चलने के लिये अपनी लकड़ी उठाई और लंबी-लंबी सांस खींचते हुए बोले-‘‘अपना अपना भाग्य है कोई सुपर स्टार तो कोई सुपर फ्लाप ब्लागर।’’

नोट-यह काल्पनिक हास्य व्यंग्य रचना है और किसी व्यक्ति या घटना से इसका कोई लेनादेना नहीं है और किसी की कारिस्ताने से मेल खा जाये तो वही इसके लिये जिम्मदार होगा।

दोस्त को कई रूपों में आने का हक होता-हास्य कविता


भतीजे को साथ लेकर आया फंदेबाज
और बोला-‘‘दीपक बापू इस आवारा को भी
कुछ अंतर्जाल का काम सिखा दो
तीस का हो रहा
फिर भी अक्ल से सो रहा
सब कर रहे अंतर्जाल पर मजे
इसे भी ब्लाग बनाना सिखाओ
तो इसकी भी बारात सजे
कर गये इसके दोस्त
अंतर्जाल पर चैट करते हुए अपनी शादी
यह नहीं इंटरनेट का आदी
वेब साइट या ब्लाग सजवाओ
कहीं चैट का इंतजाम करवाओ
इसका नाम भी अंतर्जाल पर लिखा दो
तुम हमारे दोस्त हो समाज को दिखा दो

नाक पर टंगे चश्में से
घूरते हुए बोले दीपक बापू
‘‘काहे, बाप ने इसे
घर से बाहर निकाल दिया
जो यहां साथ लाये हो
अंतर्जाल पर क्या दुल्हनें बैठीं है
जो इसे ब्याहने ले आए हो
हम तो नहीं जानते
पूछ कर बता देंगें
कोई होगा लव या मैरिज गुरू हुआ तो
इसकी भेंट करवा देंगे
मगर यह मायाजाल है ऐसा
कि सर्वशक्तिमान की माया भी
इसे नहीं समझ सकती
नाम बहुत होते है
पर पहचान बहुत मुश्किल लगती
पचास साल की महिलाएं भी
अठारह साल की बनकर
टाइमपास करतीं
ब्लागरों ने लिखे ऐसे किस्से ढेर हैं
असली कम छद्म नाम के बहुत शेर हैं
अभी ही इसकी उमर निकल गयी लगती
फंसा रहा इस जंजाल में तो
कई हूरों के फोटो दिखेंगे
पर पता तब चलेगा जब
मिलने के लिये ईमेल लिखेंगे
खालीपीली चैट तो
चल जायेगी बरसों तक
पर मामला जमेगा असल में
इसमें हमें तो शक होता है
एक दोस्त को कई दोस्तों के
रूप में आने का हक होता है
इसलिये बड़े होने के नाते
सब परिवार वाले कुछ
अपनी जिम्मेदारी उठाओ
अंतर्जाल है बहुत बड़ा मायाजाल
उसमें इस मत उलझाओ
अपनी जिम्मेदारियां मत टालो
कभी भी अंतर्जाल पर
हम जानते हैं तुम्हारी चालाकी
इसलिये कहते हैं कि
अपने दहेज के रेट कम कर
इसका विवाह कराओ
और समाज को भी दिखा दो
…………………………………….

हमारी पोस्ट भी जोरदार पाओगे-हास्य कविता


रास्ते में टकरा गया फंदेबाज
और घूर-घूर कर देखता हूआ बोला-
‘दीपक बापू हाथ लगाकर
हमसे क्या छिपा रहे हो
हम देख रहे तुम फटी धोती
पहने चले जा रहे हो
क्या सड़क पर किसी को दिखाई
अपनी जोरदार ब्लागरी
या अंतर्जाल पर अपने ब्लोग में
किसी को अपनी पोस्ट लिखकर नाराज
कर दिया और कमेंट में पिटकर आ रहे हो

पहले झेंपे फिर गुर्रा कर बोले
‘‘कमबख्त तुम भी ऐसे प्रकट होते हो
जैसे हिट ब्लागरों के लिये
कमेंट लिखने वाले तैयार बैठे होते हैं
पर तुम भी आंखें बंद कर 
हमारी फटी पोस्ट (धोती) पर
ऐसी बेहूदा कमेंट लगा रहे हो
देखा नहीं अभी तो गिरकर जमीन से उठे हैं
मोटर सायकल वाला टक्कर मार गया
धोती किसी तरह बचा ली
वरना उसके साथ ही  चली गयी   होती
तब तो तुम्हारी कमेंट कुछ
और वजनदार हो गयी होती
ठीक है आज का दिन तुम्हारा रहा
मोटर सायकिलें तो
अभी और भी बढ़ेंगी
अभी तो छोटी कारें भी आ रही है
सड़कें तो और चौड़ी नही हो जायेंगी
तुम बिना हेल्मेट के
मोटर सायकल पर घूमते हो
कहते है तो मानते नहीं
वह दिन भी आयेगा
जब तुम इन्हीं सड़कों पर
मोटर सायकिल लेकर
पैदल उसे घसीटते नजर आओगे
तब हमारी पोस्ट भी जोरदार पाओगे
फिर हमसे मत कहना कि
हमारी बदहाली पर क्यों हंसे जा रहे हो
……………………………………………………….

बड़ी मछली का छोटी पर शासन तो फिर भी रहा


कार्ल मार्क्स ने कहा था कि इस दुनियां को सबसे बड़ा सच रोटी है। आर्थिक ढंग से सोचने वालो ने उनकी इस खोज को एक नई खोज मानते हुए उनकी पूंजी किताब  को गरीबों और मजदूरों का पवित्र ग्रंथ मान लिया । अगर उनकी दृष्टि को देखें तो आदमी जीवन केवल खाने के लिये है और उसके बाद उसे और कुछ नहीं करना चाहिए। खेलो तो रोटी के लिये, लिखो तो रोटी के लिये, गाओ तो रोटी के लिये।  हम अपने प्राचीनतम अध्यात्मिक ज्ञान  की दृष्टि से देखे तों वह माया को सर्वोपरि मानते हैं। यही कारण है कि भारतीय जनमानस में उनका विचार कभी लोकप्रिय नहीं हो पाया।
भारतीय अमीर हो या गरीब,  बूढ़ा हो या जवान स्त्री हो या पुरुष इस बात की परवाह नहीं करते कि भगवान ने उनको क्या दिया है और अपनी सामर्थ्यानुसार  उसकी आराधना करते है।  इसके बावजूद कुछ लोग मायावी विचारों को  अपना आधार बनाकर समाज कल्याण  का काम करते हैं तो केवल इसलिये कि इस धरती पर सत्य के साथ माया को भी  रहना ही है। ऐसे में कुछ लोग हैं जो अपनी रोजी रोटी कमाते हुए बिना किसी की परवाह किये हंुए भक्ति में लगे रहते हैं।  वह किसी प्रकार वैचारिक वाद-विवाद में नहीं पड़कर अपनी एकांत साधना में लगे रहते है।

आजादी के बाद बहुत समय तक यह देश शांति से चलता रहा पर जैसे ही बाजार में आधुनिक और सुविधाजनक सामग्रियों का प्रचलन बढ़ा तो  लोगों के जीवन स्तर का स्वरूप भी बदला और उपभोग की आधुनिक सुविधाओं से जहां परिश्रम की भावना में कमी आयी तो स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं ने भी अपना दायरा बढ़ा लिया । ऐसे माया का स्वरूप इस तरह बदल गया कि कहना मुश्किल  है कोई विचारधारा उसका  इस रूप में उसका प्रतिकार कर  सकती है।।  आप पूरे संसार में देख लें गरीबों और किसानों के लिये बहुत सारे अच्छे काम हो रहे है पर फिर भी उनकी परेशानियां कम नहीं हो रहीं है। इसकी वजह यह है कि कार्ल मार्क्स ने और कुछ किया हो या नहीं पर एक वैचारिक अविष्कार तो लोगों को शासन करने के इच्छुक लोगों को  दे ही दिया  कि गरीबों और मजदूरों के हित की बात किये बिना आप यहां लोकप्रिय हो नही  सकते-यानि आप नारे लगाकर शासन करते रहो। अब कोई भी किसी भी विचारधारा को मानने वाला हो वह समाज के निचले तबके के कल्याण की बात अव’य करता है। पूरे विश्व में दबा कुचला समाज कहीं न कही जरूर है। उनके इतिहास भी सब जगह ऐक जैसे है। बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है  यह नियम केवल समंदर पर लागू नहीं होता बल्कि आकाश और धरती पर भी लागू होता है। जंगल और शहर  पर भी इसका प्रभाव एक समान परिलक्षित होता है।  किसी भी समंदर या तालाब में देख लें-वहां बड़ी मछलियां संख्या में कम होती हैं पर छोटी मछलियां अधिक होने के बावजूद उनका शिकार बनतीं हैं। जंगल में एक शेर होता है(अब होता है कि नहीं यह जानकारी मुझे भी नहीं-क्योंकि उसकी उपस्थिति मैने केवल चिडियाघर में देखा है) पर बाकी छोटे जानवर उसका शिकार  बनते है। कुल मिलाकर छोटे लोगों की संख्या अधिक होती है पर शासन तो बड़े लोगों का ही होता है।

ऐसे में जब शासन  की बात हो और उसके लिये  छोटे आदमी के सहयोग की  आवश्यकता पड़ती है  तो बडे लोगों के पास इसके अलावा कोई चारा भी नहीं रहता कि वह छोटे आदमी के कल्याण की बात करें और उसका सहारा लेकर फिर उस पर शासन चलायें। फिर शासन  जो होता है वह आप देख ही रहे है। शासन  हमेशा छोटे पर होता है और यह   हमारी शिकायत कि छोटों पर ही क्यों सारे नियम  लागू होते हैं कोई मायने नहीं रखता। छोटे होते ही शासित होने के लिये है। हां इस बात पर जरूर संतोष करना चाहिए कि कम से कम छोटे लोगों की दुहाई देकर ही तो यह शासन बनाया जाता है और कम से कम एक दिन तो ऐसा आता है कि जब  हमें अपने पक्ष में बोलता हुआ कोई दिखता है और वह  भी कौन जो समाज में बडा आदमी है। बड़े आदमी छोटे आदमी के हित की बात तो करते हैं यही संतोष का विषय है। कार्ल मार्क्स की विचारधारा आने से पहले  कोई ऐसा नहीं करता था।
 
कार्ल मार्क्स ने दुनियां के जिस मायारूपी सत्य को बताया  उसे हमारे देश के लोग बहुत समय से जानते है।  रोटी यानि माया देह के लिये जरूरी है  फिर भी एक मन है जिसमें इस माया को हराने की क्षमता है अगर उस पर नियंत्रण किया जा सकता है और अगर वह  अनियंत्रित है तो फिर रोटी भी उसका पेट नहीं भर सकती। गरीबों के मसीहा बहुत बन गये है पर अपने मन में दूसरों पर शासन करने की भूख शांत करने के लिये। कहते हैं कि आज की दुनियां विकसित है पर उसका मतलब क्या है? क्या रोटी से पेट भरने की बाद क्या आदमी की भूख खत्म हो जाती है और क्या जिनको आधी रोटी मिलती है वह रात को चैन की नीद सोते नहीं  है?

सच तो यह है कि भारतीय अध्यात्म द्वारा उदघाटित जीवन रहस्यों से छिपने के लिये माया रूपी राक्षस को खड़ा किया गया है ताकि बड़े लोगों का छोटे लोगों पर शासन चलता रहे। अगर सब लोग योगी और ज्ञानी हो जायेंगे तो फिर माया के शिखर पर बैठे लोग किस पर शासन करेंगे। इसलिये ऐसी विचाराधाराओं का विकास किया गया जिससे वह छोटा आदमी दिगभ्रमित होता रहे और कल्पित सुखों की तलाश में भटकता रहे ताकि उस पर नियंत्रण किया जा सके। जितनी तेजी से आधुनिक साधनों का विकास हुआ लोगों में उपभोग की प्रवृति बढ़ी है और वह अध्यात्म से परे हुए  है और इसी कारण आर्थिक और सामाजिक शिखर पर बैठे लोगों को शासन करने की सुविधा मिल गयी है। हां अब उनको गरीबों, मजदूरों, किसानों और शोषितों के हित की बात तो करनी ही पड़ती है। (क्रमशः)

शादी कर ही हमारे ब्लॉग पर कमेन्ट लगाना-हास्य कविता


कमेंट लिखने वाले ने पूछा
‘‘ मेरी प्रेमिका और  मेरा गौत्र
आधा मिलता है आधा नहीं
परिवार वाले शादी के लिये
तैयार नहीं
आप हमको बताना
क्या संभव है शादी बनाना’

पढ़कर भौहें तन गयी
जमीन पर पहले औकड़ूं बैठकर
 बीड़ी फूंकते हुए सोचने लगे
फिर  कहैं दीपक बापू
‘‘ हफ्ते में  दूसरी बार पूछ रहे हो
हमसे ही करते हो चालाकी
जो पहेली बूझ रहे है
हमें जानते हो फिर भी जूझ रहे हो
अरे, शादी का विषय है
बहुत सरल, मूर्ख है जमाना
इसे व्यर्थ में ही क्यों कठिन बनाना
शादी करता आदमी
बच्चा पैदा होते ही
उसे पड़ता है उसकी
शादी की तैयारी में जुट जाना
अपनी उम्र खराब करता
जमाने की भीड़ में रहता बेगाना
दहेज की लालच में
चालीस के हो जाते छोकरे
पचास तक आते पड़ता है पछताना
तुम गौत्र के चक्कर को भूलकर
जल्दी शादी कर डालो
सबसे आसान है कहीं
मंदिर में जाकर वरमाला  डाल लो
फिर शादी का पंजीयन कराना
मां-बाप बिचारे ने
तुम्हारी शादी के ख्याल में पहली
अपनी और अब तुम्हारी
जिन्दगी बरबाद कर दी
पर तुम इसे सरल बनाना
शादी कर तत्काल
हमारे ब्लाग पर सूचना के रूप में
कमेंट जरूर लगाना
फिर इस ब्लाग जगत पर
हमारी अगली सूचना पर ही आना
क्योंकि शादी के बाद
उठेंगी अनेक घरेलू समस्यायें
तुम उनके हल के लिये
ढूंढोंगे कोई ब्लाग
पर यहां सभी उलझे हैं
अपनी अपनी हांकने
तुम उसमें उलझकर 
अपनी समस्या मत बढ़ाना
अभी तो सभी ब्लाग
घरेलू समस्यों को बढ़ाने वाले लगते हैं
हमें जब ढूंढ लेंगे कोई
धरेलू समस्याओं को हल
करने वाला ब्लाग
तब तुम्हें खबर दे जायेंगे
फिर अपनी जीवन संगिनी समेत
वहां पढ़ने चले जाना
इससे पहले तो तुम दूर ही रहना
नहीं तो पड़ेगा पछताना’’
…………………………………………..
नोट-यह कविता काल्पनिक है। किसी घटना या व्यक्ति से इसका कोई लेनादेना नहीं है पर अगर किसी कमेंट देने वाले की कारिस्तानी से टकरा जाये तो वही इसके लिये जिम्मदार होगा।

सच के परे बहस बेकार-कविता


औरत पर अनाचार का प्रश्न
उठता है कई बार
अभी तक अनुत्तरित है एक प्रश्न
कौन करता है उस पर वार

दुनियां में पुरुष प्रधान समाज
वही परिवार का मुखिया कहलाता है
पर बाहर शेर की तरह दहाड़ने वाला
क्या अपने घर में भी चीख पाता है
अपने दबंग होने के अहसास से
जमाने भर को डराने वाला
क्या घर में अपना रौब रख पाता है
क्या वही करता है स्त्री पर प्रहार

स्त्री को पर्दे में
रहने के लिये बाध्य करने वाला
पुरुष अपने घर में स्त्री द्वारा ही
स्त्री का सताने का
अपने ऊपर लेकर इल्जाम
एक स्त्री की करतूत को
क्या छिपा  नहीं जाता
सारे आरोप अपने ऊपर लेकर
क्या उसे बचा नहीं जाता 
एक स्त्री की करतूत को
पर्दे में क्या छिपा  नहीं  जाता
मान जाता सबके सामने अपनी हार

पुरुष को स्नेह, प्रेम और ममता
देने वाली ममतामयी स्त्री
अपनी बेटी और बेटे में
क्या भेद नहीं कर जाती
फिर जमाने से छिपाती
अपनी बेटी पर लाज की
चादर ओढ़ने वाली
क्या परायी की बेटी 
पर अनाचार नहीं करवाती
अपने पुत्र को क्या
उसके खिलाफ नहीं उकसाती
जब ढहता कोई घर
तब पुरुष पर हंसता जमाना
मजबूरी है पुरुष की
अपने घर की स्त्री की लाज बचाना
और झेलना जमाने के प्रहार

जमाने को दोष देकर
टाल रहे है सब सवालों के जवाब
औरत की भलाई पर बहस करने वाले
नारों की डोली में शब्दों की दुल्हन को
उठा लेकर चल रहे हैं कहार
आज के वार्ताकार हों या चित्रकार
सच से परे करते बहस बेकार

………………………….
 

चोरी करना पाप है-हास्य व्यंग्य


बचपन में जब प्राइमरी स्कूल में पढ़ते थे तब हमारे टीचर कहते थे कि ”चोरी करना पाप है”। यह बात सभी छात्रों में इस तरह घर गयी थी कोई किसी की चीज सामने भी उठाता तो उसे साथी छात्र चिढ़ाते थे कि चोरी करना पाप है। बहुत समय तक एक ही गलतफहमी रही कि केवल चोरी करना ही पाप है। आज भी जब कोई काम करना होता है तो हम कहते हैं कि”अपना काम करता हूँ कोई चोरी करता हूँ।”
अभी मुझसे कोई कहे कि तुम ब्लोग पर फालतू बातें क्यों लिखते हो तो मैं यही कहूँगा कि’अपने ब्लोग पर लिख रहा हूँ किसी की चोरी थोडे ही कर रहा हूँ।”

अर्थात चोरी को ही एक अपराध मानते हैं। किसी को डाकू कहो, हत्यारा कहो या बेईमान कहो वह सुन लेगा पर अगर वह चोर कहा तो उखड जायेगा। कहीं वह डकैत और हत्या में संलिप्त व्यक्ति होगा तो वह हमला भी कर सकता है। यानि चोरी ही एक संगीन अपराध है और बाकी अपराध तो बहादुरी की श्रेणी में आते हैं। चोरी तो कायरों और कमजोरों का काम है।

आये दिन सुनने को मिलता हैं भीड़ ने अमुक जगह चोर को पीटकर या तो मार डाला या घायल कर दिया। यही भीड़ अगर कोई डकैत अपना काम कर रहा हो या अपहरण के व्यवसाय में लिप्त कोई उनके सामने ही किसी का अपहरण कर रहा हो तब किंकर्तव्यमूढ़ होकर देखती और सोचती है कि ”यह अपराध है कि नहीं या कहीं यह चोरी से कमतर अपराध तो नहीं है।”
कहीं कोई खुलेआम रिश्वत मांग रहा हो तो लोग उसे शिष्टाचार मान कर देते हैं, उन्हें भला कहाँ स्कूल में पढाया गया कि रिश्वत लेना पाप है। इतने सारे घोटाले हो जाते हैं पर उसमें संलिप्त किसी व्यक्ति को मजाल है कि कुछ कह जाये। अक्सर सुनते हैं कि भीड़ के सामने कत्ल हो गया पर कोई गवाही देने को तैयार नहीं होता हैं। कौन तारीखों पर समय खराब करेगा और पता नहीं कातिल कहीं उनका भी कत्ल कर दे-इस भय से लोग आगे नहीं बढ़ते।
हम बहुत समय तक इसी ग़लतफ़हमी में रहे के बस चोरी अपराध है और अब तो लगता है कि यह तो एक मामूली अपराध है पर अब भी इसलिए बड़ा है क्योंकि बाकी के अपराध बहादुर लोगों द्वारा ही किये जाते हैं और उनके सामने उनके अपराध कहना अपने लिए मुसीबत लेना है।

भीड़ में कोई व्यक्ति रास्ता चलते हुए अगर किसी के लिए चिल्ला पड़े किपकडो!पकडो! चोर! चोर!’ तो वहाँ खडे लोग बिना सोचे-समझे उसे पर टूट पड़ेंगे कि चोर ही तो है क्या कर लेगा?’
मतलब यह है कि किसी के मन में अगर किसी से दुश्मनी का भाव निकालना हो तो वह आसानी से राह चलते हुए उसे चोर-चोर कर पकड़ ले तो उसका काम तो गया तमाम। भीड़ भी हमला कर देगी।
मैं सोचता हूँ कि स्कूलों में यह क्यों नहीं पढाते कि’अपने काम के नियत वेतन के अलावा अन्य प्रकार की रिश्वत लेना पाप है’, जिसका पैसा हो उसे ईमानदारी से दो’। ‘जहाँ भी काम करो लगन से करो’, ‘गरीब पर दया करो’ और कभी भी घोटाला मत करो’ आदि।
मान लीजिये इस सब को अपराध मानते हुए अगर कोई स्कूल इस मामले में पहल करेगा तो लोग अपने बच्चों को उस स्कूल से निकाल कर दूसरी जगह भेज देंगे और जो टीचर ऐसी शिक्षा देगा तो बच्चों के अभिभावक उसकी शिकायत प्रिंसिपल से कर नौकरी से निकलवा देंगे। कहेंगे’क्या इस घोर कलियुग में सतयुग के शिक्षा दे रहा है?” बरसों से चला आ रहा है कि ”चोरी करना पाप है’ फिर उसे विस्तार रूप देने की क्या जरूरत है?भला कौन अभिभावक चाहेगा कि उसके बच्चे में रिश्वत और भ्रष्टाचार विरोधी भावनाएं भरी जाएं। चोरी तक ठीक है कौन हम चाहेंगे कि हमारा बच्चा चोरी जैसा छोटा काम करे ।
डकैती और लूट भी कोई काम अपराध नहीं है पर उनको बहादुर करते हैं इसलिए लोग उनसे डरते हैं क्योंकि इसमें हथियारों का इस्तेमाल होता है और आदमी के सामने उसका माल लूटा जाता है। रिश्वत तो सबसे भयंकर अपराध है और इस मामले में देश की छवि विश्व में खराब है पर मजाल है कि कोई किसी भ्रष्ट आदमी को मुहँ पर कोई कह जाये कि तुम रिश्वत लेते हो क्योंकि उसके हाथ में हथियार नहीं बल्कि उसे काबू में रखने की शक्ति होती है। इसलिए आज भी यही सब जगह पढाया और सुनाया जाता है कि ”चोरी करना पाप है”। लोग नहीं जोड़ते पर हम जोड़ते हैं कि बाकी सब माफ़ है। जिस तरह चोर पिट रहे हैं उससे तो यही लगता है।

सब मिल गया फिर उन्हें और क्या चाहिए-हास्य व्यंग्य


वह क्रिकेट खेले और विश्व कप जीतकर प्रतिष्ठा का वह इतना शिखर छू लें-जो एक आदमी के लिए दिवास्वप्न हो। वह चौके-छक्के मैदान पर लगाकर अपना बैंक बेलेंस बढा लें और अपने रहने के लिए महल बना लें जिसमें आधुनिक जीवन व्यतीत करने की सुविधा हो। उन्हें और क्या चाहिए?

वह फिल्मी दुनिया में करतब दिखाते हुए बादशाह बन जाएं। ऐसे व्यक्तित्व के मालिक हों जिसकी कल्पना देवलोक के देवताओ से ही मिलती हो। इस मायावी दुनिया में जो सुख गिनाए जाते हैं वह सब मिल गए हों। अपने और बेटे की प्रसिद्धि और साथ में खुशहाल परिवार। कोई कमी नहीं। रोज किसी अख़बार या टीवी चैनल पर उनके फिल्मों की चर्चा होती हो। खुद काम करें और बाद में अपने बेटों को भी इस लाइन में लाकर अभिनेता या निर्माता बना दें और वह भी चमकता सितारा हो। अगर बच्चे छोटे हों तो भी उनकी चर्चा मीडिया में होती हो उन्हें और क्या चाहिए।

फिर भी उनकी कुछ मजबूरियाँ हैं। उनको धार्मिक दिखना है और समाज के लोगों के सामने उसका प्रदर्शन करना है और ऐसे नहीं किसी एक धर्म का बल्कि दूसरे धर्म का भी सम्मान करते दिखना है। इस देश में धर्म की ताकत को सब जानते हैं। माया नहीं मिली तो भी सर्वशक्तिमान के घर आदमी जाता है और मिल जाती है तो भी धन्यवाद देने जाता है। सर्वशक्तिमान के घर सब मांगने नहीं जाते कुछ तो केवल अपने हृदय का भक्ति भाव अपना कर्तव्य समझ कर उसे व्यक्त करते हैं तो कुछ यह अपने को दिखाने जाते हैं की हम भक्ति करते हैं।

चलिए सब ठीक। पर एक पशु की बलि। ट्वेन्टी-ट्वेन्टी का विश्व कप जीता जो कि एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी उस पर तो कप्तान ने कुछ नहीं किया। तब किसी से मन्नत क्यों नहीं मांगी। उसका महत्त्व नहीं मालुम था। वह तो उचट कर लग गयी। उसमें मेहनत नहीं की। सोचा-‘यह भी कोई टूर्नामेंट है जो मन्नत मांगें।’
उस जीत में उनका कोई योगदान नहीं था। वह तो देश के लाखों क्रिकेट प्रेमियों की दुआएं थी तो सर्वशक्तिमान उनको विश्व का जितवा दिया।उनके अब इस व्यवहार से कम से कम अब तो ऐसा ही लगता है। जब जीतकर लौटे तो लोगों ने सिर आंखों पर बिठा लिया। वह कहीं भी मत्था टेकने नहीं गए क्योंकि उसमें सर्वशक्तिमान की कोई भूमिका उनको नजर नहीं आयी। कोई पशु बलिदान होने से बच गया।
अपने वरिष्ठ खिलाडियों के सन्यास से कमजोर हो रही आस्ट्रेलिया की टीम को हराने के लिए मन्नत मांगी। वह पूरी हो गयी। उसमें साथी खिलाडियों का कोई योगदान नहीं था क्योंकि वह तो मन्नत की वजह से उनमें शक्ति आ गयी थी। मन्नत के लिए जिस पशु का वध होना था उसकी बदकिस्मती से जीते कोई अपनी किस्मत थोडे थी।

किसका नाम लें और किसका नहीं! बडे हो जाते हैं पर चरित्र बौना ही रहता है। जिन्हें नयी पीढी को अपने कर्म पर विश्वास कर आगे बढ़ने का सन्देश देने का जिम्मा है वही उसे अन्धविश्वास के अँधेरे में धकेल रहे हैं। हर तरह के दरबारों में हाजिरी लगाते हैं। संदेह होता है कि भगवान को खुश कर रहे हैं या कोई और लोग हैं जिनको खुश कर अपना काम चला रहे हैं। इधर टूथपेस्ट, साबुन, कार, और गाडी का प्रचार और उधर हर तरह की दरबार में गुहार! यह तालमेल समझ में नहीं आता।

वैसे भी भक्ति कोई दिखाने की नहीं होती-भक्ति का मतलब है एकांत साधना। जो दिखाते हैं वह ढोंग होता है।आजकल लोग शिक्षकों से पढ़ते हैं पर जीवन के लिए कोई गुरु करते नहीं है इसलिए वह क्रिकेट और फिल्म से जुडे लोगों को अपना आदर्श मान लेते है। वह लोग शिखर पर होते हैं और समाज अपने शिखर पुरुषों का ही अनुकरण करता है। इसलिए बडे लोगों के ढोंग भी समाज का हिस्सा बनते जा रहे हैं। लोग इसलिए किसी दरबार में नहीं जाते कि वहाँ अपने भक्ति भाव व्यक्त करना है बल्कि उनका उद्देश्य यह दिखाना होता है कि हम भक्त हैं। ऐसे में किसे दोष दें और किसे नहीं।

जब पीडा हो मन में तो शोर मचा दो-हिन्दी शायरी


अपनी पीड़ाओं का बयान
वह कुछ यूं करते हैं कि
किसी को शिकायत न लगे
दूसरा करे तो उनको शोर
नजर आता है
उस पर उनका शांति प्रेम जगे
यह तो आदमी के मन का खेल है
अगर पीडा हो मन में तो शोर मचा दो
दुनिया से मिला दर्द यहीं बिछा दो
कहने वालों की क्या सुनना
बदल जाते है रिश्तों के समीकरण
कभी अपना ही पराया तो
पराया अपना लगे
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