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क्रांति का इंतजार-हिंदी कविता


सावधान!
क्रांति आ रही है
डरना नहीं
तुम्हें कुछ नहीं होगा
क्योंकि तुम आदमी हो
तुम्हारे पास खोने के लिये कुछ नहीं है,
मगर खुश भी न होना
तुम्हारे लिये पाने को भी कुछ नहीं ह
—————-
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak ‘Bharatdeep’,Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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आधा आधा-हिन्दी व्यंग्य


             पचास फीसदी सफलता का अनुमान कर कोई भी काम नहीं करना चाहिए न ही किसी खेल में शामिल होना चाहिए। कम से कम हम जैसे आदमी के लिए पचासफ़ीसदी अनुमान के मामले में किस्मत कभी साथ नहीं देती। शाम को कभी देर से घर लौटते है, तब दो चाबियों के बीच के खेल में हम अक्सर यह देखते हैं की यह पचास पचास फीसदी गलत ही निकलता है। अपने घर की चाबियों के गुच्छे में तीन चाबिया होती हैं। दो चाबियों का रूप एक जैसा है। उनके तालों में बस एक ही अंतर है कि एक पुराना है और दूसरा नया। अंधेरे में यह पता नहीं लगता कि हम जिस चाबी को पकड़ कर ताला खोल रहे हैं वह उसी ताले की हैं। अनुमान करते हैं पर वह हमेशा गलत निकलता है। बाद में उसके नाकाम होने पर हम दूसरी चाबी लगाकर खोलते हैं। ताला नया है तो पहले चयन में चाबी पुराने की आती है, अगर पुराना है तो नये ताले की पहले आती है। यही स्थिति पेंट की अंदरूनी जेब में रखे पांच सौ और एक सौ के नोट की भी होती है। मानो दोनों रखे हैं और हमें पांच सौ का चाहिए तो एक सौ का पहले आता है और और जब सौ का चाहिए तो पांच सौ का आता है। उसी तरह जब कभी जेब में एक और दो रुपये का सिक्का है और साइकिल की हवा भराने पर जेब से निकालते हैं तो दो का सिक्का पहले हाथ आता है और जब स्कूटर में हवा भराते हैं तो एक रुपये का सिक्का पहले हाथ में आता है।
         यह बकवास हमने इसलिये लिखी है कि आजकल लोग बातों ही बातों में शर्त की बात अधिक करते हैं। किसी ने कहा ‘‘ऐसा है।’
        दूसरे ने कहा-‘‘ ऐसा नहीं है।’’
         पहले कहता है कि ‘‘लगाओ शर्त।’’
        अब दूसरा शर्त लगता है या नहीं अलग बात है। पहले धड़ा लगता था तो अनेक ऐसे लोग लगाते थे जो निम्न आय वर्ग के होते थे। उस समय हम उन लोगों पर हसंते थे। अब क्रिकेट पर सट्टा लगाने वाले पढ़ेलिखे और नयी पीढ़ी के लोग हैं। पहले तो हम यह कहते थे कि यह सट्टा लगाने वाला अशिक्षित है इसलिये सट्टा लगा रहा है पर अब शिक्षित युवाओं का क्या कहें?
       हमारे देश के शिक्षा नीति निर्माताओं को यह भारी भ्रम रहा है कि वह अंग्रेजी पद्धति से इस देश को शिक्षित कर लेंगे जो की अब बकवास साबित हो रहा है। पहले अंग्रेजी का दबदबा था फिर भी आम बच्चे हिन्दी पढ़ते थे कि अंग्रेजी उनके बूते की भाषा नहीं है। अब तो जिसे देखो अंग्रेजी पढ़ रहा है। इधर हमने फेसबुक पर भी देखा है कि हिन्दी तो ऐसी भाषा है जिससे लिखने पर आप अपने आपको बिचारगी की स्थिति में अनुभव करते हैं। अंग्रेजी वाले दनादन करते हुए अपनी सफलता अर्जित कर रहे हैं। मगर जब रोमन लिपि में हिन्दी सामने आती है तो हमें थोड़ा अड़चन आती है। अनेक बार ब्लॉग पर अंग्रेजी में टिप्पणियां आती हैं तब हम सोचते हैं कि लिखने वाले ने हमारा लेख क्या पढ़ा होगा? उसने शायद टिप्पणी केवल अपना नाम चमकाने के लिये दी होगी।
जब हम ब्लॉग पर किसी पाठ के टिप्पणी सूचक आंकड़े देखते हैं तब मन ही मन पूछते हैं कि हिन्दी में होगी या अंग्रेजी में। उसमें भी इस फिफ्टी फिफ्टी का आंकड़ा फैल होता है। जब सोचते हैं कि यह अंग्रेजी में होगी तो हिन्दी में मिलती है और जब सोचते हैं कि हिन्दी की सोचते हैं तो अंग्रेजी में निकलती है। फेसबुक पर यह आंकड़ा नहीं लगाते क्योंकि पता है कि केवल रोमन या अंग्रेजी में ही विषय होगा। हिन्दी में लिखने वाले केवल ब्लाग लेखक ही हो सकते हैं और उनमें से कोई फेसबुक पर हमारा साथी नहीं है।
            अपनी बकवास हम यह लिखते हुए खत्म कर रहे हैं कि अनुमानों का खेल तभी तक खेलना चाहिए जब तक उसमें अपनी जेब से कोई खर्चा न हो। क्रिकेट हो या टीवी पर होने वाले रियल्टी शो उनमें कभी भी फिफ्टी फिफ्टी यानि पचास पचास फीसदी का खेल नहीं खेलें। वहां अपना नियंत्रण नहीं है। जेब से एक की जगह दो का सिक्का आने पर उसे फिर वापस रखा जा सकता है पर किसी दूसरे के खेल पर लगाया गया पैसा फिर नहीं लौटता है। सत्यमेव जयते
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
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नए वर्ष के नए दिन कैलेंडर बदल गया-हिन्दी लेख और शायरी (new year 2012 and his calender-hindi lekh aur shayari)


              1 जनवरी 2012 सुबह से ही बरसात की बूंदों की आवाज घंटी की तरह सुनाई दे रही थी। ऐसा भी लगा कि शायद ओले गिर रहे हों। ईसवी संवत् के नये वर्ष का नया दिन इस तरह ही शंखनाद करता हुआ बता रहा था कि वह आ गया है। 31 दिसम्बर 2011 रात्रि ग्यारह बजे हम सोये तो प्रातः निद्रा खुलते ही हमारा यह अनुभव था। बिस्तर से उठने का मन इसलिये नहीं हुआ कि सर्दी लग रही थी बल्कि हम न तो उस समय योग साधना कर सकते थे न ही उद्यान में जा सकते थे जो कि हमारे लिये प्रतिदिन शुरुआत की पहली प्रक्रिया है।
             घर की बिजली भी जा चुकी थी और इस तरह धुप अंधेरे में घड़ी में समय देखना भी मुश्किल था। अलबत्ता साढ़े चार बजे का टाईम लगाकर हम जिस ट्रांजिस्टर को रखते हैं वह बज रहा था। इसका मतलब यह था कि समय उससे आगे निकल चुका है। आखिर थोड़ी उहापोह के बाद हमनें बिस्तर का त्याग किया और कमरे में ही आसन लगाकर योग साधना प्रारंभ की। वहीं कुछ सूक्ष्म व्यायाम के साथ आसन किये जिसमें देह विस्तार रूप न ले। सूक्ष्म व्यायाम, जांधशिरासन तथा सर्वांगासन करने के पश्चात् पदमासन पर बैठकर प्राणायाम किया। प्राणायाम प्रारंभ करते हुए मनस्थिति बदलने लगी। प्रतिदिन आने वाली नवीनता ने धीरे धीरे अंदर पदार्पण किया। तब नव वर्ष जैसा आभास नहंी रहा। फिर ध्यान तथा नहान के बाद अन्य नियमित अध्यात्मिक प्रक्रिया संपन्न की। अब हमारा नवीन दिन आरंभ हो चुका था मगर वर्षा ने बता दिया कि अभी हमें घर से बाहर निकलने नहीं देगी।
         कुछ देर बरसात रुकी तो हम आश्रम चले गये। वहां से कई दूसरी जगह जाने का विचार मौसम की वजह से नहीं बन सका।
       अपने वाहन पर बैठकर हम बाहर निकले तो अपने ही वाहन पर जा रहे एक मित्र ने हाथ उठाकर अभिवादन में कहा-‘‘हैप्पी न्यू ईयर’।
        हमने औपचारिकता निभाई-‘‘आपको भी बधाई’।
वह बोले-‘‘आज तो जमकर बरसात हो रही है।’’
    हमने कहा-‘‘हां, दक्षिण में थाने नाम का तूफान आया है उसका परिणाम यहां दिखाई दे रहा है। मौसम विशेषज्ञों ने बता दिया था कि इस तरह की बरसात होगी।’
       वह बोले-‘‘पर दक्षिण तो बहुत दूर है।’’
      हमने कहा‘‘हवाओं को कौन हवाई जहाज या रेल में सवार होना होता है। न ही वह किलोमीटर की माप जानती हैं जो डर जायें। वह तो चलती हैं तो चलती हैं। बादलों को भी कुछ नहंी दिखता। जहां मौका मिला पानी गिरा दिया। वैसे अपने इलाके में पानी की जरूरत है। एक तरह से कहें तो यह नये वर्ष के पहले ही दिन अमृत बरस रहा है।’’
       भले ही सर्दी बढ़ती है पर मावठ की बरसात हमारे उत्तर भारत में अमृत मानी जाी है। यही बरसात न केवल फसलों के लिये सहायक है बल्कि गर्मी तक के लिये भूजल स्तर को भी बनाये रखती है। इस दृष्टि से ईसवी संवत 2012 का नया दिन एक शुभ संदेश लेकर आया है। इतना जरूर है कि ऐसे में घर के बाहर मौज मस्ती करने में बाधा आती है। फिर हमारे देश की सड़कें इस तरह की हैं कि सामान्य स्थिति में भी वहां रात्रि को चलना खतरनाक होता है ऐसे में बरसात का पानी वहां संकट बन जाता है तब दुर्घटनाओं का भय अधिक दिखता है। फिलहाल भारत के दक्षिण के साथ ही जापान में यही दिन खतरनाक परिणामों वाला रहा है। जिस थाने ने उत्तर भारत में अमृतमयी बरसात की है वही दक्षिण में भयंकर उत्पात मचाता रहा है। जापान में भूकंप के तेज झटके अनुभव किये गये हैं। वैसे उत्तर भारत में भी सभी के लिये आरामदायक स्थिति केवल स्वस्थ लोगों के लिये हो सकती है अगर वह संयम के साथ रहें तो, मगर अनेक प्रकार रोगियों के लिये यह ठंड अत्यंत दर्दनाक हो जाती है। कुल मिलाकर हम नया वर्ष या नया दिन पर खुशियां जो मनाते हैं वह केवल मन को बहलाने के लिये है जीवन और प्रकृत्ति का जो रिश्ता है उसका इससे कोई संबंध नहीं है। इस अवसर पर प्रस्तुत है कल लिखी गयी एक कविता-
दिन बीतता है
देखते देखते सप्ताह भी
चला जाता है
महीने निकलते हुए
वर्ष भी बीत जाता है,
नया दिन
नया सप्ताह
नया माह
और नया वर्ष
क्या ताजगी दे सकते हैं
बिना हृदय की अनुभूतियों के
शायद नहीं!
रौशनी में देखने ख्वाब का शौक
सुंदर जिस्म छूने की चाहत
शराब में जीभ को नहलाते हुए
सुख पाने की कोशिश
खोखला बना देती है इंसानी दिमाग को
मौज में थककर चूर होते लोग
क्या सच में दिल बहला पाते हैं
शायद नहीं!
————-
             वर्ष का बदलना तो कैलेंडर बदलने से ही हो जाता है। हमने कैलेंडर नया खरीदा आज सुबह लगा दिया ताकि अवसर पड़ने पर तारीखें देख सकें। शादी विवाह के निमंत्रण मिलने पर वहां जाने के कार्यक्रम बनाने या किसी त्यौहार पर उसे बाहर मनायें या घर में ही, यह फैसला करने में कैलेंडर बड़ा सहायक होता है। उसमें दूध का हिसाब लिखने का भी काम किया जा सकता है। मन चाहे तो अपना भविष्य फल भी देखा जा सकता है। पुराने साल का जो समय था वह निकल गया। अब नया इसलिये लाये कि शायद उसमें हमारे लिये नया मामला बन जाये। हां मन को बहलाने के लिये यह ख्याल बुरा नहीं है। यह मन ही तो है जो मनुष्य को चलाता है। मनुष्य की बुद्धि को यह भ्रम होता है कि वह उसे चला रही है।
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नया वर्ष आया यानि कैलेंडर बदल गया-हिन्दी लेख (new year meens change of calengder naya varsha ya sal ka ana yani celader ka badlana-hindi lekh aur kavita or article or poem)

साफ तस्वीर दिखाओ-हिन्दी हास्य कविता (saf tasweer dikhao-hindi hasya kavita)


फंदेबाज हांफता हुआ आया और बोला
’’दीपक बापू सभी टीवी चैनलों ने
पाकिस्तान से भारत में आयातित
फिल्म अभिनेत्री का नग्न फोटो दिखाया,
मगर बहुत सारा हिस्सा काले रंग में छिपाया,
आप लिखो इस पर कोई कविता,
शायद आपके ऊपर लगा फ्लाप का ठप्पा मिट जाये,
बहने लगे सफलता की सरिता,
देखो
उसकी हरकातें से अपने देश में
पूरा ज़माना बिगड़ जायेगा,
चारों तरफ नग्न फोटो का जाल छायेगा,
अपनी संस्कृति इस तरह मिट जायेगी,
संस्कारों की जगह संकीर्णता आयेगी,
आज जैसे ज्ञानियों और ध्यानियों पर
अब देश का भविष्य टिका है
कुछ करो
वरना देश की अस्मिता खतरे में पड़ जायेगी।’’

दीपक बापू ने घूरकर फंदेबाज को देखा
फिर मुंह में रखी लोंग चबाते हुए कहा
‘‘कमबख्त,
पहली बात यह है कि हमें ज्ञानी और ध्यानी कहना
एक तरह से मजाक लग रहा है,
या फिर तू तस्वीर देखकर वाकई
हादसे का शिकार हो गया है
इसलिये तेरा तीसरा नेत्र जग रहा है,
वरना क्या हमारी कविताऐं पढ़कर
तू अभी तक समझा नहीं इस बाज़ार का खेल,
खींचना है जिसे आम आदमी की जेब से पैसा
भले ही निकल जाये उसका तेल,
हम किस आधार पर
इस फिक्स निर्वस्त्र धारावाहिक पर
अपनी हास्य कविता लिखें,
बिना पूरी तस्वीर देखे टिप्पणी कर
किस तरह जिम्मेदार शहरी दिखें,
हमने देखा टीवी चैनलों पर
पूरी तस्वीर नहीं दिखा रहे हैं
किसी तरह नैतिकता का पाठ
आज के जवानों को सिखा रहे हैं,
लगता है तेरे को गुस्सा इस बात पर नहीं कि
उसने नग्न फोटो क्यों प्रकाशित कराया,
बल्कि तुझे अफसोस है इस बात का
फोटो खिंचते समय वहां तू नहीं था
इस अफसोस ने तुझे सताया,
बिगड़ा है इस बात पर कि
पूरा फोटो किसी चैनल ने क्यों नहीं दिखाया,
तेरी आंखें तरस गयी
पाकिस्तानी अभिनेत्री का जिस्म देखने के लिये
जिसने अपने देश को नंगपन सिखाया,
मगर गुरु हम भी कम नहीं है,
बाज़ार हमसे लिखवा ले
आधे अधूरे प्रमाण पर
उसमें यह दम नहीं है,
पहले पूरा फोटो लाकर दिखाओ,
हमसे एक फड़कती हास्य कविता लिखाओ,
एक नंगे फोटो से संस्कृति और संस्कारों पर खतरा
दिखाकर हमें न डराओ,
हमारे दर्शन में बहुत ताकत है
यह सभी जानते हैं,
मगर दौलत और शौहरतमंद इंसान
अपनी हवस के लिये
धर्म, संस्कृति और नैतिकता की सीमाऐं
लांघ जाते हैं
यह भी मानते हैं,
अपनी हवस मिटाने के लिये
दुश्मन देश से दोस्ती करते हैं,
फिर बिगड़ जाये तो
यहां आकर देशभक्ति का दम भरते हैं,
क्रिकेट, फिल्म और टीवी के धारावाहिकों में
फिक्सिंग होती है यह सभी को पता है,
फंसते जो लोग उनकी अपनी खता है,
इसलिये आधे अधूरे फोटो पर
हम कुछ नही लिख सकते,
शालीनता और अश्लीलता के बीच
पाखंड बहुत चल रहा है
हम अपने को उसमें फंसते नहीं दिख सकते।’’
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
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इश्क़ आशिक और महंगाई-हिन्दी हास्य कविता (ishq, ashik aur mehangai-hindi hasya kavita)


आशिक ने कहा माशुका से कहा
‘‘तुम अपनी फरमाईशें कम किया करो
अब बढ़ गयी है मंदी और महंगाई,
एक जगह से क्लर्क पद से छंटनी हुई
दूसरी जगह बन गया हूं चपरासी
घट गयी हैं मेरी कमाई,
इस तरह मेरा कबाड़ा हो जायेगा,
देता हूं तुम्हें ऑटो का जो किराया
पेट्रोल के बढ़ते भाव से
उसका भी महंगा भाड़ा हो जायेगा,
मुझ पर कुछ पर तरस खाओ,
अपने इश्क की फीस तुम घटाओ।’’

सुनकर बिगड़ी माशुका और बोली
‘‘सुनो जरा मेरी बात ध्यान से,
महंगाई शब्द न चिपकाओं मेरे कान से,
देशभक्ति हो या इश्क
जज़्बात बाज़ार में बिकते हैं,
खरीदने का दम हो जिनमें
वहीं सौदा लेकर टिकते हैं,
सौदागरों के भोंपू चीख चीख कर
दिखाते हैं देशभक्ति,
वही गरीब की जिंदगी को सस्ता बनाकर
दिखते हैं अपने पैसे की शक्ति,
उनके कहने पर पर ही
सर्वशक्तिमान की तरफ इशारा करते हुए
आशिक माशुकाओं के इश्क पर लिखते हैं शायर,
जिस्म की चाहत होती मन में
दिखाने के लिये इबादत करते हैं कायर,
आजकल इश्क का मतलब है
माशुकाओं को सामान उपहार में देना,
चाहे पड़े बैंक से पैसा
भारी ब्याज पर उधार में लेना,
अगर तुम्हारी जेब तंग है,
इश्क अगर जारी रहा
मेरी त्वचा पड़ जायेगी फीकी
जिसका अभी गोरा रंग है,
मैं कोई ढूंढ लूंगी
ऊंची कमाई वाला आशिक,
लड़कियों की कमी है
जायेगा जल्दी मेरा इश्क बिक,
यह मंदी और महंगाई वाली
बात न सुनाओ,
ढूंढ लो कोई सस्ती माशुका
मेरे सामने से तुम जाओ।’’

कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
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इतिहास और सिंहासन-हिन्दी कविता


अपने घर में सोने के भंडार
तुम भरवाते रहो,
गरीब इंसान की रोटी से
टुकड़ा टुकड़ा कर चुरवाते रहो,
जब तक बैठे हो महलों में
झौंपड़ियों को उजड़वाते रहो।
यह ज्यादा नहीं चलेगा,
ज़माने की भलाई करने के नाम पर
सिंहासनों पर बुत बनकर बैठे लोगों
सुनो जरा यह भी
किसी दिन इतिहास अपना रुख बदलेगा,
किसी दिन तुम्हारी शख्सियत का
काला चेहरा भी हो जायेगा दर्ज
तब तक भले ही अपने तारीफों के पुल
कागजों पर जुड़वाते रहो।
———-
वातानुकूलित कक्षों में बैठकर वह
देश से गरीबी हटाने के साथ
विकास दर बढ़ाने पर चिंत्तन करते हैं,
बहसों के बाद
कागजों पर दौलतमंदों के
घर भरने के लिये शब्द भरते हैं।
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  ‘Bharatdeep’,Gwalior
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कन्या भ्रूण हत्याओं का नतीजा कॉमेडी पर-हिन्दी व्यंग्य (kanya bhrun hatyaon ka nateeza comedy par-hindi satire


              यह कहना कठिन है कि यह कन्या भ्रुण हत्याओं की वजह से देश में लड़कियों की संख्या कम होने का परिणाम है या छोटे पर्दे लेखकों की संकीर्ण रचनात्मकता का प्रभाव कि हास्य-व्यंग्य पर आधारित कार्यक्रम यानि कॉमेडी के लिये पुरुष पात्रों से महिलाओं का अभिनय कराया जा रहा है। इतना तय है कि इस कारण हास्य व्यंग्य पर आधारित धारावाहिक अपना महत्व आम जनमानस में खो रहे हैं। हैरानी की बात तो यह है कि हास्य व्यंग्य पर आधारित एक चैनल भी अब अपनी कहानियों में पुरुष अभिनेताओं को महिलाओं के पात्र निभाने के लिये प्रेरित कर रहा है। एक कार्यक्रम कॉमेडी सर्कस ने तो हद ही कर दी है। उसमें पुरुष जोड़ी को महिला युगल पात्रों का अभिनय कराया तो महिला से पुरुष और पुरुष से महिला पात्र कराने अभिनय भी प्रस्तुत किया।
             हम यहां कोई आपत्ति नहीं कर रहे हैं न कोई बंदिश आदि की मांग कर रहे हैं। बस एक बात हास्य व्यंग्य लेखक और पाठक होने के नाते जानते हैं कि ऐसी मूर्खतापूर्ण प्रस्तुतियों से हंसी तो कतई नहीं आती है। फिर आज की युवा पीढ़ी से यह आशा करना तो बेकार ही है कि वह ऐसे हास्य व्यंग्य को समझ पायेगी जो कि विशुद्ध रूप से विपरीत लिंगी यौन आकर्षण के कारण भी इनको देखती है। अगर कहीं महिला पात्र का निर्वाह कोई पुरुष करता है तो वह युवकों में कोई यौन आकर्षण पैदा नहीं करता। वास्तव में जो हास्य व्यंग्य देखते हैं उनके लिये भी यह निराशाजनक होता है। सब जानते हैं कि विपरीत लिंगी योन आकर्षण भी पर्दे की प्रस्तुतियों को सफल बनाने में योग देता है और यह देश अभी समलैंगिक व्यवहार के लिये तैयार नहीं है जैसा कि कुछ बुद्धिजीवी चाहे हैं। इस तरह के अभिनय अव्यवसायिक रुख का परिणाम लगता है भले ही चैनल वालों को इसकी परवाह नहीं क्योंकि वहां कंपनी राज्य चलता है जिनके उत्पाद बिकने हैं चाहें विज्ञापन दें या नहीं। विज्ञापन तो उनके लिये प्रचार माध्यमों को नियंत्रित करनो का जरिया मात्र है।
             हमें लगता है कि यह शायद इसलिये हो रहा है कि इन पर्दे के व्यवसायियों को महिला पात्र मिल नहीं पा रही हैं या फिर आजकल की लड़कियां भी जागरुक हो गयी हैं और -जैसा कि हम सुनते हैं कि कला की दुनियां दैहिक यानि कास्टिंग काउच शोषण होता है-वह कम संख्या में ही मिल रही हैं। यह सही है कि पर्दे की रुपहली दुनियां के सभी प्रशंसक हैं पर कास्टिंग काउच जैसे समाचारों की वजह से अब आम लड़कियां नायिका बनने के सपने अधिक मात्रा में नहीं देखती। संभव है कि लड़कियों की संख्या कम होती जा रही है जिस कारण उसका प्रभाव हो या फिर बढ़ती जनसंख्या के बावजूद पर्दे पर अभिनय करने वाली लड़कियों की संख्या कार्यक्रम निर्माताओं की संख्या के अनुपात में न बढ़ी हो। इसलिये संतुलन न बन पा रहा हो। जैसा कि हम जानते हैं कि हमारे देश का धनपति तथा बाहुबली वर्ग सारी बातें मंजूर कर सकता है पर काम देने के मामले में अपनी शर्तें थोपने की प्रवृत्ति से मुक्त नहीं हो पाते। इसलिये जिनको अभिनय के लिये लड़कियां अपनी शर्तों पर मिलती हैं वह कार्यक्रम बना लेते हैं जिनको नहीं मिलती वह पुरुषों से महिला पात्रों का अभिनय कराने वाली पटकथा लिखवाते हैं। प्रचार प्रबंधकों की मनमानी का ही यह परिणाम है कि क्रिकेट की तरह छोटे पर्दे के कथित वास्तविक प्रसारण यानि रियल्टी शो भी फिक्सिंग के आरोपो से घिरे रहते हैं। अभी हाल ही में बिग बॉस-5 को हिट करने के लिये भी क्षेत्रीयता का मुद्दा उठाया गया। लोगों ने साफ माना कि यह केवल प्रचार बढ़ाने के लिये हैं।
            बहरहाल एक बात तय है कि हिन्दी से कमाने को सभी लालायित हैं पर शुद्ध लेखकों से लिखवाने के लिये कोई तैयार नहीं है। यही कारण कि विदेशी धारावहिकों से अनुवाद कर लिखवाया जाता है। क्लर्कों को कथा पटकथा लेखक कहा जाता है। विदेशी कार्यक्रमों की की हुबहु नकल पर कार्यक्रम प्रस्तुत किये जाते हैं। देश के संस्कारों की समझ किसी को नहीं है न उनको जरूरत है। यहां आम आदमी को तो एक निबुद्धि इंसान माना जाता है। कॉमेडी के नाम पर इसलिये फूहड़ कार्यक्रम प्रस्तुत किये जा रहे हैं। कॉमेडी में नारी पर कटाक्ष करने के लिए जिस तरह पुरुष पात्रों को साड़ियाँ और सूट पहनाया जा रहा है उससे तो यही लगता है कि कन्या भ्रूण हत्याओं के परिणाम से हिन्दी कॉमेडी भी प्रभावित हुई है।

—————

कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
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महंगाई और गरीब की फिक्र-हिन्दी व्यंग्य कविताएँ (mehangai aur garib ki fikra-hindi vyangya kavitaen)


जरूरत चीजों की दामों में महंगाई पर
उनको फिक्र नहीं है,
गरीब के दर्द का उनके बयानों में जिक्र नहीं है,
मगर फिर भी देशभक्ति दिखाने का नारा दिये जाते हैं,
कौन समझायें उनको
वफादारी के सबसे बड़े सबूत हैं कुत्ते
वह भी रोटी न देने पर गद्दार हो जाते हैं।
————
बरसों से सुन रहे हैं
सुरसा की तरह बढ़ रही महंगाई,
इंतजार है हमें
कोई हनुमान आकर करे लड़ाई।
इंसानों में फरिश्ते नहीं होते,
हुक्मराम और प्रजा में बराबर के रिश्ते नहीं होते,
महलों में बैठे लोग
मशगुल हैं अपने ही आप में
कभी लड़ते लूट की कमाई पर
कभी करते एक दूसरे की बड़ाई।
————–
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
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यह मुमकिन नहीं है-हिन्दी शायरी (yah mumkin hain hai-hindi shayari)


जोश का समंदर दिल में पैदा कर लो।
बहते जाओ नाव की तरह
तेज चलती हवाऐं
उठती हुई ऊंची लहरें
तुम्हें डुबा नहीं सकती
अपने अंदर
मंजिल तक पहुंचने का हौंसला भर लो।
——
टूटे लोग
तुम्हारे हौंसलें को जोड़े
यह मुमकिन नहीं हैं,
अपनी इज्जत को तरसा जमाना
बस जानता है पैसा कमाना,
तुम्हारे काम पर कभी दाद देगा
यह मुमकिन नहीं है।
———–
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
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गरीबी और उपवास-हिन्दी हास्य कविता (garibi aur upavas-hindi hasya kavita)


पोते ने पूछा दादाजी से
‘‘दादाजी आप यह बताओ
बड़े बड़े लोग उपवास क्यों रखते हैं,
छक कर खाते मलाई और मक्खन
फिर भी क्यों भूख का स्वाद चखते हैं।
दादाजी ने कहा
‘‘बेटा,
गरीबों का दिल जीतने के लिये
बड़े लोग उपवास इसलिये करते हैं
क्योंकि उनकी भूख शांत करने के लिये
रोटियां बांटने का जिम्मा लेकर मिली कमीशन से
अपनी तिजोरी भी वही भरते हैं,
देख लेना 32 रुपये खर्च करने वाला
अब गरीब नहीं माना जायेगा,
फिर भी गरीबों की संख्या
आंकड़ों में बढ़ती दिखेगी,
बड़ों की कलम मदद की रकम भी बड़ी लिखेगी,
उनको गरीबों से हमदर्दी नहीं है
फिर भी अपनी शौहरत और दौलत
बढ़ाने के लिये
वह गरीबी हटाने की योजना हमेशा साथ रखते हैं।
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
hindi poet,writter and editor-Deepak ‘Bharatdeep’,Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com
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अमीरों का आशियाना-हिन्दी कविता


पहले अपनी फिक्र और
फिर अपनों की चिंता में
बड़े लोग महान बनते जा रहे हैंे,
कहीं पूरी बस्ती
कहीं पूरे शहर
खास पहचान लिये
इमारतों से तनते जा रहे हैं।
वहां बेबस और लाचार
आम इंसान का प्रवेश बंद है,
हर आंख पसरी है उनके लिये
जिनके पास सोने के सिक्के चंद हैं,
दब रही है गरीब की झुग्गी
अमीरी के आशियाने उफनते आ रहे हैं।
———
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak  “Bharatdeep”,Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

महानता की फिक्र में-हिन्दी कविता


पहले अपनी फिक्र और
फिर अपनों की चिंता में
बड़े लोग महान बनते जा रहे हैंे,
कहीं पूरी बस्ती
कहीं पूरे शहर
खास पहचान लिये
इमारतों से तनते जा रहे हैं।
वहां बेबस और लाचार
आम इंसान का प्रवेश बंद है,
हर आंख पसरी है उनके लिये
जिनके पास सोने के सिक्के चंद हैं,
दब रही है गरीब की झुग्गी
अमीरी के आशियाने उफनते आ रहे हैं।
———
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
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कमीज और कफन में कमीशन-हिन्दी कविता (kamij aur kafan mein commision-hindi pooem


जिंदगी में दोस्ती और रिश्तों के चेहरे बदल जाते हैं,
कुदरत के खेल देखिये, नतीजे सभी में वही आते हैं।
कमीज पर क्या, कफन में भी कमीशन की चाहत है,
दवाई लेने के इंतजार मे खड़े, कब हम बीमारी पाते हैं।
हमारी खुशियों ने हमेशा जमाने को बहुत सताया है,
गम आया कि नहीं, यही जानने लोग घर पर आते हैं।
कहें दीपक बापू, भरोसा और वफा बिकती बाज़ार में
इंसानों में जिंदा रहे जज़्बा, यही सोच हम निभाये जाते हैं।
———
कवि, लेखक और संपादक-दीपक “भारतदीप”,ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak “BharatDeep”,Gwalior

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चोर के हाथ में भविष्य-हिन्दी हास्य कविता (chori ka bhavishya-hindi hasya kavita


चोर पहुंचा और एक हजार का नोट
हाथ में देते हुए बोला
‘‘महाराज,
मेरा हाथ देकर बताओ
कौनसा धंधा करूं, यह समझाओ,
चोरी या जेब काटने का,
दिन बुरे चल रहे हैं
कब आ जाये दिन धूल चाटने का,
अनेक जगह सोने की चोरी की
पता चला सभी जगह नकली मिला माल,
खाली जा रहा है पूरा साल,
आपको देखा तो
भविष्य पूछने के लिये
एक हजार का नोट किसी की जेब काटकर आया,
किसी का धन चुरा सकते हैं
पर अक्ल नहीं
अब यह आपका काम देखकर समझ पाया।’’

ज्योतिषी ने नोट को घुमा फिराकर देखा
फिर उसे वापस थमाते हुए कहा
‘‘बेटा,
तुम्हारा हाथ देखने की जरूरत नहीं,
जन्मपत्री भी मत दिखाना कहीं,
तुम्हारी किस्मत अब साथ छोड़ रही है
असलियत की तरफ मोड़ रही है,
यह नोट भी नकली है,
पर जिंदगी तुम्हारी असली है,
इससे अच्छा है तुम कहीं
ठेला चलाने का धंधा प्रारंभ करो,
न अब बुरे कर्म का दंभ भरो,
रकम छोटी आयेगी,
पर सच को साथ लायेगी,
अब तुम जाओ,
अभी तक लोगों से लिया पैसा
पर तुम्हें मुफ्त में भविष्य बताया।
———–

संकलक लेखक  एवं संपादक-दीपक   ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
Editor and writer-Deepak  ‘Bharatdeep’,Gwalior
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आसमान से रिश्ते तय होकर आते हैं-हिन्दी कविताएँ


उधार की रौशनी में
जिंदगी गुजारने के आदी लोग
अंधेरों से डरने लगे हैं,
जरूरतों पूरी करने के लिये
इधर से उधर भगे हैं,
रिश्त बन गये हैं कर्ज जैसे
कहने को भले ही कई सगे हैं।
————–
आसमान से रिश्ते
तय होकर आते हैं,
हम तो यूं ही अपने और पराये बनाते हैं।
मजबूरी में गैरों को अपना कहा
अपनों का भी जुर्म सहा,
कोई पक्का साथ नहीं
हम तो बस यूं ही निभाये जाते हैं।
————–
लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर, मध्यप्रदेश
writer and editor-Deepak Bharatdeep,Gwalior, madhyapradesh
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