Tag Archives: hindi shayri

जिंदा आदमी की इज्जत-हिन्दी शायरी


हम तय नहीं करेंगे
जमाना तय करेगा कि
ज़िंदा आदमी की इज्ज़त क्या होगी,
मर गया जो
उसको कैसे जन्नत नसीब होगी।
कहें दीपक बापू
देखा है हमने
सयानों को बता रहे हैं
कर्मकांड का योग
अक्ल से पैदल
और शरीर के रोगी।
——————
हवा के झौंके से काँपने वाले
तूफानों से लड़ने वालों को
रास्ता दिखा रहे हैं,
नाकामी रही जिनकी साथी
कामयाबी के कायदे
लोगों को वही सिखा रहे हैं।
कहें दीपक बापू
दौलत, शौहरत और ताकत पर
इतराते लोग
फरिश्तों की सूची में
अपना नाम लिखा रहे हैं।
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
poet, Writer and editor-Deepak ‘Bharatdeep’,Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका

४.दीपकबापू कहिन
5.हिन्दी पत्रिका 
६.ईपत्रिका 
७.जागरण पत्रिका 
८.हिन्दी सरिता पत्रिका 
९.शब्द पत्रिका

यह मुमकिन नहीं है-हिन्दी शायरी (yah mumkin hain hai-hindi shayari)


जोश का समंदर दिल में पैदा कर लो।
बहते जाओ नाव की तरह
तेज चलती हवाऐं
उठती हुई ऊंची लहरें
तुम्हें डुबा नहीं सकती
अपने अंदर
मंजिल तक पहुंचने का हौंसला भर लो।
——
टूटे लोग
तुम्हारे हौंसलें को जोड़े
यह मुमकिन नहीं हैं,
अपनी इज्जत को तरसा जमाना
बस जानता है पैसा कमाना,
तुम्हारे काम पर कभी दाद देगा
यह मुमकिन नहीं है।
———–
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
poet, Writer and editor-Deepak ‘Bharatdeep’,Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका

४.दीपकबापू कहिन
5.हिन्दी पत्रिका 
६.ईपत्रिका 
७.जागरण पत्रिका 
८.हिन्दी सरिता पत्रिका 
९.शब्द पत्रिका

पत्थरों पर टिकी आस्था-हिन्दी व्यंग्य कविता


पत्थरों पर है टिकी है आस्था
उन पर पाँव मत रखना
वरना टूट जाएंगी,
धरती को चाहे जितना रौंदते रहो
मगर पर्दे पर चमकने वाली
देवियों पर से नज़र मत हटाना
वरना खुशियां रूठ जाएंगी।
सुना रहे हैं रोज
एक नया आसमानी सच
बाज़ार के सौदागरों के भौपू
उन पर ही कान धरना
वरना तरक्की की उम्मीदें रूठ जाएंगी।
यह अलग बात है
लुटते रहोगे हमेशा
ख्याली रोटियाँ कभी नहीं पक पाएँगी।
कवि, लेखक और संपादक-दीपक “भारतदीप”,ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak “BharatDeep”,Gwalior

यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है।

आसमान से रिश्ते तय होकर आते हैं-हिन्दी कविताएँ


उधार की रौशनी में
जिंदगी गुजारने के आदी लोग
अंधेरों से डरने लगे हैं,
जरूरतों पूरी करने के लिये
इधर से उधर भगे हैं,
रिश्त बन गये हैं कर्ज जैसे
कहने को भले ही कई सगे हैं।
————–
आसमान से रिश्ते
तय होकर आते हैं,
हम तो यूं ही अपने और पराये बनाते हैं।
मजबूरी में गैरों को अपना कहा
अपनों का भी जुर्म सहा,
कोई पक्का साथ नहीं
हम तो बस यूं ही निभाये जाते हैं।
————–
लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर, मध्यप्रदेश
writer and editor-Deepak Bharatdeep,Gwalior, madhyapradesh
http://dpkraj.blogspot.com

                  यह आलेख/हिंदी शायरी मूल रूप से इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका’पर लिखी गयी है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन के लिये अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की हिंदी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.अनंत शब्दयोग

4.दीपकबापू   कहिन
५.ईपत्रिका 
६.शब्द पत्रिका 
७.जागरण पत्रिका 
८,हिन्दी सरिता पत्रिका 
९शब्द योग पत्रिका 
१०.राजलेख पत्रिका 

पहाड़ से टूटे पत्थर-हिन्दी व्यंग्य कविता


पहाड़ से टूटा पत्थर
दो टुकड़े हो गया,
एक सजा मंदिर में भगवान बनकर
दूसरा इमारत में लगकर
गुमनामी में खो गया।
बात किस्मत की करें या हालातों की
इंसानों का अपना नजरिया ही
उनका अखिरी सच हो गया।
जिस अन्न से बुझती पेट की
उसकी कद्र कौन करता है
रोटियां मिलने के बाद,
गले की प्यास बुझने पर
कौन करता पानी को याद,
जिसके मुकुट पहनने से
कट जाती है गरदन
उसी सोने के पीछे इंसान
पागलों सा दीवाना हो गया।
अपने ख्यालों की दुनियां में
चलते चलते हर शख्स
भीड़ में यूं ही अकेला हो गया।
———–
कवि, लेखक और संपादक-दीपक “भारतदीप”,ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak “BharatDeep”,Gwalior

http://rajlekh-patrika.blogspot.com

हिन्दी हास्य कविता-नारे लगाने से भ्रष्टाचार नहीं मिटता (hindi hasya kavita-nare lagane se bhrashtachar nahin mital)


पोते ने का दादाजी से
‘कल हम सब बच्चे अपनी शिक्षिका के साथ
भ्रष्टाचार विरोधी रैली में जायेंगे,
खूब जोर से नारे लगायें,
अपनी कोशिश से इस देश में
 ईमानदारी  का युग फिर लायेंगे।’

सुनकर दादाजी  ने कहा
‘‘बेटा,
तुम जाओ हमें आपत्ति नहीं
पर शिक्षिका ने तुम्हें
भ्रष्टाचार का मतलब समझाया भी है  कि नहीं
लगता  नहीं वह भी जानती होगी,
बस नारे लगाना ही क्रांति मानती होगी,
सच बात तो यह है कि
इस संसार में भ्रष्टाचर मिटा सके,
ऐसा कोई जंतर मंतर नहीं है,
संसार के सारे इंसानों को
अपने कर्म में खोट भी लगता है शिष्टाचार
दूसरे का हर कर्म माने भ्रष्टाचार
सोच कां अंतर वहीं हैं,
हर कोई
पहले दूसरे से सुधरने की आशा करे,
फिर अपने भी उसी राह पर चलने का दिल में भाव भरे,,
यही बेईमानी सभी में आती है,
दूसरा शख्स झौंपड़ी में ही मरे,
अपनी इमारत चमचमाती होने  की
चाहत हर कोई धरे,
यही सोच भ्रष्टाचार की तरफ ले जाती है,
बड़े होकर
अगर तुम चल सको सत्य की राह
समझ लो पूरी हो जायेगी ईमानदारी लाने की चाह,
ऐसा ही हर कोई करे
तो भ्रष्टाचार मिट जायेगा,
वरना पहले से ही बढ़ा रहा है मुंह
सुरसा की तरह
अब और भी बढ़ायेगा,
हम भले उसे मिटाने के नारे लगाते
जीवन गुजारते जायेंगे।’
————–
लेखक संपादक-दीपक “भारतदीप”, ग्वालियर 
writer and editor-Deepak “Bharatdeep” Gwalior
—————–
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका

४.दीपकबापू कहिन
5.हिन्दी पत्रिका 
६.ईपत्रिका 
७.जागरण पत्रिका 
८.हिन्दी सरिता पत्रिका 
९.शब्द पत्रिका

नोटों से भरा है दिल जिनका-हिन्दी कविता (noton se bhara hai dil jinka-hindi poem)


हलवाई कभी अपनी मिठाई नहीं खाते
फिर भी तरोताजा नज़र आते हैं।
बेच रहे हैं जो सामान शहर में
उनकी दवा और सब्जी शामिल हैं जहर में
कहीं न उनके मुंह में भी जाता है
मग़र गज़ब है उनका हाज़मा
ज़हर को अमृत की तरह पचा जाते हैं।
———————–
सुनते हैं हर शहर में
दूध, दही और सब्जी के साथ
ज़हर बिक रहा है,
फिर भी मरने वालों से अधिक
जिंदा लोग घूमते दिखाई दे रहे हैं,
सच कहते हैं कि
पैसे में बहुत ताकत है
इसलिये नोटों से भरा है दिल जिनका
बिगड़ा नहीं उनका तिनका
बेशर्म पेट में जहर भी अमृत की तरह टिक रहा है।
———-

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

————————-
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका

सौदागर का खाता फलता रहे-हिन्दी व्यंग्य शायरी


गरीबी हटाओ,
धर्म बचाओ
और चेतना लाओ
जैसे नारों से गुंजायमान है
पूरा का पूरा प्रचार तंत्र।
चिंतन से परे,
सुनहरी शब्दों से नारे भरे,
और वातानुकूलित कक्ष में
वक्ता कर रहे बहस नोट लेकर हरे,
खाली चर्चा,
निष्कर्ष के नाम पर काले शब्दों से सजा पर्चा,
प्रचार के लिये बजट ठिकाने के लिये
करना जरूरी है खर्चा,
भले ही आम आदमी हाथ मलता रहे,
मगर बाज़ार का काम चलता रहे,
सौदागर का खाता फलता रहे,
नयी सभ्यता का यही है अर्थतंत्र।
पैसे के लिये जीना,
पैसे लेकर पीना,
पैसा चाहिए बिना बहाऐ पसीना,
आधुनिक युग का यही है मूलमंत्र।
——–

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

————————-
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका

यकीन अब नहीं होता-हिन्दी शायरी


अपने को नायक दिखाने के लिये
उन्होंने बहुत सारे जुटा लिये
किराये पर खलनायक,
अपने गीत गंवाने के लिये
खरीद लिये हैं गायक।
यकीन अब उन पर नहीं होता
जो जमाने का खैरख्वाह
होने का दावा करते हैं
अपनी ताकत दिखाने के लिये
बनते हैं मुसीबतों को लाने में वही सहायक।
——————–
धोखे, चाल और बेईमानी का
अपने दिमाग में लिये
बढ़ा रहे हैं वह अपना हर कदम,
अपनी जुबान से निकले लफ्ज़ों
और आंखों के इशारो से
जमाने का भला करने का पैदा कर रहे वहम।
भले वह सोचते हों मूर्ख लोगों को
पर हम तोलने में लगे हैं यह कि
कौन होगा उनमें से बुरा कम,
किसे लूटने दें खजाना
कौन पूरा लूटेगा
कौन कुछ छोड़ने के लिये
कम लगायेगा दम।
———-

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

————————-
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका

खुद नाकाम, दूसरों को कामयाबी का पाठ पढ़ा रहे हैं-हिन्दी हास्य कवितायें


अपने अपने मसलों पर
चर्चा के लिये उन्होंने बैठक बुलाई,
सभी ने अपनी अपनी कथा सुनाई।
निर्णय लेने पर हुआ झगड़ा
पर तब सुलह हो गयी,
जब नाश्ते पर आने के लिये
आयोजक ने अपनी घोषणा सुनाई।
———
खुद रहे जो जिंदगी में नाकाम
दूसरों को कामयाबी का
पाठ पढ़ा रहे हैं।
सभी को देते सलीके से काम करने की सलाह,
हर कोई कर रहा है वाह वाह,
इसलिये कागज पर दिखता है विकास,
पर अक्ल का हो गया विनाश,
एक दूसरे का मुंह ताक रहे सभी
काम करने के लिये
जो करने निकले कोई
उसकी टांग में टांग अड़ा रहे हैं।
ऐसे कर
वैसे कर
सभी समझा रहे हैं।
——–
अपने अपने मसलों पर
चर्चा के लिये उन्होंने बैठक बुलाई,
सभी ने अपनी अपनी कथा सुनाई।
निर्णय लेने पर हुआ झगड़ा
पर तब सुलह हो गयी,
जब नाश्ते पर आने के लिये
आयोजक ने अपनी घोषणा सुनाई।
———
तंग सोच के लोग
करते हैं नये जमाने की बात,
बाहर बहती हवाओं को
अपने घर के अंदर आने से रोकते,
नये ख्यालों पर बेबात टोकते,
ख्यालों के खेल में
कर रहे केवल एक दूसरे की शह और मात।
—————–

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

————————-
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका

सबसे अधिक कायर लोग नायक बनाये जाते हैं-हिन्दी हास्य व्यंग्य कवितायें


कायरों की सेना क्या युद्ध लड़ेगी
सबसे अधिक कायर लोग नायक बनाये जाते हैं।
कुछ खो जाने के भय से सहमे खड़े है
भीड़ में भेड़ों की तरह लोग,
चिंता है कि छिन न जायें
तोहफे में मिले मुफ्त के भोग,
इसलिये लुटेरे पहरेदार बनाये जाते हैं।
————
अब तो पत्थर भी तराश कर
हीरे बनाये जाते हैं,
पर्दे पर चल रहे खेल में
कैमरे की तेज रोशनी में
बुरे चेहरे भी सुंदरता से सजाये जाते हैं।
ख्वाब और सपनों के खेल को
कभी हकीकत न समझना,
खूबसूरत लफ्ज़ों की बुरी नीयत पर न बहलना,
पर्दे सजे है अब घर घर में
उनके पीछे झांकना भी मुश्किल है
क्योंकि दृश्य हवाओं से पहुंचाये जाते हैं।
————–

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
—————————
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका

व्यापार जज़्बातों का-हिन्दी शायरी


अपने जज़्बातों को दिल में रखो
बाहर निकले तो
तूफान आ जायेगा।
हर बाजार में बैठा हैं सौदागर
जो करता है व्यापार जज़्बातों का
वही तुम्हारी ख्वाहिशों से ही
तुमसे तुम्हारा सौदा कर जायेगा।
यहां हर कदम पर सोच का लुटेरा खड़ा है
देख कर ख्याल तुम्हारे
ख्वाब लूट जायेगा।
इनसे भी बच गये तो
नहीं बच पाओगे अपने से
जो सुनकर तुम्हारी बात
सभी के सामने असलियत गाकर
जमाने में मजाक बनायेगा।

लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

————————————-

यह आलेख इस ब्लाग ‘राजलेख की हिंदी पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिकालेखक संपादक-दीपक भारतदीप

किसे धन्यवाद दूं साधु या शैतान को-हिन्दी हास्य कविता


गुरुजी ने अपने शिष्य को
उसके घर पहुंचने का संदेश भिजवाया,
तब वह बहुत घबड़ाया
अपनी पत्नी, बेटी और बहु से बोला
‘अरे भई,
बड़ी मुद्दत बाद वह वक्त आया
जब मेरे गुरुजी ने मेरे शहर आकर
घर पहुंचने का विचार बताया,
सब तैयारी करो,
स्वागत में कोई कमी न रह जाये,
इतने बड़े शिखर पर पहुंचा
उनकी कृपा से ढेर सारे फल पाये,
अब गुरु दक्षिणी चुकाने का समय आया।’
सुनकर बहु बोली
’लगता है ससुर जी आप न अखबार पढ़ते
न ही टीवी अच्छी तरह देखते,
आजकल के गुरु हो गये ऐसे
जो अपने ही शिष्यों के घरों की
महिलाओं पर कीचड़ फैंकते,
तौबा करिये,
बाहर जाकर ही गुरु दक्षिणा भरिये,
जवानी होती दीवानी,
बुढ़ापे में आदमी हो गुरु, हो जाता है रोमानी,
गेरुऐ पहने या सफेद कपड़े,
गुरुओं के चर्चित हो रहे लफड़े,
शैतान से बच जाते हैं क्योंकि
उससे बरतते पहले ही सुरक्षा
फिर वह पहचाना जाता है,
जरूरत है साधु से बचने की जो
शैतानी नीयत से आता है,
ऐसा मेरे पिता ने बताया।’

बहु के समर्थन में सास और
ननद ने भी अपना सिर हिलाया
तब ससुर बोले
‘चलो बाहर ही जाकर
उनके दर्शन करके आता हूं
पर तुम्हारी एकता देखकर सोचता हूं कि
किसे धन्यवाद दूं
साधु या शैतान को
किसने सास बहु और ननद-भाभी को
किसी विषय पर सहमत बनाया।’
————————

बाज़ार के हरफनमौला-हिन्दी हास्य कविताएँ/शायरियां


बाजार के खेल में चालाकियों के हुनर में
माहिर खिलाड़ी
आजकल फरिश्ते कहलाते हैं।
अब होनहार घुड़सवार होने का प्रमाण
दौड़ में जीत से नहीं मिलता,
दर्शकों की तालियों से अब
किसी का दिल नहीं खिलता,
दौलतमंदों के इशारे पर
अपनी चालाकी से
हार जीत तय करने के फन में माहिर
कलाकार ही हरफनमौला कहलाते हैं।
———-
काम करने के हुनर से ज्यादा
चाटुकारिता के फन में उस्ताद होना अच्छा है,
अपनी पसीने से रोटी जुटाना कठिन लगे तो
दौलतमंदों के दोस्त बनकर
उनको ठगना भी अच्छा है।
अपनी रूह को मारना इतना आसान नहीं है
इसलिये उसकी आवाज को
अनसुना करना भी अच्छा है।
किस किस फन को सीख कर जिंदगी काटोगे
नाम का ‘हरफनमौला’ होना ही अच्छा है।

लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

————————————-

यह आलेख इस ब्लाग ‘राजलेख की हिंदी पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिकालेखक संपादक-दीपक भारतदीप

अकेला अक्षर-हिंदी कविता (akshara,shabda & bhasha-hindi kavita)


कभी शब्द नहीं बनता
अकेला शब्द कभी भाषा नहीं बनता।
कई मिलकर बनाते हैं एक भाव समूह
जिससे उनका निज परिचय बनता।
एक का अस्तित्व कौन जानेगा
जब तक दूसरा नहीं दिखेगा
कहीं से पढ़कर ही कोई अपने हाथ से लिखेगा
भाषा में एक अकेला शब्द अहंकार भी है
जिसके भाव के इर्द गिर्द घूम रहा हर कोई
विनम्रता से परे सारी जनता।
अक्षर का अकेलापन
शब्द का बौनापन
बृहद भाषा समूह के बिना दर्दनाक होता है
जो जान लेता है
वही सच्चा लेखक बनता

…………………………..
नजर और नजरिया-हिन्दी शायरी (nazar aur nazariya-hindi shayri)
अपनी पीर किसे दिखाऊं
हर शख्स आकंठ डूबा है
अपनी ही तकलीफों में
किसको अपना समंदर दिखाऊं।

लोगों के नजर और नजरिये में
इतना फर्क आ जाता है
जो सोचते और देखते है
अल्फाजों में बयां दूसरा ही बन जाता है
सुनते कुछ हैं
समझ में कुछ और ही आता है
पहले उनको अपना दर्द दिखाऊं
या इलाज करना सिखाऊं

………………………

लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकाएं भी हैं। वह अवश्य पढ़ें।
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका
4.अनंत शब्दयोग
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप

%d bloggers like this: