Tag Archives: hindi satire poem

सपने बाजार में बिकते हैं-हिन्दी व्यंग्य कविताएँ


इंसानों को भीड़ को
भेड़ों की तरह हांका जा सकता है,
सपने बेचना आना चाहिए।

लोगों की आंखें खुली रहें
पर देख न सकें,
कान बजते रहें
गाना सुर में हो या बेसुर
गाना आना चाहिए।

अपने होश को
जिंदा रखो हमेशा
कर लो दुनियां मुट्ठी में
ज़माने को बेहोश करना आना चाहिए।
———
चाहे जो भाव खरीदो
सपने बाजार में बिकतें,
मगर सच के आगे नहीं टिकते हैं,
सौदागर खेलते हैं जज़्बातों से
उनके मातहत कलमकार
दाम लेकर ही ख्वाब लिखते हैं।

पर्दे की हकीकत
जमीन पर नहीं आती
भले ही अरमान पूरे होते दिखते हैं।
————–

लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर, मध्यप्रदेश
writer and editor-Deepak Bharatdeep,Gwalior, madhyapradesh
http://dpkraj.blogspot.com

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जिन्दगी मुश्किल बना देते हैं-हिन्दी शायरी (zindagi mushkil bana dete hain-hindi shayari)


जिनको शासन मिला है विरासत में
वह बड़े शासक बनना चाहते हैं,
जो शासित हैं
वह भी शासक बनने का ख्वाब पाले
जिंदगी में लड़े जा रहे हैं,
कमबख्त! जिस जिंदगी को
आसानी से जिया जा सकता है
लोग खुद जंग लड़कर
उसे मुश्किल बना रहे हैं।
——–

लोग जलाते हैं जो चिराग
वह उसे बुझा देते हैं,
रौशनी के दलाल
अपनी दलाली के लिये
करते हैं अंधेरों का सौदा
रात के अंधेरे में चमकता
कोई तिनका भी राह में दिख जाये
उसे भी पत्थरों के नीचे दबा देते हैं।
————-

कवि, संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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सीधी राह नहीं चलते लोग-हिन्दी व्यंग्य शायरी


तारीफों के पुल अब उनके लिये बांधे जाते हैं,
जिन्होंने दौलत का ताज़ पहन लिया है।
नहीं देखता कोई उनकी तरफ
जिन्होंने ज़माने को संवारने के लिये
करते हुए मेहनत दर्द सहन किया है।
——–
खौफ के साये में जीने के आदी हो गये लोग,
खतरनाक इंसानों से दोस्ती कर
अपनी हिफाजत करते हैं,
यह अलग बात उन्हीं के हमलों से मरते हैं।
बावजूद इसके
सीधी राह नहीं चलते लोग,
टेढ़ी उंगली से ही घी निकलेगा
इसी सोच पर यकीन करते हैं।
———

कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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अपनी भाषा छोड़कर कहां जाओगे-हिन्दी व्यंग्य कविता


अपनी भाषा छोड़कर
कब तक कहां जाओगे,
किसी कौम या देश का अस्त्तिव
कभी भी मिट सकता है
परायी भाषा के सहारे
कहां कहां पांव जमाओगे।
दूसरों के घर में रोटी पाने के लिये
वैसी ही भाषा बोलने की चाहत बुरी नहीं है
दूसरा घर अकाल या तबाही में जाल में फंसा
तो फिर तुम कहां जाओगे।
अपनी भाषा तो नहीं आयेगी तब भी जुबां पर
फिर दूसरे घर की तलाश में कैसे जाओगे।
————-
उपदेश देते हुए उनकी
जुबान बहुत सुहाती हैं,
और बंद कमरे में उनकी हर उंगली
चढ़ावे के हिसाब में लग जाती है।
किताबों में लिखे शब्द उन्होंने पढ़े हैं बहुत
सुनाते हैं जमाने को कहानी की तरह
पर अकेले में करते दौलत का गणित से हिसाब
लिखने में कलम केवल गुणा भाग में चल पाती है।
———-

अपने दर्द का बोझ कब तक सहेंगे।
हल्का लगेगा जब दिल से हंसेंगे।
अपने ख्वाब पूरे होने की सौदागरों से चाहत
कब तक ईमान बेचकर पूरी करेंगे।
बाजार में बिकती है ढेर सारी शयें
उनके कबाड़ होने पर, घर कब तक भरेंगे।
दिखा रहे हैं बड़े और छोटे पर्दे पर नकली दृश्य
झूठे जज़्बातों से कब तक अपना दिल भरेंगे।
अपने दर्द पर हंसना सीख लो यारों
रोते हुए जिंदगी के दरिया में कब तक बहेंगे।
दिल को दे सुकून, भुला दे सारे गम
वह दवा तभी बनेगी, जब खुद अपनी बात पर हंसेंगे।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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बाज़ार के हरफनमौला-हिन्दी हास्य कविताएँ/शायरियां


बाजार के खेल में चालाकियों के हुनर में
माहिर खिलाड़ी
आजकल फरिश्ते कहलाते हैं।
अब होनहार घुड़सवार होने का प्रमाण
दौड़ में जीत से नहीं मिलता,
दर्शकों की तालियों से अब
किसी का दिल नहीं खिलता,
दौलतमंदों के इशारे पर
अपनी चालाकी से
हार जीत तय करने के फन में माहिर
कलाकार ही हरफनमौला कहलाते हैं।
———-
काम करने के हुनर से ज्यादा
चाटुकारिता के फन में उस्ताद होना अच्छा है,
अपनी पसीने से रोटी जुटाना कठिन लगे तो
दौलतमंदों के दोस्त बनकर
उनको ठगना भी अच्छा है।
अपनी रूह को मारना इतना आसान नहीं है
इसलिये उसकी आवाज को
अनसुना करना भी अच्छा है।
किस किस फन को सीख कर जिंदगी काटोगे
नाम का ‘हरफनमौला’ होना ही अच्छा है।

लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
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बेबुनियाद विश्वास-हिन्दी व्यंग्य कवितायें


उन्होंने धोखा दिया

इस पर क्यों अब आसू बहाते हो?

अपनों से ही होता है धोखा

दुनियां का यह कायदा क्यों भूल जाते हो।

उनके वादे पर रख दिया

अपना सारा सामान उनके घर,

कोई सबूत नहीं था

उनकी ईमानदारी का

यकीन किया तुमने उन पर मगर,

अपने बेबुनियाद विश्वास को छिपाकर

उनके धोखे की कहानी

पूरे जमाने को क्यों सुनाते हो।

———-

उनको महल में पहुंचा दिया

इस विश्वास पर कि

वह हमारी झौंपड़ी सजा देंगे।

यह नहीं सोचा

वह भी इंसान है हमारी तरह

याद्दाश्त उनकी भी कमजोर है

वहां मुद्दत बाद  मिले सुख में

अपने भी भूल जायेंगे दुःख के दिन

हमारे कैसे याद करेंगे।
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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बड़ी खबर-व्यंग्य कविता (top news-hindi satire poem)


अखबार और चलचित्र वालों ने

कुछ चमकदार चेहरे तय

कर लिये हैं

जिनको वह सजाते हैं।

कुछ मशहूर नामों को

रट लिया है

जिनको अपने शब्दों में सजाते हैं।

मशहुर हस्तियों में मुख से निकले

या हाथ से लिखे बयान

ही पाते सुर्खियों में जगह

आम इंसान को खास से छोटा

समझने के संदेश

बड़ी खबर बन जाते हैं।

बाजार चलाता है प्रचारतंत्र

या वह बाजार को

हम समझ नहीं पाते हैं।

अल्बत्ता बड़े लोगों की की

तयशुदा शब्दिक कुश्तियों को देखकर

कभी कभी  हम भी

गलती से सच समझ जाते हैं।

कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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अश्लीलता और श्लीतता में अंतर-हिंदी हास्य व्यंग्य कविताएँ


अश्लीलता और श्लीतता में
अंतर कितना रह गया है
बस छह इंच के कपड़े का।
क्यों इतना रोज छोड़ मचता है
खत्म कर दो हर कायदा
कोई पहने या न पहने
लगा दो एक नारा चौराहे पर
अपनी इज्जत की रक्षा खुद करें
दूसरे में तब देखें
पहले अपनी आंखों में शर्म भरें
नहीं मिलेगा कोई पहरेदार
आपनी आबरू के लिये बनो खुद्दार
और भी जमाने में मुसीबतें हैं
नहीं करेगा कोई कायदा हिफाजत
हल खुद ही करो पहनावे के लफड़ा।
—————
निर्देशक ने अपनी फिल्म के
कपड़ा निर्देशक से
चर्चा करते हुए कहा
‘भई, यह कम बजट की फिल्म है
इसलिये अधिक पैसे की उम्मीद नहीं करना।
इसमें केवल नायक के कपड़े ही
अधिक बनाने होंगे
नायिका तो पूरी फिल्म में छह इंच के ही
वस्त्र धारण करेगी
कभी कभी एक फुट का भी वेश धरेगी
इसलिये अपने अनुबंध में
कपड़ों की राशि कम से कम भरना।

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कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
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