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काली नीयत के तोहफे-हिंदी कविता


तोहफे देने वालों की
नीयत पर भला कौन शक करता है,
बंद हो जाते हैं अक्ल के दरवाजे
इंसान हाथ में लेते हुए आहें भरता है।
कहें दीपक बापू
आम आदमी के दिल से खेलने का
तरीका है तोहफे देना
जिसे पाने की करता है वह जद्दोजेहद
खोने की बात सोचने से भी डरता है।
——–
तोहफों का जाल बुनते हैं वह लोग
जिनके दिल मतलबी ओर तंग हैं,
कहें दीपक बापू
नीयत है जिनकी काली
बाहर दिखाते  वह तरह तरह के रंग हैं
——————
दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’’,
ग्वालियर, मध्यप्रदेश

Deepak raj kureja “”BharatDeep””

Gwalior madhyapradesh

कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  ‘Bharatdeep’,Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com

————————-
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जिंदगी में ‘शार्टकट’ रास्ता मत ढूंढो यार-vyangya kavita


जीवन में कामयाबी के लिये
शार्टकट(छौटा रास्ता) के लिये
मत भटको यार
भीड़ बहुत है सब जगह
पता नहीं किस रास्ते
फंस जाये अपनी कार
तब सोचते हैं लंबे रास्ते
ही चले होते तो हो जाते पार
…………………………
धरती की उम्र से भी छोटी होती हमारी
फिर भी लंबी नजर आती है
जिंदगी में कामयाबी के लिये
छोटा रास्ता ढूंढते हुए
निकल जाती है उमर
पर जिंदगी की गाड़ी वहीं अटकी
नजर आती है
…………………..
जिंदगी मे दौलत और शौहरत
पाने के वास्ते
ढूंढते रहे वह छोटे रास्ते
खड़े रहे वहीं का वहीं
नाकाम इंसान की सनद
बढ़ती रही उनके नाम की तरफ
आहिस्ते-आहिस्ते

………………….

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अपने फायदे के लिए बनाये कायदे-हिन्दी व्यंग्य कविता


हक की बात करते हैं लोग सभी
फर्ज पर बहस नहीं करते कभी।।।
अपने फायदे के लिये बनाये कायदे
वह भी मौका पड़े, याद आते हैं तभी।।
दिखाने के लिये लोग अहसान करते हैं
नाम मदद, पर कीमत मांगते हैं सभी।।
रोटियों का ढेर भले भरा हो जिनके गले तक
उनकी भूख का शेर पिंजरे में नहीं जाता कभी।।
नारों से पेट भरता तो यहां भूख कौन होता
दिखाते हैं सब, पेट में नहीं डालता कोई कभी।।
गरीब के साथ जलना जरूरी है, भूख की आग का
उसके कद्रदानों की रोटी पक सकती है तभी।।

…………………………….

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टंकी पर चढने का रिवाज पुराना हो ग्या-हास्य कविता


टंकी पर चढ़ गया आशिक
यह कहते हुए कि
‘जब तक माशुका शादी के लिये
राजी नहीं होगी
वह नीचे नहीं आयेगा
अधिक देर लगी तो कूद जायेगा’

शोर मच गया चारों तरफ
भीड़ में शामिल माशुका पहले घबड़ायी
और और बोली
‘आ जा नीचे ओ दीवाने
मैंने अपनी शादी का कार्ड भी छपवा लिया है
देख इसे
पर ऐसा तभी होगा, जब तू नीचे आयेगा’

वह दनदनाता नीचे आया
माशुका के हाथ से लिया कार्ड
उसमें दूल्हे की जगह
किसी और का नाम था
आशिक चिल्लाया
‘यह तो धोखा है
मैं चलता हूं फिर ऊपर
अब तो मेरा शव ही नीचे आयेगा‘

वह खड़े लोगों ने उसे पकड़ लिया तो
माशुका ने कहा
‘ऐ आशिक
बहुत हो गया है
इश्क में टंकी पर चढ़कर
वहां से कूदने के नाटक का रिवाज
नहीं चलता आज
चढ़े बहुत हैं ऊपर
पर नीचे कोई नहीं आया
भले ही किसी ने नहीं मनाया
नशा उतर गया तो सभी नीचे आये
कर अब कोई नया ईजाद तरीका
तभी तू अशिकों के इतिहास में
अपना नाम लिखा पायेगा

……………………………..

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अपने छोटे चिराग हाथ में लिये हम रौशनी ढूंढते रहे-व्यंग्य कविता


उनसे दूरी कुछ यूं बढ़ती गयी
जैसे बरसात का पानी किनारे से
नीचे उतर रहा हो
वह रौशनी के पहाड़ की तरफ
बढ़ते गये और
अपने छोटे चिराग हाथ में हम लिये
कतरा कतरा रौशनी ढूंढते रहेे
वह हमसे ऐसे दूर होते गये
जैसे सूरज डूब रहा हो

उन्होंने जश्न के लिये लगाये मजमे
घर पर उनके महफिल लगी रोज सजने
अपने आशियाना बनाने के लिये
हम तिनके जोड़ते रहे
उनके दिल से हमारा नाम गायब हो गया
कोई लेता है उनके सामने अब तो
ऐसा लगता है उनके चेहरे पर
जैसे वह ऊब रहा हो

फ्री में विलेन बनाया-हास्य कविता



उदास होकर फंदेबाज घर आया
और बोला
‘दीपक बापू, बहुत मुश्किल हो गयी है
तुम्हारे भतीजे ने मेरे भानजे को
दी गालियां और घूंसा जमाया
वह बिचारा तुम्हारी और मेरी दोस्ती का
लिहाज कर पिटकर घर आया
दुःखी था बहुत तब एक लड़की ने
उसे अपनी कार से बिठाकर अपने घर पहुंचाया
तुम अपने भतीजे को कभी समझा देना
आइंदा ऐसा नहीं करे
फिर मुझे यह न कहना कि
पहले कुछ न बताया’

सुनकर क्रोध में उठ खड़े हुए
और कंप्यूटर बंद कर
अपनी टोपी को पहनने के लिये लहराया
फिर बोले महाकवि दीपक बापू
‘कभी क्या अभी जाते हैं
अपने भाई के घर
सुनाते हैं भतीजे को दस बीस गालियां
भले ही लोग बजायें मुफ्त में तालियां
उसने बिना लिये दिये कैसे तुम्हारे भानजे को दी
गालियां और घूंसा बरसाया
बदल में उसने क्या पाया
वह तो रोज देखता है रीयल्टी शो
कैसे गालियां और घूंसे खाने और
लगाने के लिये लेते हैं रकम
पब्लिक की मिल जाती है गालियां और
घूसे खाने से सिम्पथी
इसलिये पिटने को तैयार होते हैं
छोटे पर्दे के कई महारथी
तुम्हारा भानजा भी भला क्या कम चालाक है
बरसों पढ़ाया है उसे
सीदा क्या वह खाक है
लड़की उसे अपनी कार में बैठाकर लाई
जरूर उसने सलीके से शुरू की होगी लड़ाई
सीदा तो मेरा भतीजा है
जो मुफ्त में लड़की की नजरों में
अपनी इमेज विलेन की बनाई
तुम्हारे भानजे के प्यार की राह
एकदम करीने से सजाई
उस आवारा का हिला तो लग गया
हमारे भतीजा तो अब शहर भर की
लड़कियों के लिये विलेन हो गया
दे रहे हो ताना जबकि
लानी थी साथ मिठाई
जमाना बदल गया है सारा
पीटने वाले की नहीं पिटने वाले पर मरता है
गालियां और घूंसा खाने के लिये आदमी
दोस्त को ही दुश्मन बनने के लिये राजी करता है
यह तो तुम्हारे खानदान ने
हमारे खानदान पर एक तरह से विजय पाई
हमारे भतीजे ने मुफ्त में स्वयं को खलनायक बनाया

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‘हम तो मोहब्बत के दीवाने है-व्यंग्य कविता


माशुका की ख्वाहिश पर
आशिक ने एक चुराया हुआ शेर
कुछ यूं सुनाया
‘हम तो मोहब्बत के दीवाने है
प्यार करते है रोज रोज
जिंदगी ऐसे ही कट जायेगी
आखिर एक दिन तो कयामत आयेगी’

सुनकर माशुक भड़क उठी और कहा
‘इस खूबसूरत मौके पर भी
तुम्हें कयामत की याद आयी
दिल में कोई अच्छी सोच नहीं समाई
लगता है अखबार नहीं पढ़ते हो
इसलिये केवल प्यार में
कयामत के कसीदे गढ़ते हो
ऊपर वाले का घर छोड़कर
कयामत कभी की फरार हो गयी
अब तो चाहे जहां
जब चली आती है
एक दिन में दुनियां को तबाह करे
अब उसमें नहीं रही ताकत
इसलिये कयामत किश्तों में
कहर बरपा जाती है
टीवी पर बहता खून देखो
या अखबार के अल्फाजों में
हादसों की खबर पढ़ो
तभी कोई बात समझ आती है
इंसानों के उड़ जाते हैं चीथड़े
उन पर एक दिन रोकर जमाना
फिर कयामत के शैतानों पर ही
नजर लगाये रहता हैं
कभी उनके स्कूल तो कभी
उनकी माशुकाओं के नाम का जिक्र
चटखारे लेकर
पर बात अमन कायम करने की करता है
पड़ गयी हैं कयामत पर
ऐसी शायरी पुरानी
कई तो याद है मुझे याद हैं जुबानी
उसे भुलाने के वास्ते ही
तुम्हें आशिक बनाया
पर तुम्हारी शायरी सुनकर पछता रही हूं
इसलिये भूल जाओ मुझे
नहीं तो तुमसे मिलकर
रोज मुझे कयामत की याद आयेगी

…………………………

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हर जगह बैठा है सिद्ध की खाल में गिद्द-हास्य व्यंग्य कविता


हर जगह सर्वशक्तिमान के दरबार में
बैठा कोई एक सिद्ध

आरजू लिए कोई वहां
उसे देखता है जैसे शिकार देखता गिद्द
लगाते हैं नारा
“आओ शरण में दरबार के
अपने दु:ख दर्द से मुक्ति पाओ
कुछ चढ़ावा चढ़ाओ
मत्था न टेको भले ही सर्वशक्तिमान के आगे
पर सिद्धों के गुणगान करते जाओ
जो हैं सबके भला करने के लिए प्रसिद्ध

इस किनारे से उस किनारे तक
सिद्धो के दरबार में लगते हैं मेले
भीड़ लगती है लोगों की
पर फिर भी अपना दर्द लिए होते सब अकेले
कदम कदम पर बिकती है भलाई
कहीं सिद्ध चाट जाते मलाई
तो कहीं बटोरते माल उनके चेले
फिर भी ख़त्म नहीं होते जमाने से दर्द के रेले
नाम तो रखे हैं फरिश्तों के नाम पर
फकीरी ओढे बैठे हैं गिद्द
उनके आगे मत्था टेकने से
अगर होता जमाने का दर्द दूर
तो क्यों लगते वहां मेले
ओ! अपने लिए चमत्कार ढूँढने वालों
अपने अन्दर झाँक कर
दिल में बसा लो सर्वशक्तिमान को
बन जाओ अपने लिए खुद ही सिद्ध

——————————–

दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
कवि एंव संपादक-दीपक भारतदीप

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दूसरी नजर में आयी सामने असलियत-हास्य कविता


लंबा तगड़ा और आकर्षक चेहरे वाला
वह लड़का शहर की फुटपाथ
पर चला जा रहा था
सामने एक सुंदर गौरवर्ण लडकी
चली आ रही थी
यह सड़क बायें थी वह दायें था
पास आते ही दोनों के कंधे टकराये
पहली नजर में दोनों एक दूसरे को भाये
दृश्य फिल्म का हो गया
दोनों को ही इसका इल्म हो गया
लड़की चल पड़ी उसके साथ
अब वह बायें से दायें चलने लगी

चलते चलते बरसात भारी हो गयी
सड़क अब नहर जैसी नजर आने लगी
लड़की ने कहा-
‘यह क्या हुआ
यह कैसी मेरी और तुम्हारी इश्क की डील हुई
जिस सड़क से निकली थी
वह डल झील हो गयी
पर मैं तो चल रही थी बायें ओर
दायें कैसे चलने लगी
तुम अब पलट कर मेरे साथ बायें चलो’
ऐसा कहकर वह पलटने लगी

लड़के ने कहा
‘मेरे घर में अंधेरा है
एक ही बल्ब था फुक गया है
खरीद कर जा रहा हूं
मां बीमार है उसके लिये
दवायें भी ले जानी है
यह तो पहली नजर का प्यार था
जो शिकार हो गया
वरना तो दुनियां भर की
मुसीबतें मेरे ही पीछे लगी
तुम जाओ बायें रास्ते
मैं तो दाएं ही जाऊंगा
अब नहीं करूंगा दिल्लगी’

लड़की ने कहा
‘तो तुम भी मेरी तरह फुक्कड़ हो
तुम्हारे कपड़े देखकर
मुझे गलतफहमी हो गयी थी
जो पहली नजर के प्यार का
सजाया था सपना
दूसरी नजर में तुम्हारी सामने आयी असलियत
वह न रहा अपना
इसलिये यह पहले नजर के प्यार की डील
करती हूं कैंसिल’
ऐसा कहकर वह फिर बायें चलने लगी।
———————-
दीपक भारतदीप

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पत्रिका की पाठक संख्या तीस हजार पार करने की पूर्व संध्या पर छंटाक भर कविता


मुझे पाठकों ने अवसर ही नहीं दिया। यह कविता मैंने इसकी पाठक संख्या तीस हजार पार करने के पूर्व संध्या पर लिखी थी। इससे पहले कि इसे लिख पाता बिजली चली गयी। उसके बाद घर से बाहर चला गया और बिजली आयी तो पता लगा कि यह ब्लाग तीस हजार की संख्या को पार कर गया। अब रात हो गयी है इसलिये विशेष संपादकीय लिखना तो संभव नहीं है पर जो कविता लिखी थी। वही लिख रहा हूं। विशेष संपादकीय कल लिखूंगा क्योंकि उसमें बहुत कुछ कहना है।

गुरू ने चलायमान शिखर पर बैठाकर
अपने यहां से धकियाया
उससे उतरना नहीं सिखाया
सो चल पड़े जिंदगी के मैदान में
नीचे आना हमें उससे याद भी नहीं आया
ऐसे में कौन हमें अपने साथ शिखर पर बैठाता
या हमारे लिये कोई दूसरा सजाता
कहें महाकवि दीपक बापू
कोई उधारी का लिये बैठा था
तो कोई लूट के बैठा था
ऊंचे से हमसे उनके शिखर
स्टील के साथ हाड़मांस के बने
चमचों से सजे थे उनके घर
कौन हमें अपने शिखर से उतर कर
आने का प्रस्ताव सुनाता

पैसा लिखकर लिखते हैं
चंद किताबें पढ़कर लिखना सीख गये
तो जमकर रचते हैं पाठ
भले ही हों उनके कितने भी ठाठ
पर आजादी की सांस उनके नसीब में कहां आता
गाते हैं वह
अभी तो ली अंगड़ाई है
आगे और लड़ाई है
पर फिर उनका चेहरा नजर नहीं आता
हमने तो बिना नारा लगाये
हमेशा की शुरु लड़ाई है
समझा समझा कर परेशान है
काहे हमारे सामने चले आते हो
अपने आकाओं के नाम छिपाकर
अपना चेहरा क्यों दिखाते हो
फिर सोचते हैं
गुलामों से क्या लड़ना
आकाओं की दम पर उनको है पलना
किसी की रोटी से डाह करें
यह भला हमें कहां आता

देख रहे हैं उनके चेहरों पर खौफ
हिट होकर भी नहीं झाड़ पाते रोब
पिछड़े प्रदेश और छोटे शहर के हैं बाशिंद तो क्या
प्रतिभा का भी होता कोई ठिकाना क्या
तुम्हारी नकली हिट
और कमाने के राज नहीं जानते हम क्या
जेब खाली है तो क्या
लोगों से मिल रहे प्यार की भी कीमत होती क्या
तुम एक किलो का ही लिखना
हमारे छंटाक भर शब्दों का भी प्रहार देखना
अपने को फरिश्ता दिखाने के लिये
किसी शैतान का होना जरूरी है
तुमने हमें बताया
हम तुम्हें बतायेंगे
तुम समझे क्या
हमें लड़ना नहीं आता

जब खड़े थे गुलामों के बाजार में
बिकने के लिये खड़े थे
तब कोई खरीद लेता तो हम भी बिक जाते
बहुत सारे गुलामों में हम भी दिख जाते
मगर मुश्किल होगा हम कोई सौदा
हमारी सद्इच्छा को रौंदा
नहीं चाहिए तुम्हारा घरौंदा
हमें अपनी फ्लाप झौंपड़ी में ही रहना आता

बोलते बहुत हैं
पर भाषण हर कोई नहीं कर पाता
लिखने वाला हर शब्द रचना नहीं हो जाता
नहीं हैं अब कोई सहारा
आकाश में तैरेंगे जब शब्द
तब मदद नहीं कर पायेगा कोई बिचारा
आओ चलते हैं वहां
शब्दों की जंग है जहां
अपनी सभी विद्यायें
हम भी दिखलायेंगे
तुम भी आजमाना
शब्दों को फूलों की तरह सजाने की इच्छा रही है
पर तुम्हें बता देंगे
उनको हथियार की तरह हमें उपयोग करना आता
दिल नहीं मानता पर
दिमाग इसके लिये हमेशा तैयार हो जाता

……………………………………………………………………..

कल इस ब्लाग/पत्रिका पर विशेष संपादकीय लिखा जायेगा। जिसमें हिंदी ब्लाग जगत के बारे में प्रकाश डालने का प्रयास भी होगा।

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असली फूल, नकली फूल-हिदी शायरी


अब करते हैं लोग शिकायत
असली फूलों में वैसी
सुगंध नहीं आती
नकली फूलों में ही
इसलिये असली खुशबू छिड़की जाती
दौलत के कर रहा है खड़े, नकली पहाड़ आदमी
पहाड़ों को रौदता हुआ
नैतिकता के पाताल की तरफ जा रहा आदमी
सुगंध बिखेर कर खुश कर सके उसे
यह सोचते हुए भी फूल को शर्म आती
………………………….

नकली रौशनी में मदांध आदमी
नकली फूलों में सुगंध भरता आदमी
अब असली फूलों की परवाह नहीं करता
पर फिर भी उसके मरने पर अर्थी में
हर कोई असली फूल भरता
भला कौन मरने पर उसकी सुगंध का
आनंद उठाना है
यही सोचकर असली फूलों की
आत्मा सुंगध से खिलवाड़ करता
…………………………
धूप में खड़े असली फूल ने
कमरे में सजे असली फूल की
तरफ देखकर कहा
‘काश मैं भी नकली फूल होता
दुर्गंधों ने ली मेरी खुशबू
इसलिये कोई कद्र नहीं मेरी
मै भी उसकी तरह आत्मा रहित होता’
फिर उसने डाली
नीचे अपने साथ लगे कांटो पर नजर
और मन ही मन कहा
‘जिन इंसानों ने कर दिया है
मुझे इतना बेबस
फिर भी मेरे साथ है यह दोस्त
क्या मै इनसे दूर नहीं होता

………………………………….

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तोलमोल के बोल-छटांक भर की कविताएं


तोल मोल कर बोल
अपने लिये खरीदने में फायदा हो तो
किलो की चीज को छटांक बोल
बेचना हो बाजार में तो
अपनी छटांक की चीज का लगा एक किलो के मोल
……………………………………………………………………..

आजादी में सांस लेने वालों के
अंदाजे-बयां कुछ और होता है
उनकी गुलामी से अपने अपने को मत तोल
सौदागर हो तो बाजार में करो सौदा
गलियों से हो जा गोल
बुलंद आवाज नहीं हो सकती
गुलामी में बहुत जल्दी थकती
अपनी सोच की गुलामी को कब तक
छिपाओगे
दूसरे की भाषा बोलते जाओगे
जंजीरे साफ नजर आ जाती हैं
गुलामों के बंधे हाथ देख जंजीरों से
खुल जायेगी पोल

…………………………….

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कही पर अनसुनी बात भी अपना काम कर जाती-हिंदी शायरी


कभी-कभी उदास होकर
चला जाता हूँ भीड़ में
सुकून ढूँढने अपने लिए
ढूँढता हूँ कोई हमदर्द
पर वहाँ तो खडा रहता है
हर शख्स अपना दर्द साथ लिए
सुनता हूँ जब सबका दर्द
अपना तो भूल जाता हूँ
लौटता हूँ अपने घर वापस
दूसरों का दर्द साथ लिए

कोई नहीं सुनता पर फिर भी सुनाकर
दिल को तसल्ली तो हो जाती
दूसरे के दर्द की बात भला
अपने दिल में कहां ठहर पाती
कही पर अनसुनी बात भी अपना काम कर जाती
कभी सोचता हूँ कि
अगर इस जहाँ में दर्द न होता
तो हर शख्स कितना बेदर्द होता
फिर क्यों कोई किसी का हमदर्द होता
कौन होता वक्ता, कौन श्रोता होता
तब अकेला इंसान जीवन गुजारता
अपना दर्द पीने के लिए

…………………………………………

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सही पता बताने वाले बहुत कम हैं-हिंदी शायरी


निभाने के वादे तो बहुत उन्होंने किये

पर जब आया मौका साथ देने का

कई बहाने सुना दिये

हम आसरा फिर भी करते रहे

यही सोचकर कि कभी तो

उनके बहाने खत्म हो जायेंगे

और वह काम आयेंगे

इस इंतजार में कितने बरस गुजार दिये
……………………………………………………………..

आहिस्ता चलो

राहों पर फिसलन बहुत है

गिरने पर संभालने वाले कम हैं

अपनी मंजिल और राहों को खुद चुनो

भटकाने वाले बहुत हैं

सही पता बताने वाले बहुत बहुत कम हैं
…………………………………………………………………….

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पहले प्रेमपत्र से दूसरा भाया-हास्य कविता


लड़के ने लड़की को प्रभावित करने के लिये
पहले प्रेमपत्र में लिखी कविता और
अपना नाम लिखा प्रेमी
लड़की के लिये प्रिया का संबोधन लगाया
लड़की ने पत्र बिना उत्तर के वापस लौटाया
दूसरे में उसने लिखी शायरी
अपने नाम के साथ आशिक शब्द लगाया
लड़की को आशुका बताया
वहां से प्यार की मंजूरी का पैगाम पाया

पहली मुलाकात में
आशिक ने माशुका से इसका कारण पूछा
तो उसने बताया
‘कविता शब्द से बोरियत लगती है
शायरी में वजन कुछ ज्यादा है
कवियों की कविता तो कोई पढ़ता नहीं
शायरी के फैन सबसे ज्यादा हैं
फिल्मों में शायरों को ही हीरो बनाते हैं
शायरियों को ही बढि़या बताते हैं
कवियों और कवियों का मजाक बनाते हैं
वैसे तो मुझे कविता और शायरी
दोनों की की समझ नहीं है
पर फिल्मों की रीति ही जमाने में हर कहीं है
पहले पत्र में तुम्हारा काव्य संदेश, प्रेमी और
प्रिया शब्द में पुरानापन लगा
दूसरे पत्र में प्यार और शायरी का पैगाम
तुम्हारा आशिक होना और
मुझे माशुका कहने में नयापन जगा
तुम कवि नहीं शायर हो इससे मेरा दिल खुश हुआ
इसलिये मुझे दूसरा प्रेम पत्र भाया
मैंने भी तुम्हें मंजूरी का पैगाम भिजवाया
……………………………………………………………….

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