‘‘तुम अपनी फरमाईशें कम किया करो
अब बढ़ गयी है मंदी और महंगाई,
एक जगह से क्लर्क पद से छंटनी हुई
दूसरी जगह बन गया हूं चपरासी
घट गयी हैं मेरी कमाई,
इस तरह मेरा कबाड़ा हो जायेगा,
देता हूं तुम्हें ऑटो का जो किराया
पेट्रोल के बढ़ते भाव से
उसका भी महंगा भाड़ा हो जायेगा,
मुझ पर कुछ पर तरस खाओ,
अपने इश्क की फीस तुम घटाओ।’’
सुनकर बिगड़ी माशुका और बोली
‘‘सुनो जरा मेरी बात ध्यान से,
महंगाई शब्द न चिपकाओं मेरे कान से,
देशभक्ति हो या इश्क
जज़्बात बाज़ार में बिकते हैं,
खरीदने का दम हो जिनमें
वहीं सौदा लेकर टिकते हैं,
सौदागरों के भोंपू चीख चीख कर
दिखाते हैं देशभक्ति,
वही गरीब की जिंदगी को सस्ता बनाकर
दिखते हैं अपने पैसे की शक्ति,
उनके कहने पर पर ही
सर्वशक्तिमान की तरफ इशारा करते हुए
आशिक माशुकाओं के इश्क पर लिखते हैं शायर,
जिस्म की चाहत होती मन में
दिखाने के लिये इबादत करते हैं कायर,
आजकल इश्क का मतलब है
माशुकाओं को सामान उपहार में देना,
चाहे पड़े बैंक से पैसा
भारी ब्याज पर उधार में लेना,
अगर तुम्हारी जेब तंग है,
इश्क अगर जारी रहा
मेरी त्वचा पड़ जायेगी फीकी
जिसका अभी गोरा रंग है,
मैं कोई ढूंढ लूंगी
ऊंची कमाई वाला आशिक,
लड़कियों की कमी है
जायेगा जल्दी मेरा इश्क बिक,
यह मंदी और महंगाई वाली
बात न सुनाओ,
ढूंढ लो कोई सस्ती माशुका
मेरे सामने से तुम जाओ।’’
poet, Writer and editor-Deepak ‘Bharatdeep’,Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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