Tag Archives: hindi hasya kavita

इश्क़ आशिक और महंगाई-हिन्दी हास्य कविता (ishq, ashik aur mehangai-hindi hasya kavita)


आशिक ने कहा माशुका से कहा
‘‘तुम अपनी फरमाईशें कम किया करो
अब बढ़ गयी है मंदी और महंगाई,
एक जगह से क्लर्क पद से छंटनी हुई
दूसरी जगह बन गया हूं चपरासी
घट गयी हैं मेरी कमाई,
इस तरह मेरा कबाड़ा हो जायेगा,
देता हूं तुम्हें ऑटो का जो किराया
पेट्रोल के बढ़ते भाव से
उसका भी महंगा भाड़ा हो जायेगा,
मुझ पर कुछ पर तरस खाओ,
अपने इश्क की फीस तुम घटाओ।’’

सुनकर बिगड़ी माशुका और बोली
‘‘सुनो जरा मेरी बात ध्यान से,
महंगाई शब्द न चिपकाओं मेरे कान से,
देशभक्ति हो या इश्क
जज़्बात बाज़ार में बिकते हैं,
खरीदने का दम हो जिनमें
वहीं सौदा लेकर टिकते हैं,
सौदागरों के भोंपू चीख चीख कर
दिखाते हैं देशभक्ति,
वही गरीब की जिंदगी को सस्ता बनाकर
दिखते हैं अपने पैसे की शक्ति,
उनके कहने पर पर ही
सर्वशक्तिमान की तरफ इशारा करते हुए
आशिक माशुकाओं के इश्क पर लिखते हैं शायर,
जिस्म की चाहत होती मन में
दिखाने के लिये इबादत करते हैं कायर,
आजकल इश्क का मतलब है
माशुकाओं को सामान उपहार में देना,
चाहे पड़े बैंक से पैसा
भारी ब्याज पर उधार में लेना,
अगर तुम्हारी जेब तंग है,
इश्क अगर जारी रहा
मेरी त्वचा पड़ जायेगी फीकी
जिसका अभी गोरा रंग है,
मैं कोई ढूंढ लूंगी
ऊंची कमाई वाला आशिक,
लड़कियों की कमी है
जायेगा जल्दी मेरा इश्क बिक,
यह मंदी और महंगाई वाली
बात न सुनाओ,
ढूंढ लो कोई सस्ती माशुका
मेरे सामने से तुम जाओ।’’

कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
poet, Writer and editor-Deepak ‘Bharatdeep’,Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
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आशिक माशुका और अनशन की धमकी-हिन्दी हास्य व्यंग्य कविता


आशिक ने कहा माशुका से
“तुम जल्दी से विवाह की तारीख
तय कर लो,
मेरा अभी तक दिल बहलाया है
अब खाली घर भी भर दो,
वरना तुम्हारे घर के बाहर
आमरण अनशन पर बैठ जाऊंगा,
भूखा प्यासा मरकर अमर आशिक का दर्जा पाऊँगा,
दुनिया मेरी याद में आँसू बहाएगी।”

सुनकर माशुका झल्लाई
और गरजते हुए बोली
“मुझे मालूम है
नौकरी से तुम्हारी होने वाली है छटनी,
बन जाएगी तुम्हारी जेब की चटनी,
अब तुम मेरे खर्चे नहीं उठा पाओगे,
घर पर ले जाकर चक्की पिसवाओगे,
पर मैं तुम्हारे झांसे में नहीं आऊँगी,
जब तक न बने तुम्हारा नया ठिकाना
तुमसे तब तक तुमसे दूरी बनाऊँगी,
वैसे तुम याद रखना
नारियों को परेशान करने के खिलाफ
ढेर सारे कानून बन गए हैं,
कई स्वयंसेवी संगठनों के
तंबू भी तन गए हैं,
नया काम मिलने पर ही
मेरे पास आना,
वरना पड़ेगा पछताना,
अनशन किया तो भूखे बाद में मरोगे,
पहले  मेरे मुहल्ले में  दोस्तों के  हाथ फँसोगे,
कारावास में पहरेदार बाद में जमाएँगे लट्ठ
पहले भीड़ तुम्हारी पीठ पर बरसाएगी।”
————–
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
hindi poet,writter and editor-Deepak ‘Bharatdeep’,Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com
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धर्म के धंधे में माल ही माल-हिन्दी हास्य कविता (business of religion,hindi comic poem)


चेले ने कहा गुरु से
‘गुरुजी,
अब तो आपकी सेवा में बहुत सारे
चेले आ गये हैं,
सभी आपके भक्तों को भा गये हैं,
मुझे अब समाज सेवा के लिये
आश्रम से बाहर जाने की
सहमति प्रदान करे,
किसी बड़ी संस्था में पद लेकर
आपका नाम रौशन करूं,
अनुमति प्रदान करें।’
सुनकर गुरु जी बोले
‘सीधी बात क्यों नहीं कहता
कि अब अपनी धार्मिक छवि को
नकदी में भुनाना चाहता है,
माया के लोभ में
ज्ञान को भुलाना चाहता है,
मगर भईये!
समाज सेवा में राजनीति चलती है,
बाहर लगते हैं जनकल्याण के नारे
अंदर कमीशन पाने की नीयत पलती है,
तुझे लग रहा है कि यह रास्ता सरल है,
मगर वहां बदनामी का खतरा हर पल है,
फिर तेरा अनुभव तो पूजा पाठ का है
राजनीति में एक तरह से तू तो उल्लू काठ का है,
वहां पहले से ही मौजूद बड़े बड़े धुरंधर हैं,
कुछ बाहर पेल रहे हैं डंड तो कुछ अंदर हैं,
उनकी आपस में तयशुदा होती जंग,
देखती है जनता बड़े चाव से
भले ही हालातों से तंग,
फिर तू समाज सेवा के नाम पर
कोई आंदोलन चलायेगा,
डंडे की मार खाकर यहीं लौट आयेगा,
भले ही मेरी वजह से
तेरे को कई समाज सेवक मानते हैं,
पर उनके इलाके में अगर तू घुसा
मार खायेगा
यह हम जानते हैं,
वहां जाकर नाकामी तेरे हाथ आयेगी,
यह बदनामी मेरे नाम के साथ भी जायेगी,
इसलिये अच्छा है
कहंी दूसरी जगह आश्रम बनाकर
तू भी स्वामी बन जा,
धर्म के धंधे में एक खंबे की तरह तन जा,
यहां डंडे का डर नहीं है,
कमाई पर कोई कर नहीं है,
अभी तक मैं अपना खजाना अकेला भरता था
अब अलग होकर दोनों ही
अपनी तिजोरी दुगुनी गति से भरें।’
———–
संकलक लेखक  एवं संपादक-दीपक   ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
Editor and writer-Deepak  ‘Bharatdeep’,Gwalior
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हास्य कविताएँ-क्या धरा है ज्ञान में (hindi hasya kavitaen kya dhara hain gyan mein)


बीमार गुरु ने चेले से
अपनी पार्थिव देह के संस्कार के बारे में पूछा
तो वह बोला-
‘‘महाराज,
भगवान करेगा आप ठीक हो जायेंगे,
जिंदगी भर चमत्कार किया है
भगवान अब आपके लिये
चमत्कार करने आयेंगे,
अगर ऐसा नहीं हुआ तो
आपकी अर्थी को बड़ी सादगी से सजायेंगे,
आपने हमेशा गरीबों का भला किया
इसलिये कोई शान शौकत नहीं दिखायेंगे।’’

सुनकर मरणासन्न गुरुजी
उठकर बैठे और बोले,
‘‘कमबख्त
किस जन्म का बदला लेने आया है,
जो यह सादगी का नारा बताया है,
तुझे मैंने कितनी बार बताया है कि
आदमी गरीब है या अमीर है
अज्ञानी है कि संत है,
या आम है कि खास है
इसका पता उसके मरने पर
निकलने वाली अर्थी से चलता है,
जिनकी जिंदगी बेरौनक रही
उनकी अर्थी में कोई नहीं चलता है,
जो जलाते हर समय ज्ञान का प्रकाश
उनकी पार्थिव देह के चारों तरफ
घी का दीपक जलता है,
सजता है फूलों का बाग,
बजता है चारों तरफ विरह का राग
फिर गरीबों के कल्याण के व्यापार में
कुछ ही इंसानों का भला किया जाता है,
बाकी तो ज़माने से सोना लूटकर उसे गला दिया जाता है,
हमारी अर्थी और दाह संस्कार पर तुम
धूमधड़कारा करना
इसी शर्त पर हमें मंजूर है अभी मरना,
वरना अपनी बीमारी साथ लेकर जिंदा रहेंगे
चाहे जितना दर्द हम सहेंगे,
मरने से पहले प्रिय शिष्य के रूप में
तुम्हारी जगह किसी दूसरे का नाम
वसीयत में लिखायेंगे,
दौलत बहुत जरूरी है
यह मरने के बाद भी दिखायेंगे।’’
—————-
चेले ने कहा गुरु से
‘महाराज,
ढेर सारा पैसा आ गया है,
अपना फाईव स्टार होटल नुमा
आश्रम भी बनकर लगता नया है,,
यह सब आपके चमत्कारों का परिणाम है,
सत्संग में आपके पीछे खड़े होकर
भभूत, घड़ी और अंगूठी दी मैंने
पर हवाओं का हुआ नाम है
मगर अब छवि बदलने का समय आया है,
ज्ञान के बिना यह अंधेरी माया है,
इसलिये अब लोगों को पुराने ग्रथों से
रटकर उपदेश दिया करें,
ज्ञानियों से भी वाह वाह लिया करें,
वरना कोई आपको संत नहीं मानेगा,
हर कोई जादूगर जानेगा।’’

सुनकर बोले गुरुजी
‘मूर्ख,
क्या धरा ज्ञान में,
चमक है बस दौलत की शान में,
भला,
तूने किसी ज्ञानी को अपने आश्रम में आते देखा,
किसी ज्ञानी को महलनुमा आश्रम में
घर बसाते देखा है
हमारा देश विश्व में विश्व गुरु इसलिये कहलाता है
क्योंकि अज्ञान के अंधेरे में ज्ञान रौशन हो पाता है,
इस काम के लिये ढेर सारे लोग हैं,
जिनको मुफ्त में ज्ञान बांटने और दान करने जैसे रोग हैं,,
अपने देश में बहुत तंगहाली है
इसलिये अपने चमत्कार की चारो तरफ लाली है,
अगर हमने चमत्कार छोड़कर ज्ञान बघारा तो
हर कोई हमें मरा जानेगा।
जिंदा रहकर चमत्कार करते रहे
तो हर कोई हमें अमर मानेगा।’’
————–

कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,ग्वालियर 
poet writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwalior
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दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
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खेल का पीरियड-हिन्दी हास्य कविता (khel ki shiksha-hindi hasya kavita


खेल के पीरियड में
बहुत से छात्र नहीं आये,
यह सुनकर विद्यालय के
प्राचार्य तिलमिलाये
और अनुपस्थित छात्रों को फटकारा
‘‘तुम लोगों को शर्म नहीं आती
खेल के समय गायब पाये जाते हो,
क्या करोगे जिंदगी में सभी लोग,
बिना फिटनेस के ऊंचाई पर जाने के
सपने यूं ही सजाते हो,
अरे, खेलने में भी आजकल है दम,
पैसा नहीं है इसमें कम,
कोई खेल पकड़ लो,
दौलत और शौहरत को अपने साथ जकड़ लो,
देश का भी नाम बढ़ेगा,
परिवार का भी स्तर चढ़ेगा,
यही समय है जब अपनी सेहत बना लो
वरना आगे कुछ हाथ नहीं आयेगा।’’

एक छात्र बोला
‘‘माननीय
आप जो कहते है वह सही है,
मगर हॉकी या बल्ला पकड़ने से
अधिक प्रबंध कौशल होना
सफलता की गारंटी रही है,
पैसा तो केवल क्रिकेट में ही है
बाकी खेलों में तो बिना खेले ही
बड़े बड़े बड़े खेल हो जाते हैं,
जिन्होंने सीख ली प्रबंध की कला
वह चढ़ जाते हैं शिखर पर
नहीं तो बड़े बडे खिलाड़ी
मैदान पर पहुंचने से पहले ही
सिफारिश न होने पर फेल हो जाते हैं,
अच्छा खिलाड़ी होने के लिये जरूरी नहीं
कोई खेले मैदान पर जाकर खेल,
बस,
निकालना आना चाहिये उसमें से कमीशन की तरह तेल,
आपके यहां प्रबंध का विषय भी हमें पढ़ाया जाता है,
पर उसमें नये ढंग का तरीका नहीं बताया जाता है,
हम रोज अखबारों में पढ़ते हैं
जब होता है विद्यालय में खेल का पीरियड
तब हम खेल के प्रबंध पर चर्चा करते हैं,
किस तरह खेलों में नाम कमायें,
तय किया है कि ‘कुशल प्रबंधक‘ बन जायें,
आप बेफिक्र रहें
किसी से कुछ न कहें,
कोई न कोई आपके यहां का छात्र
खेल जगत में नाम कमायेगा,
मैदान पर नहीं तो
खेल प्रबंधन में जाकर
अपने साथ विद्यालय की इज्ज़त बढ़ायेगा,
उसकी खिलाड़ी करेंगे चाकरी,
खिलाड़िनों को भी नचायेगा,
भले ही न पकड़ता हो हॉकी,
बॉल से अधिक पकड़े साकी,
पर खेल जगत में नाम कमायेगा।’’

——————————–
कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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चमचागिरी का कलंक-हिन्दी हास्य कविता


समाज सेवक ने अपने पुराने चमचे को बुलाया
और कहा
‘क्या बात है
इतने दिनों से लापता हो
कभी अपना चेहरा नहीं दिखाया,
भूल गये वह समय जो हमने
तुम्हारे साथ बिताया,
अरे, कुछ इज्जत करो हमारी
तो बन जायेगी जिंदगी तुम्हारी
वरना जिंदगी में कुछ हाथ नहीं आयेगा।’
चमचे ने कहा
‘हुजूर छोटे के अगाड़ी
बड़े के पिछाड़ी नहीं चलना चाहिये
आपकी संगत में यही बात समझ में आयी
जब तक नहीं जमी थी
आपकी समाज सेवा की दुकान
तब तक ही पाते रहे सम्मान
जब मिलने लगा आपको ढेर सारा चंदा,
हमें भूल कर याद रहा बस आपको धंधा,
घर से बाहर निकले कार में,
अपने कुनबे को ही लगा लिया
ज़माने की भलाई के व्यापार में,
सुना है किसी प्रकरण में
आपकी चर्चा भी अखबार में आई,
सिमट सकती है आपकी दुकान
शायद इसलिये आपको मेरी याद आई,
मगर हमें माफ करियेगा
अब नहीं निभेगी आपके साथ
हमने पाया आपकी संगत से बुरा अहसास,
नहीं करना चाहिए बड़े इंसानों से कोई आस,
सारे दाग मिट जायेंगे किसी भी साबुन से
पर किसी के चमचे बने तो
ऐसा कलंक कभी नहीं मिट पायेगा।’
———–

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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किसे धन्यवाद दूं साधु या शैतान को-हिन्दी हास्य कविता


गुरुजी ने अपने शिष्य को
उसके घर पहुंचने का संदेश भिजवाया,
तब वह बहुत घबड़ाया
अपनी पत्नी, बेटी और बहु से बोला
‘अरे भई,
बड़ी मुद्दत बाद वह वक्त आया
जब मेरे गुरुजी ने मेरे शहर आकर
घर पहुंचने का विचार बताया,
सब तैयारी करो,
स्वागत में कोई कमी न रह जाये,
इतने बड़े शिखर पर पहुंचा
उनकी कृपा से ढेर सारे फल पाये,
अब गुरु दक्षिणी चुकाने का समय आया।’
सुनकर बहु बोली
’लगता है ससुर जी आप न अखबार पढ़ते
न ही टीवी अच्छी तरह देखते,
आजकल के गुरु हो गये ऐसे
जो अपने ही शिष्यों के घरों की
महिलाओं पर कीचड़ फैंकते,
तौबा करिये,
बाहर जाकर ही गुरु दक्षिणा भरिये,
जवानी होती दीवानी,
बुढ़ापे में आदमी हो गुरु, हो जाता है रोमानी,
गेरुऐ पहने या सफेद कपड़े,
गुरुओं के चर्चित हो रहे लफड़े,
शैतान से बच जाते हैं क्योंकि
उससे बरतते पहले ही सुरक्षा
फिर वह पहचाना जाता है,
जरूरत है साधु से बचने की जो
शैतानी नीयत से आता है,
ऐसा मेरे पिता ने बताया।’

बहु के समर्थन में सास और
ननद ने भी अपना सिर हिलाया
तब ससुर बोले
‘चलो बाहर ही जाकर
उनके दर्शन करके आता हूं
पर तुम्हारी एकता देखकर सोचता हूं कि
किसे धन्यवाद दूं
साधु या शैतान को
किसने सास बहु और ननद-भाभी को
किसी विषय पर सहमत बनाया।’
————————

वेलंटाइन डे पर हास्य कविता (hindi comic poem on velantine day)


खबरची को किया उसके गुरु ने फोन

और बहुत दिन से न मिलने का दिया ताना

तब वह बोला

‘गुरुजी क्या बताऊं

खबरों की दुनियां हो गयी है जंग का मैदान

पिछ़ड जाओ एक दिन तो

मिट्टी में मिल जाती है

बरसों से कमाई अपनी शान,

पहले क्रिकेट में जीत पर लिखना था,

क्योंकि देशभक्त दिखना था,

फिर आ गया एक फिल्म का विवाद,

अभिव्यक्ति का समर्थक दिखना था निर्विवाद

अब वह भी निपट गया है

इसलिये अब कल मिलने आऊंगा

आपका ख्याल अब आ रहा है।’

गुरुजी बोले

‘ठीक है,

फिर एक सप्ताह बाद आना

अभी तुम्हें प्रेम दिवस पर लिखना है,

इंसानों जैसा दिखना है,

क्योंकि उस पर खड़ा होगा विवाद,

तुम्हें आजादी का पक्षधर दिखना है निर्विवाद,

दो दिन में वैलंटाईन डे आ रहा है।’

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
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समाज सेवा में सदाबहार-हिन्दी हास्य कविता (social service-hindi comedy satire poem)


बरसात की बूंदें जैसे ही
आकाश से जमीन पर आई।
अकाल राहत सहायता समिति के
सदस्यों के चेहरे पर चिंता घिर आई।
पहुंचे सभी अध्यक्ष के पास
और वहां अपनी बैठक जमाई।
एक बोला अध्यक्ष से
‘अध्यक्ष जी यह क्या हुआ?
हमने तो अपने घर के सामान
खरीदने का सोचा था
आखिर अकाल का लोचा था
अब यह क्या हुआ
अकाल का नारा लगाकर कर
हम चिल्ला रहे थे
इधर उधर चंदे के लिये
फोन मिला रहे थे
अब क्या होगा
मौसम विभाग की भविष्यवाणी के बिना
यह बरसात कैसे आई?
अब कैसे होगी कमाई?’

अध्यक्ष ने हंसते हुए कहा
‘क्यों परवाह करते हो
जब तक मैं अध्यक्ष हूं भाई।
अब भला चंदा मांगने
घर घर क्या जाना
अब तो इंटरनेट का है जमाना
मैंने तो तीन महीने पहले ही
जब बरसात न होने का सुना
अपनी संस्था के लिये
इंटरनेट पर चंदा मांगने का प्लान चुना
दरियादिलों ने बहुत सारा माल दिया
भले ही जितना मांगा उससे कम दाना डाल दिया
अपने हिस्से का चेक तुम ले जाओ
अब बाढ़ होने के लिये
सर्वशक्तिमान के दरबार में गुहार लगाओ
अपनी समिति का नाम
अकाल राहत की जगह
बाढ़ पीड़ित सहायता समिति दिखाओ
हम तो सदाबाहर समाजसेवक हैं
अरे, मैंने यह समिति ऐसे ही नहीं बनाई।

……………………………………

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