हमारे दर्शन के अनुसार मनुष्य योनि बहुत पुण्य करने पर मिलती है और अगर कोई इस योनि में दान-पुण्य और धर्म का निर्वाह नहीं करेगा तो उसे चौरासी लाख योनियों में भटकना पडेगा। नित-प्रतिदिन चाहे किसी सत्संग में जाये यही सुनने को मिलेगा।
मगर ज़रा समाज की हालत देखिये तो किस हाल में पहुंच गया है। बचपन से लेकर आज तक मैंने यहाँ लोगों के रंग-ढंग देखे हैं उससे मुझे हंसी आती है शायद यही कारण है की कभी गंभीर लेख लिखने बैठता हूँ तो व्यंग्य लिख जाता हूँ। कई लोगों को मैंने अपनी जिन्दगी में सघर्ष करते देखा। अपने परिवार और बच्चों के लिए रोटी जुटाने के लिए उन्होने जमकर संघर्ष किया और फिर लक्ष्मी जी की उन पर कृपा हुई तो सरस्वती ने विदा ले ली। उम्र के उस मोड़ पर उन्हें शराब पीते देखा जिसमें उसे छोडा जाता है।
उस दिन एक सगाई में गया। वहाँ लड़के के नाना को दारू पीते देखा। मेरे दादाजी से उनकी मित्रता थी और कई बार मैं अपने पिताजी के साथ उनके घर गया था। वह व्यापार के लिए बाहर जाते थे और कहीं से कुछ सामान लाते थे जो हमें सौंपते थे। वह शराब आदि नशे से दूर थे यह बात मैंने अपने बडे लोगों के मुख से सुनीं थी। उनको शराब पीता देख कर मैंने लड़के के पिता अपने मित्र से पूछा-”इन्होने कब से पीना शुरू की।”
उसने इधर-उधर देखा और बोला-”तुमने पीना कब बंद किया?”
उस समय मेरे सामने तीन लोग और थे और वहाँ मेरे लिए भी ग्लास तैयार किया गया था और मैंने उसे लेने से इनकार कर दिया। मैंने अपने मित्र से कहा–”अगर तुम यह सोचते हो कि में इसे पीने वाला हूँ तो भूल जाओ। मैंने पांच साल पहले पीना छोड़ दिया है। कभी कभार पी लेता था और वह भी एक वर्ष से बंद है। हाँ, तुम इस बात को टालों मत के तुम्हारे ससुर ने कब से पीना शुरू कर दिया है।”
मेरा मित्र वहाँ से खिसक गया तो एक अन्य दोस्त बोला-”इनको पीते हुए पंद्रह वर्ष हो गए हैं।”
मैंने हिसाब लगाया तो उन्होने पचपन वर्ष की आयु में पीना शुरू किया होगा। मेरा मेजबान मित्र फिर हमारे पास से गुजरा तो मैंने उसे बुलाया और कहा-”पर मेरी उम्र अभी पचपन नहीं हुई है तो पांच वर्ष पहले कैसे हो सकती थी। ऐसा लगता है कि तुम्हारे ससुर को गलत संगत लग गयी है।”
मेरा मित्र बोला ”तुमने अधिक पी ली है।
दूसरे मित्र ने कहा-”यह तो ले ही नहीं रहा है?”
मेरे मित्र ने कहा-”क्यों आज कैसे साधू बन रहे हो।”
मैंने कहा-”आखिर इमेज भी कोई चीज है। तुम खुद नहीं पीते हो और दूसरों को पथभ्रष्ट कर रहे हो। वैसे भी तुम बहुत चालाकी करते रहे हो पर अब नहीं चलेगी।”
वह हंसकर चला गया तो दूसरा मित्र बोला-”तो तुम्हें भी बाकी लोगों की तरह इसके बारे में गलतफहमी है कि यह पीता नहीं है। आओ चलो दिखाऊँ।”
वह मेरे कंधे पर हाथ रख कर बगीचे के पास बनी इमारत के एक कमरे में ले गया। मैंने देखा मेरा मित्र अपने कुछ खास लोगों में एक सज्जन के हाथ से ग्लास लेकर पी रहा था। मैंने अपने दोस्त को खींचा और वापस अपनी टेबल पर आ गया। दरासल मेरा वह मित्र बाहर काम करता था पर अपने अधिकतर रिश्तेदार हमारे शहर में होने के कारण यहीं सगाई कर रहा था।
बाद में मैंने उसे पाउच से कुछ निकाल कर जब धीमा जहर खाते देखा तो मुझे हैरानी हुई। मैंने अपने दूसरे दोस्त से कहाँ-”शराब तो ठीक! यह पाउच तो एकदम जहर जैसा है। कमाल यह लोग इसे खाते कैसे हैं?”
मेरे मित्र ने अपनी जेब से एक पाउच निकला और उसमें से दाने अपनी मुहँ में दाल दिए। और बोला-ऐसे।
शराब और अन्य व्यसन जिस तरह समाज का हिस्सा बन गए हैं उसे देखकर मैं सोचता हूँ कि हम जिस स्वस्थ भारत की बात करते हैं वह एक कल्पना है। लोग शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ दिखते हैं पर क्या वाकई होते हैं।
मैं जब पीता था तो किसी महफ़िल में जाने से पहले पीकर जाता था और वहाँ पीता था तो थोडी पीता था। उसमें भी मैंने कभी किसी से बदतमीजी नहीं की। कई बार लोग महफिलों में उधम मचा देते हैं। शराब पीने से आदमी के खून में तेजी आती है पर उसका फायदा उठाकर लोग बदतमीजी उसी से करते हैं जिससे डरते नहीं है। वरना अपने से ताक़तवर आदमी के आगे वह वैसे ही क्यों मिमियाते हैं जैसे बिना शराब के मिमियाते हैं, हालांकि यह एक अलग विषय है पर हम समाज की रीतियों को चला रहे हैं उसमें शराब और अन्य व्यसन कैसे शामिल किये गए हैं उसका कोई जवाब नहीं दे सकता है।
उस पर जिस तरह पाउचों का सेवन बढ़ रहा है वह आने वाले कॉम को किस हालत में पहुँचायेगा कहा नहीं जा सकता। उस दिन एक लड़का घर आया। वह पाउच खाता है। थोडी देर बैठने के बाद बोला-”मेरे सिर में दर्द हो रहा है। आपके पास कोई गोली है?”
मैंने कहा-”गोली तो नहीं है और होती तो भी देता नहीं। तुम अपनी जींस पर कसकर बंधा हुआ बेल्ट थोडा ढीला कर लो। तुम्हारा सिर दर्द थोडी देर में ख़त्म हो जायेगा नहीं तो फिर तुम्हें दूसरा उपाय बताऊंगा।”
उसने बेल्ट ढीला किया, उसके कुछ देर बाद भी वह बात करता रहा और फिर बोला–”मेरा सिर दर्द कम हो रहा है। पर कमाल है यह आपने सब कैसे सोचा?।”
मैंने उसे कहा-”तुमने मेरे सामने ही तीन पुडिया खाईं है और तुम्हारा कसा हुआ बेल्ट देखर मुझे लगा कि कहीं हवा का चक्कर है। तुम्हें बहुत जल्दी पता लग गया पर मुझे बहुत देर बाद समझ में आयी।”
हम अपने शरीर को निरर्थक कामों में अधिक लगा रहे हैं। शरीर के विकार तो दिखाई देते हैं पर मन के विकार तो कोई ही देख पाता है। अपने शरीर से खिलवाड़ करते लोगों पर मुझे बहुत तरस आता है क्योंकि एक समय मैं भी इस दौर से निकल चुका हूँ। वर्तमान हालत में लोगों पर तनाव अनेक कारणों से बढ़ रहा है पर उससे बचने के लिए जो उपाय करते हैं वह तनाव और बढा देते हैं। जब उस उपाय का असर ख़त्म होता है तो तनाव बढ़ने के साथ थकावट भी बढ़ जाती है।
Like this:
पसंद करें लोड हो रहा है...