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अन्ना हजारे के आंदोलन की छवि पर उठ रहे हैं सवाल-हिन्दी लेख


                    अन्ना हजारे की टीम ने एक बार फिर जनलोकपाल बनाने के लिये अपना आंदोलन प्रारंभ कर दिया है।  अगर जरूरत पड़ी  और स्वास्थ्य न ेसाथ दिया तो अन्ना हजारे स्वयं भी अनशन पर बैठ सकते हैं।  अगर मगर किन्तु परंतु और यह वह के चक्कर में अन्ना हजारे जी का भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन अपनी उज्जवल छवि खो चुका है इसका पता तो इसके पा्ररंभ होने के एक दिन पहले ही इंटरनेट पर उन लोगों को चल गया होगा जो लेखन और रचनाओं के माध्यम से ब्लाग लिखने के साथ ही उसे पढ़ने वालों का मार्ग भी देखते हैं।  सर्च इंजिनों में इस आंदोलन के लिये खोज कम हुई है यह हम बड़े सादगी से लिख रहे हैं हकीकत यह है कि लोगों की रुचि इसमें खत्म हो गयी लगती है।  कुछ लोग यह कहें कि पूरे भारत की जनता इंटरनेट से जुड़ी नहीं है इसलिये इस आधार इस आंदोलन की लोकप्रियता कम होने की बात ठीक नहीं है पर हमारा अनुभव यह कहता है कि जब प्रचार माध्यमों में इस आंदोलनों का जोर था तब इंटरनेट पर भी इसकी खोज जमकर हो रही थी।  कहने का अभिप्राय यह है कि समाज की रुचियों में समानता होती है यह अलग बात है कि लोग अपने अपने स्तर के अनुसार साधनों का चयन कर समान विषयों से जुड़ते हैं।            आखिर यह सब कैसे हो गया? इस आंदोलन से भले ही कुछ चेहरे चमके हों, अनेक लोगों को बौद्धिक विलास का सामग्री मिली हो तथा इसके समाचारों के साथ ही बहसें प्रसारित कर समाचार चैनलों ने भले ही विज्ञापनों के लिये जमकर समय का इस्तेमाल किया हो पर इसका परिणाम वहीं का वहीं है जहां से यह प्रारंभ हुआ था। अगर हम परिणामों को आंकड़ों में नापें तो सामने शून्य ही आता है।

अन्ना हजारे के साथ जुड़े संगठनो के कर्णधारों ने उनके चेहरे का खूब उपयोग किया पर यह साफ दिखाई दिया कि कहीं न कहीं उनके लक्ष्य अस्पष्ट थे।  साफ बात यह है कि अन्ना और उनकी टीम आज भी दो अलग भाग दिखाई देते हैं।  अन्ना अकेले हैं पर उनके साथ जुड़े अन्य लोग अपने संगठन उनके पीछे लाकर स्वयं के  चेहरे चमकाने के अलावा कुछ नहीं कर पाये। जब यह अंादोलन अपने स्वर्णिम दौर  में था तब लोगों की भावनायें उच्च स्तर पर उसके साथ जुड़ी थीं।  उन भावनाओं से विभोर होकर आंदोलन के कर्णधार अनेक  तरह के ऐसे बयान देने लगे थे जिससे आंदोलन के लक्ष्य तथा विचार अस्पष्ट दिखाई देने लगे  थे।  उनके शब्दों में उत्साह  अधिक पर  गंभीर तथा स्पटतः विचारों का अभाव दिखाई देने लगा था।  उनकी कोई स्पष्ट योजना नही थी न ही  भविष्य के स्परूप की कोई कल्पना थी।  खाली बयानबाजी तथा अस्पष्ट वादों के बीच यह आंदोलन लंबे समय तक लोकप्रिय नहीं बना रह सका।

अब सब थम चुका है।  हमारा मानना है कि अन्ना अब शायद ही स्वयं अनशन पर बैठें क्योंकि वह हवा का रुख देखकर अपनी चाल चलने वाली ऐसी शख्सियत हैं जो अपने इसी गुण की वजह से लोकप्रिय हैं।  प्रचार माध्यम अन्ना हजारे के आंदोलन को फ्लाप शो कर रहे हैं तो यह बात मानना ही पड़ती है।  यकीनन अन्ना यह सब भांपने में माहिर हैं और वह अपने कदम उस तरह आगे न बढ़ायें जैसे कि उनकी टीम अपेक्षा कर रही है। इतना अनुमान तो प्रचार प्रबंधको ने लगा ही लिया होगा कि इस बार यह आंदोलन अब उनके लिये विज्ञापन प्रसारित करने का इतना समय नहीं दिला सकता।  अगर हम वर्तमान समय में लोकप्रियता का आधार तय करें तो वह केवल यही है कि किसी शख्सियत की लोकप्रियता उतनी ही होती है जितनी वह प्रचार  माध्यमों को विज्ञापन के बीच प्रसारित खाली समय में अपनी जगह बना सके।  अन्ना समाचारों में तो हैं पर विज्ञापनों के लिये समय जुटाने का सामर्थ्य उनके आंदोलन में अब उतना नहीं है।  यही कारण है कि प्रचार माध्यम अब शायद इस आंदोलन के लिये वैसे काम न करें जैसे कि पहले करते रहे थे।  9 अगस्त से बाबा रामदेव भी अपना आंदोलन चलाने वाले हैं। वह इस समय देश में लगातार इसका प्रचार कर रहे हैं।  उनके इस आंदोलन की स्थिति पर भी लिखेंगे पर पहले अवलोकन करें।

कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  ‘Bharatdeep’,Gwalior

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ओसामा बिन लादेन की मौत पर विवाद तो चलते ही रहेंगे-हिन्दी लेख (osama bin laden ki maur par vivad-hindi lekh or article)


                       ओसामा बिन लादेन अब इस धरती पर नहीं है यह बात तय है। विवाद इस बात पर है कि वह कब और कहां मरा? अमेरिकी स्वयं ही मामले को संदेहास्पद बना रहे हैं। उनकी कुछ बातें दिलचस्प है।

पाकिस्तान को कार्यवाही का नहीं पता
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                             अमेरिकन रणनीतिकारों का सबसे बड़ा झूठ यह कि पाकिस्तान को अमेरिकी सैन्य कार्यवाही का पता नहीं था। एक सैनिक की मौत पर ही  डरने वाला अमेरिका इतना बड़ा जोखिम नहीं ले सकता था। उसकी सेना अपने हेलीकॉप्टर उस पाकिस्तान में उतारने वाली थी जहां आतंकवादियों के पास भी विमान गिराने वाली मिसाइलें रहती हैं। यह संभव नहीं है कि इतने सारे हेलीकॉप्टर बाहर से उड़ कर आये और पाकिस्तानी सेना में किसी के पास जानकारी न हो। सभी अधिकारियों को नहीं तो अमेरिका के खास अधिकारियो को इसकी जानकारी होगी। दरअसल अमेरिका पाकिस्तान को बचा रहा है ताकि वह अपने ही धर्मबंधु देशों की नाराजगी का शिकार न हो। दूसरी बात यह कि वह ओसामा बिन लादेन को शरण देने के आरोपों से भी पाक रणनीतिकारों का बचा रहा है।
केवल बच्चा गवाह बन रहा है
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                  पाकिस्तान के एक बच्चे के अलावा कोई दूसरा गवाह नहीं है यह बताने वाला कि मरने वाला ओसामा बिन लादेन ही था। लादेन की लाश किसी ने नहीं देखी। कोई मरा वह कोई भी हो सकता था। बच्चा सारी बात बता रहा है पर वह यह दावा नहीं कर सकता कि उसे उपहार में दो खरगोश देन वाला बिन लादेन ही था। कोई बड़ा गवाह न मिलना इस बात का प्रमाण है कि कहीं न कहीं दाल में काला है।

परिवार को लेकर विरोधी बयान
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                             एक तरफ अमेरिका दावा कर रहा है कि इस हमले में बिन लादेन की एक पत्नी मारी गयी तो दो पकड़ी गयीं। इधर पाकिस्तान कह रहा है कि लादेन का परिवार उसके पास सुरक्षित है। सवाल यह है कि उसकी पत्नियों को प्रचारक लोग सामने क्यों नहीं ला रहे। पाकिस्तान कह रहा है कि लादेन के परिवार को उसके देश भेज दिया जायेगा। अगर लादेन को समुद्र में दफनाया गया तो उसके परिवार के लोगों को क्या वहां ले जाया गया? अगर नहीं तो क्यों?
यहां यह बात याद रखने लायक है कि मरने वाला लादेन ही था इसकी पुष्टि उसके परिवार के वही सदस्य ही कर सकते हैं जो इस हमले में समय उसके पास थे। अब सवाल यह है कि उनमें से कोई क्या कभी प्रचार माध्यमों के पास आकर बतायेगा कि वह लादेन ही था?

फिक्सिंग के लिये बदनाम है पाकिस्तान
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                      लादेन को गोली या बम से ही मरना था। जिस मार्ग पर वह चला वही सामने से आती गोली या ऊपर से गिरने वाले बम के साथ ही बंद हो जाता है। यह सच है। अमेरिका लादेन को मारने के इतने प्रयास कर चुका है कि उसके सेना की गज़ब की क्षमता और अचूक निशाने देखकर लगता है कि वह कई बार मरा होगा। एबटाबाद में उसका मरना कोई बड़ी बात नहीं है। पाकिस्तान हमेशा ही उसका खैरख्वाह रहा है। मगर जिस तरह अमेरिका और पाकिस्तानी रणनीतिकार ओसामा बिन लादेन की औपचारिक मौत के बाद जिस तरह नाटकबाजी कर रहे हैं उससे फिक्सिंग का शक होता है। वैसे भी पाकिस्तान की क्रिकेट टीम फिक्ंिसग के लिये बदनाम हैं। पाकिस्तान की टीम के बारे में कहा जाता है कि वह हमेशा ही हारना फिक्स करती है उसी तरह पाकिस्तान के रणनीतिकार भी अमेरिका से अपना पिटना फिक्स करते हैं। यह अलग बात है कि बाद में अमेरिका उनके घावों पर मरहम लगाता है। फिर पैसे की भी मदद करता है। ऐसे में यह संभव नहीं है कि पाकिस्तानी रणनीतिकार अपने आका की बात का किसी तरह प्रतिवाद करें।
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कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,ग्वालियर 
poet writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwalior
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