hindi poet,writter and editor-Deepak ‘Bharatdeep’,Gwalior
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ग्वालियर मध्यप्रदेश
athor and editor-Deepak “Bharatdeep”,Gwalior
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जिनको शासन मिला है विरासत में
वह बड़े शासक बनना चाहते हैं,
जो शासित हैं
वह भी शासक बनने का ख्वाब पाले
जिंदगी में लड़े जा रहे हैं,
कमबख्त! जिस जिंदगी को
आसानी से जिया जा सकता है
लोग खुद जंग लड़कर
उसे मुश्किल बना रहे हैं।
——–
लोग जलाते हैं जो चिराग
वह उसे बुझा देते हैं,
रौशनी के दलाल
अपनी दलाली के लिये
करते हैं अंधेरों का सौदा
रात के अंधेरे में चमकता
कोई तिनका भी राह में दिख जाये
उसे भी पत्थरों के नीचे दबा देते हैं।
————-
कवि, संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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समाज, शासक, शासित, जनता और सरकार, व्यंग्य कविता,जीवन संघर्ष,सन्देश,society,hindi satire poem,shasak,shasit,zindagi aur zung,jindagi,jivan sangram,sangharsh,hindi kavita
गरीबी हटाओ,
धर्म बचाओ
और चेतना लाओ
जैसे नारों से गुंजायमान है
पूरा का पूरा प्रचार तंत्र।
चिंतन से परे,
सुनहरी शब्दों से नारे भरे,
और वातानुकूलित कक्ष में
वक्ता कर रहे बहस नोट लेकर हरे,
खाली चर्चा,
निष्कर्ष के नाम पर काले शब्दों से सजा पर्चा,
प्रचार के लिये बजट ठिकाने के लिये
करना जरूरी है खर्चा,
भले ही आम आदमी हाथ मलता रहे,
मगर बाज़ार का काम चलता रहे,
सौदागर का खाता फलता रहे,
नयी सभ्यता का यही है अर्थतंत्र।
पैसे के लिये जीना,
पैसे लेकर पीना,
पैसा चाहिए बिना बहाऐ पसीना,
आधुनिक युग का यही है मूलमंत्र।
——–
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
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तारीफों के पुल अब उनके लिये बांधे जाते हैं,
जिन्होंने दौलत का ताज़ पहन लिया है।
नहीं देखता कोई उनकी तरफ
जिन्होंने ज़माने को संवारने के लिये
करते हुए मेहनत दर्द सहन किया है।
——–
खौफ के साये में जीने के आदी हो गये लोग,
खतरनाक इंसानों से दोस्ती कर
अपनी हिफाजत करते हैं,
यह अलग बात उन्हीं के हमलों से मरते हैं।
बावजूद इसके
सीधी राह नहीं चलते लोग,
टेढ़ी उंगली से ही घी निकलेगा
इसी सोच पर यकीन करते हैं।
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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3.अनंत शब्दयोग
चार मजदूर
रास्ते में ठेले पर सरिया लादे
गरमी की दोपहर
तेज धूप में चले जा रहे थे,
पसीने से नहा रहे थे।
ठेले पर नहीं थी पानी से भरी
कोई बोतल
याद आये मुझे अपने पुराने दिन
पर तब इतनी गर्मी नहीं हुआ करती थी
मेरी देह भी इसी तरह
धूप में जलती थी
पर फिर ख्याल आया
देश की बढ़ती विकास दर का
जिसकी खबर अखबार में पढ़ी थी,
जो शायद प्रचार के लिये जड़ी थी,
और अपने पसीने की बूंदों से नहाए
वह मजदूर अपने पैदों तले रौंदे जा रहे थे
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://rajlekh.blogspot.com
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2.शब्दलेख सारथि
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
अपने जज़्बातों को दिल में रखो
बाहर निकले तो
तूफान आ जायेगा।
हर बाजार में बैठा हैं सौदागर
जो करता है व्यापार जज़्बातों का
वही तुम्हारी ख्वाहिशों से ही
तुमसे तुम्हारा सौदा कर जायेगा।
यहां हर कदम पर सोच का लुटेरा खड़ा है
देख कर ख्याल तुम्हारे
ख्वाब लूट जायेगा।
इनसे भी बच गये तो
नहीं बच पाओगे अपने से
जो सुनकर तुम्हारी बात
सभी के सामने असलियत गाकर
जमाने में मजाक बनायेगा।
लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
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गड़े मुर्दे उखड़ कर भी
इसलिये ताजा हो जाते हैं।
क्योंकि जिसे मुद्दे पर
चला चर्चा का दौर एक बार
फिर वह कभी मर नहीं पाते हैं।
जो लोग मुद्दे बनाकर
जिंदगी जीते रहे
वही उनको अमर भी बनाते हैं।
——–
नायकत्व का आकर्षण इतना
कि लोग मरों की राख से
अपना चेहरा सजाते।
एक नारा खोजकर
अपनी जुबान से वाद की तरह बजाते।
दिखावे की जिंदगी जीने की आदत
इस कदर हो गयी लोगों में
अपनी ही सच से मुंह स्वयं ही मुंह छिपाते।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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बेटे ने मां से कहा
‘‘मां, मुझे पैसा दो तो
कार खरीद कर लाऊं
कालिज उससे जाकर अपनी छबि बनाऊं
पापा, नोटों की भरी पेटी रखकर
दौरे पर गये हैं
मुझे अपने दोस्तों में रुतवा दिखाना है
क्योंकि सभी नये हैं
पता नहीं पापा कब आयेंगे
तब तक अपनी इस मोटर साइकिल पर जाऊंगा तो
सभी मेरी हंसी उड़ायेंगे।’
सुनकर मां गद्गद्वाणी में बोली
‘बेटा, तुम्हारे पापा समाज सेवक है
सभी जानते हैं
उनको इसलिये मानते हैं
यह पेटी उन्हीं चंदे के नोटों से भरी है
जो सूखा राहत बांटने के लिये यहां धरी है
माल तो यह सभी अपना है
सूखा पीड़ितों के लिये तो बस एक सपना है
पर तुम्हारे पापा कागज पत्रक पूरे करने के लिये
दौरे पर गये हैं
उनका नया होना जरूरी है
क्योंकि यह नोट भी नये हैं
यह दौरा कर वह राहत बंटवा रहे हैं
सच तो यह है कि
बांट सकें जिनको
उन मरे लोगों के नाम छंटवा रहे हैं
अगर अभी पैसा खर्च कर ले आओगे
अपने पापा पर शक की सुई घुमाओगे
इसलिये आने दो उनको
इस भरी पेटी से तुम्हारी कार का पैसा निकालकर
तुम्हारे हाथों से इसका
और तुम्हारी राहत का उद्घाटन करायेंगे।
…………………………
आज के बच्चे
अपने माता पिता के बाल्यकाल से
अधिक तीक्ष्ण बुद्धि के पाये जाते
यह सच कहा जाता है।
किस नायिका का किससे
चल रहा है प्रेम प्रसंग
अपने जन्मदिन पर नायक की
किस दूसरे नायक से हुई जंग
कौन गायक
किस होटल में मंदिर गया
कौन गीतकार आया नया
कौनसा फिल्मी परिवार
किस मंदिर में करने गया पूजा
कहां जायेगा दूजा
रेडियो और टीवी पर
इतनी बार सुनाया जाता है।
देश का हर बच्चा ज्ञान पा जाता है।
……………………………
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कवि ने टीवी एंकर से कहा
‘यह मेरे साक्षात्कार का बेकार नाटक रचाया।
तुम सवाल करते हुए
जवाब भी बताकर
उसे दोहराने को मजबूर करती थी,
जब अपनी बात कहता तो
ब्रेक लगाकर दूर कर देती थी,
तुम्हारे सवाल मेरे जवाब से लंबे थे
मैं सवाल समझता तुम
जवाब वैसे ही भर देती थी,
यह कार्यक्रम देखकर लोग तुम्हें ही
याद रखेंगे,
मुझे भूल जायेंगे,
लोग इसे देखकर
मुझ पर हंसने लग जायेंगे
इस कार्यक्रम में तो तुमने
मुझे एक तरह से आइटम कवि बनाया।
यह सुनकर एंकर को गुस्सा आया।
वह बोली
‘काहे के कवि हो
पता है ब्लाग पर तुम्हारी
हास्य कविताऐं फ्लाप हो जाती है
मैंने भी पढ़ी
पर समझ में नहीं आती हैं।
आधी रात को प्रसारित होने वाले
इस कार्यक्रम के लिये
कोई आइटम नहीं मिल रहा था
इसलिये तुमको बड़ा कवि बताया।
यह चैनल कोई तुम्हारा मंच नहीं है
इस पर करोड़ों का खर्च आया।
फिर तुम्हें मालुम नहीं है कि
कमाई से ही होता है सम्मान
मैं अपने कार्यक्रम के लिये
इतना पैसा लेती हूं
तो प्रचार भी मुझे ही मिलेगा
तुम जैसे फोकट के कवि का चेहरा दिखाकर
हमारा नाम कार्यक्रमों की तुलनात्मक दौड़ में गिरेगा
कवि हो इतना भी नहीं जानते
महिलाओं से हिट्स होते हैं कार्यक्रम
तुम जैसे कवियों को लोग फालतू मानते
अब जाकर पी लेना
कैंटीन में काफी
वरना वह भी खत्म हो जायेगी
फिर न कहना पहले नहीं बताया।
तुम्हारे साक्षात्कार से
न तो कोई सनसनी फैलेगी,
न जमेगी हंसी की महफिल,
हमारी पब्लिक इसे कैसे झेलेगी,
पता करूंगी इस चैनल में
कौन उल्लू है
जो तुम्हें यहां ले आया।
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बरसात की बूंदें जैसे ही
आकाश से जमीन पर आई।
अकाल राहत सहायता समिति के
सदस्यों के चेहरे पर चिंता घिर आई।
पहुंचे सभी अध्यक्ष के पास
और वहां अपनी बैठक जमाई।
एक बोला अध्यक्ष से
‘अध्यक्ष जी यह क्या हुआ?
हमने तो अपने घर के सामान
खरीदने का सोचा था
आखिर अकाल का लोचा था
अब यह क्या हुआ
अकाल का नारा लगाकर कर
हम चिल्ला रहे थे
इधर उधर चंदे के लिये
फोन मिला रहे थे
अब क्या होगा
मौसम विभाग की भविष्यवाणी के बिना
यह बरसात कैसे आई?
अब कैसे होगी कमाई?’
अध्यक्ष ने हंसते हुए कहा
‘क्यों परवाह करते हो
जब तक मैं अध्यक्ष हूं भाई।
अब भला चंदा मांगने
घर घर क्या जाना
अब तो इंटरनेट का है जमाना
मैंने तो तीन महीने पहले ही
जब बरसात न होने का सुना
अपनी संस्था के लिये
इंटरनेट पर चंदा मांगने का प्लान चुना
दरियादिलों ने बहुत सारा माल दिया
भले ही जितना मांगा उससे कम दाना डाल दिया
अपने हिस्से का चेक तुम ले जाओ
अब बाढ़ होने के लिये
सर्वशक्तिमान के दरबार में गुहार लगाओ
अपनी समिति का नाम
अकाल राहत की जगह
बाढ़ पीड़ित सहायता समिति दिखाओ
हम तो सदाबाहर समाजसेवक हैं
अरे, मैंने यह समिति ऐसे ही नहीं बनाई।
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