Tag Archives: व्यंग्य कविता

बाज़ार और प्रचार प्रबंधकों से इस देश की सोचने की क्षमता का खूब दोहन किया -विशेष रविवारीय लेख


                  जब कभी टीवी पर बैठें हमारा चिंतन चल पड़ता है।  कभी हंसी आती है तो कभी दुःख होता है। हमारे टीवी चैनलों ने समाज की बौद्धिक शक्ति का हरण किया है वह आश्चर्यजनक है। वह जैसा चाहते हैं वैसे ही लोग सोचते हैं।  अपना सोचना एक तरह से लोग भूल ही गये हैं।  इंग्लैंड की टीम अपने ही घर पर बीसीसीआई की टीम को धो पौंछकर घर गयी।  लगातार हार पर चैनलों का विलाप होता रहा।  टेस्ट मैचों में बुरी तरह हारी बीसीसीआई की टीम के लिये चैनल चीखते  रहे-अब यहां जीतो वहां जीतो।  बाद में आये  बीस ओवरीय मैच, जिनको उतना प्रचार नहीं मिला।  दरअसल टीवी चैनलों को यह मौका मिला दिल्ली में एक गैंगरैप की घटना के कारण!  इस दौरान समाचार वाले टीवी चैनलों ने तो इंग्लैंड के साथ होने वाले बीस ओवरीय मैचों की खबर अत्यंत हल्के ढंग से दी। यहां तक कि हर मैच में टॉस की खबर देने वाले समाचार चैनलों ने अपने दर्शकों को इस तरह उलझाया कि बहुत कम लोगों ने यह मैचा देखा होगा।  हर मैच में टॉस की खबर देने वाले चैनलों ने इसे शोक में छिपाया यह व्यवसायिक मजबूरियों के कारण कहना मुश्किल है। वैसे इस दौरान गैंगरैप पर हुई बहसों में टीवी चैनलों का विज्ञापन समय खूब पास हुआ। इतना ही नहीं बीसीसीआई की टीम के इंग्लैंड की पराजय से उस पर विज्ञापन समय खर्च करने से कतराने वाले टीवी समाचार चैनल पांच दिन  गैंगरैप के मसले को इस तरह प्रचारित करते रहे कि अवकाश के दिनों में उसका  पारा चढ़ ही गया और इधर भीड़ बढ़ी तो उनको विज्ञापन समय पास करने के लिये अच्छा समय मिला। भीड़ के प्रदर्शन का उन्होंने सारा दिन मैच की तरह प्रसारित किया।  पुलिस के साथ भीड़ के झगड़े का प्रसारण इस तरह हो रहा था जैसे कि कोई हॉकी या फुटबॉल मैच हो रहा हो।  यकीनन देश के अनेक बौद्धिक चिंत्तक इस पर चिंतित हो रहे होंगे।  भीड़ का प्रदर्शन मैच की तरह प्रसारित कर टीवी समाचार चैनल अपने किस व्यवसायिक सिद्धांत का पालन कर रहे थे, यह समझना कठिन है
       इधर इस खबर का जोर कम हुआ तो पाकिस्तान की टीम आ गयी।  अब उसके साथ होने वाले बीस ओवरीय मुकाबले पर समाचार चैनल पिल पड़ हैं। महामुकाबला, सुपर मुकाबला तथा जोरदार मुकाबला आदि जैसे नारे लग रहे हैं। पांच साल बाद पाकिस्तान टीम भारत आ रही है इससे बड़ा झूठ क्या हो सकता है? पिछली बार पाकिस्तान की टीम विश्व क्रिकेट कप का सेमीफायनल मैच खेलने भारत आयी थी।  चलिये मान लिया। मगर उसका स्वागत इस तरह हो रहा है जैसे कि कोई नोबल पुरस्कार जीतकर आ रहा हो।  तय बात है कि यह स्वागत केवल दिखावा है और इस पर हो रही बहसों में विज्ञापन का समय पास हो रहा है।  बहरहाल छोटे और बड़े पर्दे का प्रभाव लोगों पर पड़ता ही है।  न भी पड़े तो विज्ञापनदाताओं को तो यह लगता ही है कि उनके उत्पाद का सही समय पर प्रचार हो रहा है।
 पहले हम जब फिल्म देखते थे तब यह अंदाज नहीं था कि उनका प्रभाव कितना हमारे मन पर पड़ता है।  पता तब चला जब फिल्मों से अलग हो गये।  वह भी तब छोटे पर्दे पर समाचारों में ऐसे दृश्य सामने आये जहां कहीं किसी आदमी को अनेक आदमी मिलकर मार रहे  है और भीड़ खड़ी देख रही है। हमने एक फिल्म देखी थी जिसमें एक अपराधी समूह से जूझले वाली  महिला को अनेक गुंडे सरेआम उसके घर के बाहर निर्वस्त्र किया  पड़ौसी अपने घरों दुबक कर  यह सब देख रहे थे।  उस फिल्म की कहानी मुंबई की पृष्ठभूमि पर थी।  हमें लगा कि अगर यह सब हमारे शहर में कहीं होता तो एक दो भला आदमी बीच में आ ही गया होता। अब नहीं लगता कि कोई भला आदमी सड़क पर देश के किसी भी हिस्से में किसी नारी की इज्जत बचाने आयेगा।  समाचारों में अनेक जगह महिलाओं पर सरेआम अत्याचार देखकर लगता है कि अब तो पूरा देश ही उस समय की मुंबई जैसा हो गया है जब हमने फिल्म देखी थी।  दूसरों की क्या कहें अपने पर भी संदेह है कि हम अकेले कहीं किसी अनाचार पर बोल पायेंगे कि नहीं।  सच कहें तो बड़े पर्दे की फिल्मों ने कहीं न कहीं कायरपन का बोध भर ही दिया है।
         हमारा स्पष्ट आरोप है कि मुंबईया फिल्मों में जानबूझकर ऐसे दृश्य डाले गये जिससे लोग किसी अपराधी गिरोह के विरुद्ध विद्रोह न करें या कहीं एक होकर अपराधियों पर सार्वजनिक रूप से प्रहार करें।  केवल नायक के अवतरण की प्रतीक्षा करते हुए सब देखते रहें। लगता है कि  इन फिल्मों में धन देने वाले लोग  ऐसे काले धंधों वाले रहे होंगे जो भीड़ से अपने गुर्गों को बचाना चाहते होंगे।  उनकी वजह से ही ऐसी नायक प्रधान कहानियां लिखी गयी जिससे समाज में कायरता या निर्लिप्तता का भाव आ जाये।  अब छोटे पर्दे पर भी यही दिखाई दिया।  जब यह सब देखते रहे तो चिंत्तन भी चलता रहा। अब लगता है कि बाज़ार और प्रचार प्रबंधकों का एक समूह है जो अपने समय और हित के अनुसार समाज का पथप्रदर्शन इस तरह करता है कि उसका नेतृत्व धन लेकर उनके हितों का ध्यान रखते  हुए  अपनी भूमिका तय करता रहे।  कब देश में देशभक्ति का भाव जगाना है और कब लोगों  प्रेम और उदारता का नारा दिखाकर विदेश के प्रति आकर्षित करना है, यह सब अपने हिसाब से बाज़ार तथा प्रचार प्रबंधक तय करते हैं।  देखा जाये तो वह हर हाल में सफल हैं।  नफरत से सनसनी और प्रेम में मनोरंजन बेचने की जो कला बाज़ार और प्रचार प्रबंधकों ने सीखी है वह आश्चर्यजनक है।
          सच बात तो यह है कि समाज छोटे और बड़े पर्देे से प्रभावित हो रहा है।  हमें इस पर आपत्ति नहीं होती पर चिंता इस बात की है कि लोगों ने स्वचिंतन की शक्ति को खो दिया है। यह देश के लिये खतरनाक संकेत है।
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर

hindi poet,writter and editor-Deepak ‘Bharatdeep’,Gwalior

http://dpkraj.blgospot.com

यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।

अन्य ब्लाग

1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका

2.अनंत शब्दयोग

3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका

4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका5.दीपक बापू कहिन

6.हिन्दी पत्रिका 

७.ईपत्रिका 

८.जागरण पत्रिका 

९.हिन्दी सरिता पत्रिका

 

२ अक्टुबर महात्मा गाँधी जयंती पर विशेष हिंदी लेख-अध्यात्म की दृष्टि से महापुरुषों का महत्व


          2 अक्टोबर को महात्मा गांधी की जयंती है।  आधुनिक भारतीय इतिहास में महात्मा गांधी को पितृपुरुष के रूप में दर्ज किया गया है।  हम जब  भारत की बात करते हैं तो एक बात भूल जाते हैं कि प्राचीन  समम में इसे भारतवर्ष कहा जाता था।  इतना ही नहीं पाकिस्तान, बांग्लादेश तथा अफगानिस्तान, भूटान, श्रीलंका, माले तथा वर्मा मिलकर हमारी पहचान रही है।  अब यह सिकुड़ गयी है।  भारतवर्ष से प्रथक होकर बने देश अब भारत शब्द से ही इतना चिढ़ते हैं कि वह नहीं चाहते  शेष विश्व उनको भारतीय उपमहाद्वीप माने।  इस तरह भारतवर्ष सिकुड़कर भारत रह गया है।  उसमें भी अब इंिडया की प्रधानता है।  इंडिया हमारे देश की पहचान वाला वह शब्द है जिसे पूरा विश्व जानता है। भारत वह है जिसे हम मानते हैं।  यह वही भारत है जिसका आधुनिक इतिहास है 15 अगस्त से शुरु होता है।  यह अलग बात है कि कुछ राष्ट्रवादी अखंड भारत का स्वप्न देख रहे हैं।
     बहरहाल विघटित भारतवर्ष के शीर्ष पुरुषों में महात्मा गाधंी का नाम पूज्यनीय है।  उन्होंने भारत की राजनीतिक आजादी की लड़ाई लड़ी।  इसका अर्थ केवल इतना था कि भारत का व्यवस्था प्रबंधन यहीं के लोग संभालें।  संभव है कुछ लोग इस तर्क को  संकीर्ण मानसिकता का परिचायक माने पर तब उन्हें यह जवाब देना होगा देश की आजादी के बाद भी अंग्रेजों के बनाये ढेर सारे कानून अब तक क्यों चल रहे हैं?  देश के कानून ही व्यवस्था के मार्गदर्शक होते हैं और तय बात है कि हमारी वर्तमान आधुनिक व्यवस्था का आधार अंग्रेजों की ही देन है।
       महात्मा गांधी ने अपना सार्वजनिक जीवन दक्षिण अफ्रीका   में प्रारंभ हुआ था। वहां गोरों के भेदभाव के विरुद्ध संघर्ष में जो उन्होंने जीत दर्ज की उसका लाभ यहां के तत्कालीन स्वतंत्रता संग्राम आंदोलनकारियों ने उठाने के लिये उनको आमंत्रित किया।  तय बात है कि किसी भी अन्य क्षेत्र में लोकप्रिय चेहरों को सार्वजनिक रूप से प्रतिष्ठत कर जनता को संचालित करने का सिलसिला यहीं से शुरु हुआ जो आजतक चल रहा है।  अगर महात्मा गांधी इंग्लैंड से अपनी पढ़ाई प्रारंभ कर भारत लौटते तो यकीनन उस समय स्वतंत्रता संग्राम के तत्कालीन शिखर पुरुष उनको अपने अभियान में सम्म्लिित होने का आंमत्रण नहीं भेजते।
             महात्मा  गाँधी  का जीवनकाल  हम जैसे लोगों के जन्म से बहुत पहले का है।  उन पर जितना भी पढ़ा और जाना उससे लेकर उत्सुकता रहती है। फिर जब चिंत्तन का कीड़ा कुलबुलाता है तो कोई नयी बात नहीं निकलती। इसलिये आजकल के राजनीतिक और सामाजिक हालात देखकर अनुमान करना पड़ता है क्योंकि व्यक्ति बदलते हैं पर प्रकृति नहीं मिलती।  यह अवसर अन्ना हजारे साहब ने प्रदान किया।  वैसे तो अन्ना हजारे स्वयं ही महात्मा गांधी के अनुयायी होने की बात करते हैं पर उन्होंने ही सबसे पहले भ्रष्टाचार विरोधी अभियान के दौरान यह कहकर आश्चर्यचकित किया कि अब वह दूसरा स्वतंत्रता संग्राम प्रारंभ कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि ‘‘हमें तो अधूरी आजादी मिली थी‘।  ऐसे में हमारे जैसे लोगों किंकर्तव्यमूढ़ रह जाते हैं।  प्रश्न उठता है कि फिर महात्मा गांधी ने किस तरह की आजादी की जंग जीती थी।  अगर अन्ना हजारे के तर्क माने जायें तो फिर यह कहना पड़ेगा कि उन्हें इतिहास एक ऐसे युद्ध के विजेता नायक के रूप में प्रस्तुत करता है जो अभी तक समाप्त नहीं हुआ है।  अनेक लोग अन्ना हजारे की गांधी से तुलना पर आपत्ति कर सकते हैं पर सच यही है कि उनका चरित्र भी विशाल रूप ले चुका है।  उन्होंने भी महात्मा गांधी की तरह राजनीतिक पदों के प्रति अपनी अरुचि दिखाई है।  सादगी, सरलता और स्पष्टतवादिता में वह अनुकरणीण उदाहरण पेश कर चुके हैं। हम जैसे निष्पक्ष और स्वतंत्र लेखक उनकी गतिविधियों में इतिहास को प्राकृतिक रूप से दोहराता हुआ देख रहे हैं। इसलिये भारतीय दृश्य पटल पर स्थापित बुद्धिजीवियों, लेखकों और प्रयोजित विद्वानों का कोई तर्क स्वीकार भी नहीं करने वाले।
               महात्मा गांधी को कुछ विद्वानों ने राजनीतिक संत कहा।  उनके अनुयायी इसे एक श्रद्धापूर्वक दी गयी उपाधि मानते हैं पर इसमें छिपी सच्चाई कोई नहीं समझ पाया।  महात्मा गांधी भले ही धर्मभीरु थे पर भारतीय धर्म ग्रंथों के विषय में उनका ज्ञान सामान्य से अधिक नहीं था।  अहिंसा का मंत्र उन्होंने भारतीय अध्यात्म से ही लिया पर उसका उपयोग  एक राजनीति अभियान में उपयोग करने में सफलता से किया। मगर यह नहीं भूलना चाहिए  पूरे विश्व के लिये वह अनुकरणीय हैं। यह अलग बात है कि जहां अहिंसा का मंत्र सीमित रूप से प्रभावी हुआ तो वहीं राजनीति प्रत्येक जीवन का एक भाग है सब कुछ नहीं।  अध्यात्म की दृष्टि से तो राजनीति एक सीमित अर्थ वाला शब्द है।  यही कारण है कि अध्यात्मिक दृष्टि से अधिक महत्वपूर्ण कार्य न करने पर महात्मा गांधी का परिचय एक राजनीतक संत के रूप में सीमित हो जाता है।  अध्यात्मिक दृष्टि से महात्मा गांधी कभी श्रेष्ठ पुरुषों के रूप में नहीं जाने गये।  जिस अहिंसा मंत्र के लिये शेष विश्व उनको प्रणाम करता है उसी के प्रवर्तक महात्मा बुद्ध और भगवान महावीर जैसे परम पुरुष इस धरती पर आज भी उनसे अधिक श्रद्धेय हैं।  कई बार ऐसे लगता है कि महात्मा गांधी वैश्विक छवि और राष्ट्रीय छवि में भारी अंतर है। वह अकेले ऐसे महान पुरुष हैं जिनको पूरा विश्व मानता है पर भारत में भगवान राम, श्रीकृष्ण, महात्मा बुद्ध तथा  महावीर जैसे परमपुरुष आज भी जनमानस की आत्मा का भाग हैं।  इतना ही नहीं गुरुनानक देव, संत कबीर, तुलसीदास, रहीम, और मीरा जैसे संतों की  भी भारतीय जनमानस में ऊंची छवि है। धार्मिक और सामाजिक रूप से स्थापित परम पुरुषों के  क्रम में कहीं महात्मा गांधी का नाम जोड़ा नहीं जाता।  एक तरह से कहें कि कहीं न कहीं महात्मा गांधी वैश्विक छवि की वजह से अपनी छवि यहां बना पाये।
                महात्मा गांधी जब एक रेलगाड़ी में सफर कर रहे थे तब एक गोरे अधिकारी ने उनको उस बोगी से उतार दिया क्योंकि वह गोरे नहीं थे।  उसके बाद उन्होंने जो अपना जीवन जिया वह एक ऐसी वास्तविक कहानी है जिसकी कल्पना  उस समय बड़े से बड़ा फिल्मी पटकथा लेखक भी नहीं कर सकता था।  उनकी पृष्ठभूमि पर ही शायद बाद में जीरो से हीरो बनने की कहानियां फिल्मों पर आयी होंगी।  उनके जीवन से प्रेरणा लेकर एक स्वाभिमानी व्यक्ति बना जा सकता है।  हमारा अध्यात्मिक दर्शन कहता है कि भोगी नहीं त्यागी बड़ा होता है। महात्मा गांधी ने सभ्रांत जीवन की बजाय सादा जीवन बिताया। यह उस महान त्याग था क्योंकि उस समय अंग्रेजी जीवन के लिये पूरा समाज लालायित हो रहा था।  उन्होंने सरल, सादा सभ्य जीवन गुजारने की प्रेरणा दी। ऐस महापुरुष को भला कौन सलाम ठोकना नहीं चाहेगा।
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja “Bharatdeep”
Gwalior madhyapradess
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,

ग्वालियर मध्यप्रदेश

writer and poet-Deepak raj kukreja “Bharatdeep”,Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  “Bharatdeep”,Gwalior

http://zeedipak.blogspot.com

 

गुलामी कभी छिप नहीं पाएगी-हिन्दी कविता (gulami kabhi chhip nahin jayegi-hindi kavita)


ओहदा दर ओहदा
कितनी भी सीढ़ियां चढ़कर
पहाड़ जैसी हैसियत बना लो,
तुम्हारी गुलामी फिर भी छिप नहीं पायेगी।
आजाद होकर जिंदा रहने की
तुम्हारी कभी ललक नहीं दिखी,
दस्तखत केवल उसी कागज पर किये
जिस पर केवल दौलत की इबारत लिखी,
कमजोरों पर अजमाये हाथ
मगर ताकतवरों के तलुव चाटने वाली
तुम्हारी असली तस्वीर ज़माने से छिप नहीं पायेगी।
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
hindi poet,writter and editor-Deepak ‘Bharatdeep’,Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com
यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका5.दीपक बापू कहिन
6.हिन्दी पत्रिका 
७.ईपत्रिका 
८.जागरण पत्रिका 
९.हिन्दी सरिता पत्रिका

सोने के दलाल, काली नीयत पाले-हिन्दी व्यंग्य कविता


कोयले की दलाली में ही
हाथ होते हैं काले,
वह तो सोने के दलाल होकर भी
काली नीयत हैं दिल में पाले,
मालिक होकर भी खुश होना
उनका ख्वाब नहीं है।
पेट में रोटी होने पर भी
पेटियां सोने से भरते रहने का सपना
जिंदा रखते हैं जो लोग
उन पर दौलत के अलावा
किसी का रुआब नहीं है।
—————————-
सभी का जमीर गहरी नींद सो गया है,
इसलिये यकीन अब महंगा हो गया है।
भरोसेमंदों ही लूटने लगे हैं ज़माने के घर
इंसानियत की वर्दी में शैतान खो गया है।
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  ‘Bharatdeep’,Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com

————————-
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका 

५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका
६.अमृत सन्देश पत्रिका

आसमान से रिश्ते तय होकर आते हैं-हिन्दी कविताएँ


उधार की रौशनी में
जिंदगी गुजारने के आदी लोग
अंधेरों से डरने लगे हैं,
जरूरतों पूरी करने के लिये
इधर से उधर भगे हैं,
रिश्त बन गये हैं कर्ज जैसे
कहने को भले ही कई सगे हैं।
————–
आसमान से रिश्ते
तय होकर आते हैं,
हम तो यूं ही अपने और पराये बनाते हैं।
मजबूरी में गैरों को अपना कहा
अपनों का भी जुर्म सहा,
कोई पक्का साथ नहीं
हम तो बस यूं ही निभाये जाते हैं।
————–
लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर, मध्यप्रदेश
writer and editor-Deepak Bharatdeep,Gwalior, madhyapradesh
http://dpkraj.blogspot.com

                  यह आलेख/हिंदी शायरी मूल रूप से इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका’पर लिखी गयी है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन के लिये अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की हिंदी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.अनंत शब्दयोग

4.दीपकबापू   कहिन
५.ईपत्रिका 
६.शब्द पत्रिका 
७.जागरण पत्रिका 
८,हिन्दी सरिता पत्रिका 
९शब्द योग पत्रिका 
१०.राजलेख पत्रिका 

पहाड़ से टूटे पत्थर-हिन्दी व्यंग्य कविता


पहाड़ से टूटा पत्थर
दो टुकड़े हो गया,
एक सजा मंदिर में भगवान बनकर
दूसरा इमारत में लगकर
गुमनामी में खो गया।
बात किस्मत की करें या हालातों की
इंसानों का अपना नजरिया ही
उनका अखिरी सच हो गया।
जिस अन्न से बुझती पेट की
उसकी कद्र कौन करता है
रोटियां मिलने के बाद,
गले की प्यास बुझने पर
कौन करता पानी को याद,
जिसके मुकुट पहनने से
कट जाती है गरदन
उसी सोने के पीछे इंसान
पागलों सा दीवाना हो गया।
अपने ख्यालों की दुनियां में
चलते चलते हर शख्स
भीड़ में यूं ही अकेला हो गया।
———–
कवि, लेखक और संपादक-दीपक “भारतदीप”,ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak “BharatDeep”,Gwalior

http://rajlekh-patrika.blogspot.com

जिन्दगी मुश्किल बना देते हैं-हिन्दी शायरी (zindagi mushkil bana dete hain-hindi shayari)


जिनको शासन मिला है विरासत में
वह बड़े शासक बनना चाहते हैं,
जो शासित हैं
वह भी शासक बनने का ख्वाब पाले
जिंदगी में लड़े जा रहे हैं,
कमबख्त! जिस जिंदगी को
आसानी से जिया जा सकता है
लोग खुद जंग लड़कर
उसे मुश्किल बना रहे हैं।
——–

लोग जलाते हैं जो चिराग
वह उसे बुझा देते हैं,
रौशनी के दलाल
अपनी दलाली के लिये
करते हैं अंधेरों का सौदा
रात के अंधेरे में चमकता
कोई तिनका भी राह में दिख जाये
उसे भी पत्थरों के नीचे दबा देते हैं।
————-

कवि, संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com

————————-
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन

समाज, शासक, शासित, जनता और सरकार, व्यंग्य कविता,जीवन संघर्ष,सन्देश,society,hindi satire poem,shasak,shasit,zindagi aur zung,jindagi,jivan sangram,sangharsh,hindi kavita

सौदागर का खाता फलता रहे-हिन्दी व्यंग्य शायरी


गरीबी हटाओ,
धर्म बचाओ
और चेतना लाओ
जैसे नारों से गुंजायमान है
पूरा का पूरा प्रचार तंत्र।
चिंतन से परे,
सुनहरी शब्दों से नारे भरे,
और वातानुकूलित कक्ष में
वक्ता कर रहे बहस नोट लेकर हरे,
खाली चर्चा,
निष्कर्ष के नाम पर काले शब्दों से सजा पर्चा,
प्रचार के लिये बजट ठिकाने के लिये
करना जरूरी है खर्चा,
भले ही आम आदमी हाथ मलता रहे,
मगर बाज़ार का काम चलता रहे,
सौदागर का खाता फलता रहे,
नयी सभ्यता का यही है अर्थतंत्र।
पैसे के लिये जीना,
पैसे लेकर पीना,
पैसा चाहिए बिना बहाऐ पसीना,
आधुनिक युग का यही है मूलमंत्र।
——–

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

————————-
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका

सीधी राह नहीं चलते लोग-हिन्दी व्यंग्य शायरी


तारीफों के पुल अब उनके लिये बांधे जाते हैं,
जिन्होंने दौलत का ताज़ पहन लिया है।
नहीं देखता कोई उनकी तरफ
जिन्होंने ज़माने को संवारने के लिये
करते हुए मेहनत दर्द सहन किया है।
——–
खौफ के साये में जीने के आदी हो गये लोग,
खतरनाक इंसानों से दोस्ती कर
अपनी हिफाजत करते हैं,
यह अलग बात उन्हीं के हमलों से मरते हैं।
बावजूद इसके
सीधी राह नहीं चलते लोग,
टेढ़ी उंगली से ही घी निकलेगा
इसी सोच पर यकीन करते हैं।
———

कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com

यह आलेख/हिंदी शायरी मूल रूप से इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका’पर लिखी गयी है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन के लिये अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की हिंदी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.अनंत शब्दयोग

विकास दर-मजदूर दिवस पर व्यंग्य कविता


चार मजदूर
रास्ते में ठेले पर सरिया लादे
गरमी की दोपहर
तेज धूप में चले जा रहे थे,
पसीने से नहा रहे थे।
ठेले पर नहीं थी पानी से भरी
कोई बोतल
याद आये मुझे अपने पुराने दिन
पर तब इतनी गर्मी नहीं हुआ करती थी
मेरी देह भी इसी तरह
धूप में जलती थी
पर फिर ख्याल आया
देश की बढ़ती विकास दर का
जिसकी खबर अखबार में पढ़ी थी,
जो शायद प्रचार के लिये जड़ी थी,
और अपने पसीने की बूंदों से नहाए
वह मजदूर अपने पैदों तले रौंदे जा रहे थे

—————-
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://rajlekh.blogspot.com
——————————

यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.शब्दलेख सारथि
3.दीपक भारतदीप का चिंतन

व्यापार जज़्बातों का-हिन्दी शायरी


अपने जज़्बातों को दिल में रखो
बाहर निकले तो
तूफान आ जायेगा।
हर बाजार में बैठा हैं सौदागर
जो करता है व्यापार जज़्बातों का
वही तुम्हारी ख्वाहिशों से ही
तुमसे तुम्हारा सौदा कर जायेगा।
यहां हर कदम पर सोच का लुटेरा खड़ा है
देख कर ख्याल तुम्हारे
ख्वाब लूट जायेगा।
इनसे भी बच गये तो
नहीं बच पाओगे अपने से
जो सुनकर तुम्हारी बात
सभी के सामने असलियत गाकर
जमाने में मजाक बनायेगा।

लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

————————————-

यह आलेख इस ब्लाग ‘राजलेख की हिंदी पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिकालेखक संपादक-दीपक भारतदीप

नायकत्व का आकर्षण-हिन्दी क्षणिका


गड़े मुर्दे उखड़ कर भी
इसलिये ताजा हो जाते हैं।
क्योंकि जिसे मुद्दे पर
चला चर्चा का दौर एक बार
फिर वह कभी मर नहीं पाते हैं।
जो लोग मुद्दे बनाकर
जिंदगी जीते रहे
वही उनको अमर भी बनाते हैं।
——–
नायकत्व का आकर्षण इतना
कि लोग मरों की राख से
अपना चेहरा सजाते।
एक नारा खोजकर
अपनी जुबान से वाद की तरह बजाते।
दिखावे की जिंदगी जीने की आदत
इस कदर हो गयी लोगों में
अपनी ही सच से मुंह स्वयं ही मुंह छिपाते।

—————————-
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
—————————

यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका

कल के बड़े और आज के बच्चे-हिंदी हास्य कवितायें( badi aur bachche-hindi haysa kavita


बेटे ने मां से कहा
‘‘मां, मुझे पैसा दो तो
कार खरीद कर लाऊं
कालिज उससे जाकर अपनी छबि बनाऊं
पापा, नोटों की भरी पेटी रखकर
दौरे पर गये हैं
मुझे अपने दोस्तों में रुतवा दिखाना है
क्योंकि सभी नये हैं
पता नहीं पापा कब आयेंगे
तब तक अपनी इस मोटर साइकिल पर जाऊंगा तो
सभी मेरी हंसी उड़ायेंगे।’

सुनकर मां गद्गद्वाणी में बोली
‘बेटा, तुम्हारे पापा समाज सेवक है
सभी जानते हैं
उनको इसलिये मानते हैं
यह पेटी उन्हीं चंदे के नोटों से भरी है
जो सूखा राहत बांटने के लिये यहां धरी है
माल तो यह सभी अपना है
सूखा पीड़ितों के लिये तो बस एक सपना है
पर तुम्हारे पापा कागज पत्रक पूरे करने के लिये
दौरे पर गये हैं
उनका नया होना जरूरी है
क्योंकि यह नोट भी नये हैं
यह दौरा कर वह राहत बंटवा रहे हैं
सच तो यह है कि
बांट सकें जिनको
उन मरे लोगों के नाम छंटवा रहे हैं
अगर अभी पैसा खर्च कर ले आओगे
अपने पापा पर शक की सुई घुमाओगे
इसलिये आने दो उनको
इस भरी पेटी से तुम्हारी कार का पैसा निकालकर
तुम्हारे हाथों से इसका
और तुम्हारी राहत का उद्घाटन करायेंगे।

…………………………
आज के बच्चे
अपने माता पिता के बाल्यकाल से
अधिक तीक्ष्ण बुद्धि के पाये जाते
यह सच कहा जाता है।
किस नायिका का किससे
चल रहा है प्रेम प्रसंग
अपने जन्मदिन पर नायक की
किस दूसरे नायक से हुई जंग
कौन गायक
किस होटल में मंदिर गया
कौन गीतकार आया नया
कौनसा फिल्मी परिवार
किस मंदिर में करने गया पूजा
कहां जायेगा दूजा
रेडियो और टीवी पर
इतनी बार सुनाया जाता है।
देश का हर बच्चा ज्ञान पा जाता है।

……………………………

यह आलेख इस ब्लाग ‘राजलेख की हिंदी पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिकालेखक संपादक-दीपक भारतदीप

कवि का टीवी साक्षात्कार-हिन्दी हास्य कविता(intervew of hindi poet-hasya kavita)


कवि ने टीवी एंकर से कहा
‘यह मेरे साक्षात्कार का बेकार नाटक रचाया।
तुम सवाल करते हुए
जवाब भी बताकर
उसे दोहराने को मजबूर करती थी,
जब अपनी बात कहता तो
ब्रेक लगाकर दूर कर देती थी,
तुम्हारे सवाल मेरे जवाब से लंबे थे
मैं सवाल समझता तुम
जवाब वैसे ही भर देती थी,
यह कार्यक्रम देखकर लोग तुम्हें ही
याद रखेंगे,
मुझे भूल जायेंगे,
लोग इसे देखकर
मुझ पर हंसने लग जायेंगे
इस कार्यक्रम में तो तुमने
मुझे एक तरह से आइटम कवि बनाया।

यह सुनकर एंकर को गुस्सा आया।
वह बोली
‘काहे के कवि हो
पता है ब्लाग पर तुम्हारी
हास्य कविताऐं फ्लाप हो जाती है
मैंने भी पढ़ी
पर समझ में नहीं आती हैं।
आधी रात को प्रसारित होने वाले
इस कार्यक्रम के लिये
कोई आइटम नहीं मिल रहा था
इसलिये तुमको बड़ा कवि बताया।
यह चैनल कोई तुम्हारा मंच नहीं है
इस पर करोड़ों का खर्च आया।
फिर तुम्हें मालुम नहीं है कि
कमाई से ही होता है सम्मान
मैं अपने कार्यक्रम के लिये
इतना पैसा लेती हूं
तो प्रचार भी मुझे ही मिलेगा
तुम जैसे फोकट के कवि का चेहरा दिखाकर
हमारा नाम कार्यक्रमों की तुलनात्मक दौड़ में गिरेगा
कवि हो इतना भी नहीं जानते
महिलाओं से हिट्स होते हैं कार्यक्रम
तुम जैसे कवियों को लोग फालतू मानते
अब जाकर पी लेना
कैंटीन में काफी
वरना वह भी खत्म हो जायेगी
फिर न कहना पहले नहीं बताया।
तुम्हारे साक्षात्कार से
न तो कोई सनसनी फैलेगी,
न जमेगी हंसी की महफिल,
हमारी पब्लिक इसे कैसे झेलेगी,
पता करूंगी इस चैनल में
कौन उल्लू है
जो तुम्हें यहां ले आया।
………………………………..

यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिकालेखक संपादक-दीपक भारतदीप

समाज सेवा में सदाबहार-हिन्दी हास्य कविता (social service-hindi comedy satire poem)


बरसात की बूंदें जैसे ही
आकाश से जमीन पर आई।
अकाल राहत सहायता समिति के
सदस्यों के चेहरे पर चिंता घिर आई।
पहुंचे सभी अध्यक्ष के पास
और वहां अपनी बैठक जमाई।
एक बोला अध्यक्ष से
‘अध्यक्ष जी यह क्या हुआ?
हमने तो अपने घर के सामान
खरीदने का सोचा था
आखिर अकाल का लोचा था
अब यह क्या हुआ
अकाल का नारा लगाकर कर
हम चिल्ला रहे थे
इधर उधर चंदे के लिये
फोन मिला रहे थे
अब क्या होगा
मौसम विभाग की भविष्यवाणी के बिना
यह बरसात कैसे आई?
अब कैसे होगी कमाई?’

अध्यक्ष ने हंसते हुए कहा
‘क्यों परवाह करते हो
जब तक मैं अध्यक्ष हूं भाई।
अब भला चंदा मांगने
घर घर क्या जाना
अब तो इंटरनेट का है जमाना
मैंने तो तीन महीने पहले ही
जब बरसात न होने का सुना
अपनी संस्था के लिये
इंटरनेट पर चंदा मांगने का प्लान चुना
दरियादिलों ने बहुत सारा माल दिया
भले ही जितना मांगा उससे कम दाना डाल दिया
अपने हिस्से का चेक तुम ले जाओ
अब बाढ़ होने के लिये
सर्वशक्तिमान के दरबार में गुहार लगाओ
अपनी समिति का नाम
अकाल राहत की जगह
बाढ़ पीड़ित सहायता समिति दिखाओ
हम तो सदाबाहर समाजसेवक हैं
अरे, मैंने यह समिति ऐसे ही नहीं बनाई।

……………………………………

यह आलेख/हिंदी शायरी मूल रूप से इस ब्लाग

‘दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका’

पर लिखी गयी है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन के लिये अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की हिंदी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.अनंत शब्दयोग
कवि और संपादक-दीपक भारतदीप

%d bloggers like this: