आज यह ब्लाग/पत्रिका की पाठ पठन/पाठक संख्या एक लाख को पार कर गयी। इस ब्लाग/पत्रिका के साथ इसके लेखक संपादक के दिलचस्प संस्मरण जुड़े हुए हैं। यह ब्लाग जब बनाया तब लेखक का छठा ब्लाग था। उस समय दूसरे ब्लाग/पत्रिकाओं पर यूनिकोड में न रखकर सामान्य देव फोंट में रचनाएं लिख रहा था। वह किसी के समझ में नहीं आते थे। ब्लाग स्पाट के हिंदी ब्लाग से केवल शीर्षक ले रहा था। इससे हिन्दी ब्लाग लेखक उसे सर्च इंजिन में पकड़ रहे थे पर बाकी पाठ उनकी समझ में नहीं आ रहा था। यूनिकोड में रोमन लिपि में लिखना इस लेखक के लिये कठिन था। एक ब्लाग लेखिका ने पूछा कि ‘आप कौनसी भाषा में लिख रहे हैं, पढ़ने में नहीं आ रहा।’ उस समय इस ब्लाग पर छोटी क्षणिकायें रोमन लिपि से यूनिकोड में हिन्दी में लिखा इस पर प्रकाशित की गयीं। कुछ ही मिनटों में किसी अन्य ब्लाग लेखिका ने इस पर अपनी टिप्पणी भी रखी। इसके बावजूद यह लेखक रोमन लिपि में यूनिकोड हिंदी लिखने को तैयार नहीं था। बहरहाल लेखिका को इस ब्लाग का पता दिया गया और उसने बताया कि इसमें लिखा समझ में आ रहा है। उसके बाद वह लेखिका फिर नहीं दिखी पर लेखक ने तब यूनिकोड हिन्दी में लिखना प्रारंभ किया तब धीरे धीरे बड़े पाठ भी लिखे।
उसके बाद तो बहुत अनुभव हुए। यह ब्लाग प्रारंभ से ही पाठकों को प्रिय रहा है। यह ब्लाग तब भी अधिक पाठक जुटा रहा था जब इसे एक जगह हिन्दी के ब्लाग दिखाने वाले फोरमों का समर्थन नहीं मिलता था। आज भी यहां पाठक सर्वाधिक हैं और एक लाख की संख्या इस बात का प्रमाण है कि हिन्दी अपनी गति से अंतर्जाल पर बढ़ रही है। मुख्य बात है विषय सामग्री की। इस ब्लाग पर अध्यात्मिक रचनाओं के साथ व्यंग, कहानी, कवितायें भी हैं। हास्य कवितायें अधिक लोकप्रिय हैं पर अध्यात्मिक रचनाओं की तुलना किसी भी अन्य विधा से नहीं की जा सकती। लोगों की अध्यात्मिक चिंतन की प्यास इतनी है कि उसकी भरपाई कोई एक लेखक नहीं कर सकता। इसके बाद आता है हास्य कविताओं का। यकीनन उनका भाव आदमी को हंसने को मजबूर करता है। हंसी से आदमी का खून बढ़ता है। दरअसल एक खास बात नज़र आती है वह यह कि यहां लोग समाचार पत्र, पत्रिकाओं तथा किताबों जैसी रचनाओं को अधिक पसंद नहीं करते। इसके अलावा क्रिकेट, फिल्म, राजनीति तथा साहित्य के विषय में परंपरागत विषय सामग्री, शैली तथा विधाओं से उन पर प्रभाव नहीं पड़ता। वह अपने से बात करती हुऐ पाठ पढ़ना चाहते हैं। अंतर्जाल पर लिखने वालों को यह बात ध्यान रखना चाहिये कि उनको अपनी रचना प्रक्रिया की नयी शैली और विधायें ढूंढनी होंगी। अगर लोगों को राजनीति, क्रिकेट, फिल्म, आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक विषयों पर परंपरागत ढंग से पढ़ना हो तो उनके लिये अखबार क्या कम है? अखबारों जैसा ही यहां लिखने पर उनकी रुचि कम हो जाती है। हां, यह जरूर है कि अखबार फिर यहां से सामग्री उठाकर छाप देते हैं। कहीं नाम आता है कहीं नहीं। इस लेखक के गांधीजी तथा ओबामा पर लिखे गये दो पाठों का जिस तरह उपयेाग एक समाचार पत्र के स्तंभकार ने किया वह अप्रसन्न करने वाला था। एक बात तय रही कि उस स्तंभकार के पास अपना चिंतन कतई नहीं था। उसने इस लेखक के तीन पाठों से अनेक पैरा लेकर छाप दिये। नाम से परहेज! उससे यह लिखते हुए शर्म आ रही थी कि ‘अमुक ब्लाग लेखक ने यह लिखा है’। सच तो यह है कि इस लेखक ने अनेक समसामयिक घटनाओं पर चिंतन और आलेख लिखे पर उनमें किसी का नाम नहीं दिया। उनको संदर्भ रहित लिखा गया इसलिये कोई समाचार पत्र उनका उपयोग नहीं कर सकता क्योंकि समसामयिक विषयों पर हमारे प्रचार माध्यमों को अपने तयशुदा नायक और खलनायकों पर लिखी सामग्री चाहिये। इसके विपरीत यह लेखक मानता है कि प्रकृत्तियां वही रहती हैं जबकि घटना के नायक और खलनायक बदल जाते हैं। फिर समसामयिक मुद्दों पर क्या लिखना? बीस साल तक उनको बने रहना है इसलिये ऐसे लिखो कि बीस साल बाद भी ताजा लगें-ऐसे में किसी का नाम देकर उसे बदनाम या प्रसिद्ध करने
से अच्छा है कि अपना नाम ही करते रहो।
मुख्य बात यह है कि लोग अपने से बात करते हुऐ पाठ चाहते हैं। उनको फिल्म, राजनीति, क्रिकेट तथा अन्य चमकदार क्षेत्रों के प्रचार माध्यमों द्वारा निर्धारित पात्रों पर लिख कर अंतर्जाल पर प्रभावित नहीं किया जा सकता। अपनी रचनाओं की भाव भंगिमा ऐसी रखना चाहिये जैसी कि वह पाठक से बात कर रही हों। यह जरूरी नहीं है कि पाठक टिप्पणी रखे और रखे तो लेखक उसका उत्तर दे। पाठक को लगना चाहिये कि जैसे कि वह अपने मन बात उस पाठ में पढ़ रहा है या वह पाठ पढ़े तो वह उसके मन में चला जाये। अगर वह परंपरागत लेखन का पाठक होता तो फिर इस अंतर्जाल पर आता ही क्यों? अपने मन की बात ऐसे रखना अच्छा है जैसे कि सभी को वह अपनी लगे।
इस अवसर पर बस इतना ही। हां, जिन पाठकों को इस लेखक के समस्त ब्लाग/पत्रिकाओं का संकलन देखना हो वह हिन्द केसरी पत्रिका को अपने यहां सुरक्षित कर लें। इस पत्रिका के पाठकों के लिये अब इस पर यह प्रयास भी किया जायेगा कि ऐसे पाठ लिखे जायें जो उनसे बात करते हुए लगें।
लेखक संपादक दीपक भारतदीप,ग्वालियर
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दीपक भारतदीप द्धारा
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लिखने वाला हर व्यक्ति साहित्यकार नहीं माना जाता। एक तो क्लर्क होते हैं जो पत्र वगैरह लिखते हैं और उसमें उनके विषय के अनुसार कुछ न कुछ मौलिक होता है। उसी तरह लोग एक दूसरे को पत्र लिखते हैं और वह भी कई बार बेहतर शब्दों का उपयोग करने के बावजूद साहित्यकार नहीं कहलाते। उसी तरह ईमेल और उसके विस्तार ब्लाग पर लिखने वाले सभी लोग साहित्यकार नहीं बन जायेंगे। हां, दूसरा यह भी सच है कि ब्लाग पर लिखने वाले साहित्यकार अवश्य आयेंगे।
आखिर किसी विषय को साहित्य कब कहा जाता है? साहित्य उसी रचना को कहा जाता है जो अनाम व्यक्तियों को दृष्टिगत सार्वभौमिक विषय पर लिखी जाती है और उसमें किसी को संबोधित नहीं किया जाता है। जहां किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह को ध्यान में रखकर लिखा गया भले ही उसमें किसी को संबोधन न हो फिर भी वह साहित्य नहीं है। उसी तरह चाहे भले ही किसी पाठ का विषय सार्वभौमिक हो पर अगर वह किसी व्यक्तिविशेष को संबोधित हो तो भी वह साहित्य नहीं है।
आशय यह है कि मौलिक रूप से किसी व्यक्ति द्वारा लिखा गया आलेख, कहानी, कविता और व्यंग्य अगर सार्वभौमिक लक्ष्य के साथ सभी व्यक्तियों के पढ़ने के लिये लिखा गया है वही साहित्य है।
अंतर्जाल पर ब्लाग कोई अलग से विधा नहीं है। जिस तरह कंप्यूटर कलम, टेबल, अलमारी,कागज,दराज तथा लिखने पढ़ने वाली अन्य वस्तुओं का एक समूह है उसी तरह ब्लाग उसमें एक लिफाफे की तरह है। अब इस लिफाफे का उपयोग कौन कैसे करता है वही उसकी भूमिका और स्वरूप को तय करेगा।
अब इसमें यह भी हो सकता है कि क्लर्क की तरह लिफाफा भेजने वाला कहीं कविता लिखकर प्रकाशित कर देगा तो कहीं अपने रिश्तेदारों और मित्रों को पत्र-ईमेल और उसका विस्तार पटल ब्लाग-के रूप में लिखने वाला भी आगे चलकर समाज से सरोकार लिखने वाले विषयों की तरफ उन्मुख होगा तो वह भी साहित्यकार बन जायेगा।
इधर हिंदी ब्लाग जगत काफी दिलचस्प दौर में पहुंच रहा है। कई ऐसे लेखक और लेखिकायें जो आज से दो वर्ष पहले तक ऐसे लिखते थे जैसे कि उनको कुछ नहीं आता। उस समय यह संभावना नहीं लगती थी कि वह कोई सार्थक लेखन कर पायेंगे पर अपने अभ्यास से वह अब चमत्कृत करने लगे हैं। उनका अभ्यास अब भी जारी है। अब वह गंभीर विषय लिखने का प्रयास कर रहे हैं उसमें शब्दों और वाक्यों को हिंदीमय बनाने में वह जोरदार प्रयास कर रहे हैं। नियमित टिप्पणीकार भी उनके पाठों पर गंभीर रूप से लिखने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसा लगता है कि ब्लाग लेखकों का एक मित्र समूह अब तैयारी कर रहा है वैश्विक काल में प्रवेश कर रही हिंदी को नया स्वरूप देने का। इनमें से अधिकतर इस लेखक के मित्र हैं और अनेक बार अपनी टिप्पणियां कर प्रभावित करते रहे हैं। इनमें से एक ने तो लिखा था कि ‘अंतर्जाल पर हिंदी को स्थापित करने में आपका योगदान याद रखने लायक होगा’।
उसकी इस टिप्पणी से से लेखक डर गया था था। इस लेखक आखिर इस ब्लाग जगत में कितने मित्र हैं? यह लेखक उन पर लिखना चाहता है पर कुछ कहना कठिन है। इसमें संदेह नहीं है कि उनकी मित्रता और स्नेह ने मुझे प्रेरित किया पर उनके नामों को लेकर हमेशा संशय में बना रहता है। अगर शब्दों को चैहरा माना जाये तो ऐसा लगता है कि वह तीन या चार होंगे। हां, यह सच है कि जहां व्यक्ति आपको नहीं दिखता वहां शब्द ही चैहरा हो जाता है। अगर आप अंतर्जाल पर सक्रिय हैं तो शब्दों से चैहरे को देखने का अभ्यास प्रारंभ कर दीजिये।
एक महिला लेखिका आजकल बहुत आक्रामक और दिलचस्प लिखने लगी हैं। उन्होंने लक्ष्य कर रखा है कुछ बड़े ब्लाग लेखकों को! वह पहले कवितायें लिखती थीं। ऐसा लगता था कि जैसे कौने में बैठी कोई मासूम महिला कविता लिखने का अभ्यास कर रही है। उनकी कवितायें पढ़कर हंसी आती थी पर अब उनका लिखा अब पढ़ने में यह लेखक चूकता नहीं है। दरअसल जो सार्वभौमिक विषय पर लिखने वाले लेखक (साहित्यकार!) हैं ब्लाग पर चटखारे लेकर लिखे गये पाठों पर अपनी दृष्टि अवश्य डालते हैं बनिस्बत अन्य सामग्री के। इसलिये ब्लाग पर वाद विवाद कर लिखी गयी सामग्री हिंदी के फोरमों पर अधिक हिट पाती है।
आज इस लेखक ने अपने वर्डप्रेस के पर स्टेटकांउटर लगाया। ऐसा पहले भी लगाया था पर गलत ढंग से तब ऐसा लगता था कि वह सही जानकारी नहीं दे रहा है पर अब ढंग से लगाया तो पता लगा कि रिपोर्ट सही है और वास्तव में वहां हिट अधिक हैं। वर्डप्रेस के ब्लाग की अपेक्षा कर मैं ब्लाग स्पाट के ब्लाग पर लिख रहा था पर मजा नहीं आ रहा। वहां पर हिट के लिये ब्लागवाणी पर निर्भर रहना पड़ता है और फिर लक्ष्य केवल ब्लाग लेखक ही रह जाते हैं। इस लेखक ने ब्लागवाणी से वर्डप्रेस के सारे ब्लाग हटा लिये थे और सोचा कि ब्लाग स्पाट के ब्लाग पर लिखने के बाद यहां पाठ लाया जायेगा पर लगता है अब बदलाव करना पड़ेगा। गूगल की पैज रैंक के अनुसार इस लेखक के तीन ब्लाग हिट हैं और इनमें दो वर्डप्रेस पर हैं। पहले लगता था कि कोई ऐजेंसी हिट कर भ्रमित कर रही है पर आज लगा कि वाकई वह ब्लाग हिट हैं। उस दिन इस लेखक का कंप्यूटर ठीक करने आये एक इंजीनियर ने बताया था कि वह हिंदी पढ़ने के लिये वेब दुनियां पर जाता है। इधर यह भी देखा जा रहा है कि वेबदुनियां से अच्छी संख्या में पाठक आ रहे हैं। इसलिये अपने हिट ब्लाग पर नियमित रूप से लिखने का प्रयास करना ही श्रेयस्कर होगा। वैसे भी यह ब्लाग पाठक संख्या पचास हजार पार करने वाला है और यह इस मामूली लेखक के लिये एक उपलब्धि तो होगी। इस अंतर्जाल पर इस लेखक के बीस लिफाफे यानि ब्लाग हैं। इस हिट ब्लाग पर अब नियमित रूप से लिखने का प्रयास होगा।
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दीपक भारतदीप द्धारा
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