मशहूर होने की ललक सबमें होती है और इसके लिये आदमी अपने स्वार्थ के काम भी इस तरह करते हैं कि जैसे वह परमार्थ का कर रहे हैं। और नहीं तो कई काम ऐसे जिन्होंने किए ही नहीं अपने नाम से बताकर आत्मप्रवंचना करते हैं। दूसरों का कम बिना किसी स्वार्थ के करना या अपनी जिंदगी में ही कुछ ऐसा करना जो दूसरे न करते हों यह कोई नहंी करता। मतलब यह है कि मशहूर होने का आशय यह कतई नहीं है कि जीने का भी शऊर हो।
हमारी मुलाकात एक मशहूर आदमी से हुई दूसरे सज्जन के घर हुई थी। उस दिन वह सज्जन एक आम और खास आदमी के एक साथ मेजबान बने थे। हम बिना बुलाये गये थे और वह मशहूर आदमी विशेष आमंत्रित थे।
हम जब पहुंचे तो मेजबान ने हमें देखते ही मूंह बना लिया-‘‘यार, तुम्हें भी अभी आना था! कल आ जाते। खैर आ ही गये तो रुक जाओ, और मेरी मदद करना। आखिर इतना मशहूर आदमी हमारे घर आ रहा है।’’
हमने कहा-‘ठीक है। अब बताओं हम क्या करें?‘
वह बोले-‘‘आज ड्राइंग रूम में न बैठकर इधर बाहर कुर्सी पर बैठ जाओ।’
हम वहीं बैठ गये। वह मशहूर आदमी आया। पूरा घर उसके स्वागत के लिए बाहर उमड़ पड़ा। हम अपनी कुर्सी से उठकर वहीं डटे रहे। सम्मान के लिये आगे नहीं गये क्योंकि मेजबान ने हमसे ऐसा कोई आग्रह नहीं किया था। उन मशहूर आदमी को अंदर ले जाया गया। पूरे घर में हलचल मची थी। कोई शरबत बना रहा था तो कोई पानी ला रहा था। उन पर मनमोहक शब्द वर्षा हो रही थी।
हम दृष्टा बन कर डट गये। देखें आखिर क्या होता है? इतने में वह मेजबान सज्जन आये और बोले-‘‘आओ, जरा तुम बैठकर उनसे बात करो। मै थोड़ा अपने आपको अकेला महसूस कर रहा हूं।’’
हम समझ गये कि वह भले ही स्वयं भी प्रसिद्ध है पर बोलने को शऊर उनमे भी नहीं है। बहरहाल हम ड्राइंग रूम में जाकर उस मशहूर आदमी के सामने बैठ गये। वह मेजबान हमारा परिचय कराते हुए बोले-‘यह हमारे मित्र हैं। अच्छे लेखक हैं।’’
उन मशहूर सज्जन ने खीसें निपोरते हुए पूछा-‘क्या लिखते हो?’
हमने कहा-‘अधिक कुछ नहीं बस कभी कभार व्यंग्य लिखते है। अधिक मशहूर नहीं है।’
वह हंसकर बोले-‘चिंता मत करो। कभी हो जाओगे। हां, हम पर व्यंग्य लिखने का दुस्साहस नहीं करना।’
हमने हंसते हुए कहा-‘‘आप तो बहुत गंभीर आदमी हैं। चिंतक और विचारशील हैं। आप पर तो कभी अच्छा आलेख लिखना चाहिए पर हमें लिखना नहीं आता।’
वह एकदम गंभीर होकर बोले-‘वह भी आ जायेगा। कभी हमसे मिलना तो फिर तुम्हें मिलकर अपने बारे में बतायेंगे फिर हम पर लिखना।’’
हमने देखा कि मेजबान उन मशहूर आदमी के स्वागत के लिए परिवार के महिलाएं और बच्चे इधर-उधर भागमभाग कर रहे थे और हमें इसीलिये वहंा बिठा गये थे कि हम उनको बातचीत में व्यस्त रख सकें।
इतनी सी बात के बाद दोनों तरफ खामोशी छा गयी। हमने सोचा-‘कौन अपने को इनसे कोई जुगाड़ लगानी है जो अधिक चाटुकारिता करें।’
जब मेजबान अंदर आये तो खामोशी देखकर उनसे बोले-‘हां साहब, आप आये तो हमारा घर पवित्र हो गया।’
हमने देखा कि मशहूर आदमी का उस पर कोई प्रभाव नहंी हुआ वह बोले-‘सुनो यह अधिक तामझाम कर हमें बहलाओ नहीं। साफ-साफ बताओं हमारे पैसे कब लौटा रहे हो। यह तो तुमने हमें बुलाया पर हम तो खुद भी आते। आखिर पैसे का मामला है इसमें कोई समझौता नहीं हो सकता।’
मेजबान का मूंह उतर गया और बोले-‘‘अभी तो यह मकान बनाया है। मैने पहले ही बता दिया था कि कम से कम दो वर्ष लगेंगे। फिर उन लोगों ने जितना ब्याज बताया था उसक दूना ले रहे हैं। मेरी तो आपसे सीधे बातचीत हुई थी पर अब वह आपके लोग मुझे तंग कर रहे हैं।’’
मशहूर सज्जन रुखे स्वर में बोले-‘ तुम्हें पता है कि हम अपना काम स्वयं तो देखते नहीं। उन्हीं लोगों पर निर्भर है तो हम तो उनकी बात ही मानेंगे। हां यह मुझे अब ध्यान आया कि तुमने दो साल कहे थे। अभी कितना समय हुआ है?’
‘उसने कहा अभी तो 11 महीने हुए हैं।’’ मेजबान सज्जन ने कहा।
अब मशहूर आदमी ठंडे हुए और बोले-‘‘हो सकता है उन लोगों से कोई कागज पत्र पढ़ने में गलती हुई हो, पर तुमने छह महीने का ब्याज नहीं दिया है वह तो तय हुआ था कि हर महीने दोगे।’’
मेजबान सज्जन ने कहा-‘‘आपके लोग मान कहां रहे हैं। वह तो ब्याज अधिक लगा रहे हैं। जितना आपसे तय हुआ था उससे दूना लगा रहे हैं।’’
मशहूर आदमी ने कहा-‘‘ठीक है जितनी मेरे से बात हुई थी उतना दे दो फिर मैं उनको समझा दूंगा। नहीं तो वह फिर तुम पर गुस्सा कर बैठेंगे।’’
मेजबान अंदर गये और नोटों की गड्डी ले आये और उनको थमा दी। उसके बाद वह चले गये तो मेजबान ने चैन की सांस ली। फिर हमसे बोले-‘यार, अच्छा ही हुआ तुम थे। वरना जाने क्या-क्या सुनाता?’’
हमने कहा-‘पर यह मशहूर आदमी तो नैतिकता और परोपकार की बातें करता है। अगर मैं गलती पर नहीं हूं तो यह आदमी सूदखोरी का विरोध भी करता है।’’
मेजबान ने कहा-‘‘यार, जो जिस बात के लिये मशहूर हो समझो उस काम का उसे शऊर भी हो यह जरूरी नहीं है। इनका सच वही है जो तुमने देखा पर किसी से कहोगे भी तो कौन मानेगा?’’
हम भी उठकर चलने को हुए और कहा-‘‘अभी नहीं तो कभी इस पर लिखेंगे तो सही।’
उसने कहा-‘क्या लिखोगे?’
हमने कहा-‘‘मशहूर होने से शऊर नही आ जाता।’’
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