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पहाड़ से टूटे पत्थर-हिन्दी व्यंग्य कविता


पहाड़ से टूटा पत्थर
दो टुकड़े हो गया,
एक सजा मंदिर में भगवान बनकर
दूसरा इमारत में लगकर
गुमनामी में खो गया।
बात किस्मत की करें या हालातों की
इंसानों का अपना नजरिया ही
उनका अखिरी सच हो गया।
जिस अन्न से बुझती पेट की
उसकी कद्र कौन करता है
रोटियां मिलने के बाद,
गले की प्यास बुझने पर
कौन करता पानी को याद,
जिसके मुकुट पहनने से
कट जाती है गरदन
उसी सोने के पीछे इंसान
पागलों सा दीवाना हो गया।
अपने ख्यालों की दुनियां में
चलते चलते हर शख्स
भीड़ में यूं ही अकेला हो गया।
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक “भारतदीप”,ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak “BharatDeep”,Gwalior

http://rajlekh-patrika.blogspot.com

रौशनी और अंधेरे की जंग-लघुकथा (roshni aur andher ke jang-hindi laghu katha)


वैसे तो उन सज्जन की कोई इतनी अधिक उम्र नहीं थी कि दृष्टिदोष अधिक हो अलबत्ता चश्मा जरूर लगा हुआ था। एक रात को वह स्कूटर से एक ऐसी सड़क से निकले जहां से भारी वाहनों का आवागमन अधिक होता था। वह एक जगह से निकले तो उनको लगा कि कोई लड़की सड़क के उस पार जाना चाहती है। इसलिये उन्होंने अपने स्कूटर की गति धीमी कर ली थी। जब पास से निकले तो देखा कि एक श्वान टांग उठाकर अपनी गर्दन साफ कर रहा था। उन्हें अफसोस हुआ कि यह क्या सोचा? दरअसल सामने से एक के बाद एक आ रही गाड़ियों की हैडलाईट्स इतनी तेज रौशन फैंक रही थी कि उनके लिये दायें बायें अंधेरे में हो रही गतिविधि को सही तरह से देखना कठिन हो रहा था।
थोड़ी दूर चले होंगे तो उनको लगा कि कोई श्वान वैसी ही गतिविधि में संलग्न है पर पास से निकले तो देखा कि एक लड़की सड़क पार करने के लिये तत्पर है। अंधेरे उजाले के इस द्वंद्व ने उनको विचलित कर दिया।
अगले दिन वह नज़र का चश्मा लेकर बनाने वाले के पास पहुंचे और उसे अपनी समस्या बताई। चश्में वाले ने कहा‘ मैं आपके चश्में का नंबर चेक कर दूसरा बना देता हूं पर यह गारंटी नहीं दे सकता कि दोबारा ऐसा नहीं होगा क्योंकि कुछ छोटी और बड़ी गाड़ियों की हैड्लाईटस इतनी तेज होती है जिन अंधेरे वाली सड़कों से गुजरते हुए दायें बायें ही क्या सामने आ रहा गड्ढा भी नहीं दिखता।’
वह सज्जन संतुष्ट नहीं हुए। दूसरे चश्मे वाले के पास गये तो उसने भी यही जवाब दिया। तब उन्होंने अपने मित्र से इसका उपाय पूछा। मित्र ने भी इंकार किया। वह डाक्टर के पास गये तो उसने भी कहा कि इस तरह का दृष्टिदोष केवल तात्कालिक होता है उसका कोई उपाय नहीं है।
अंततः वह अपने गुरु की शरण में गये तो उन्होंने कहा कि ‘इसका तो वाकई कोई उपाय नहीं है। वैसे अच्छा यही है कि उस मार्ग पर जाओ ही नहीं जहां रौशनी चकाचौध वाली हो। जाना जरूरी हो तो दिन में ही जाओ रात में नहीं। दूसरा यह कि कोई दृश्य देखकर कोई राय तत्काल कायम न करो जब तक उसका प्रमाणीकरण पास जाकर न हो जाये।
उन सज्जन ने कहा‘-ठीक है उस चकाचौंध रौशनी वाले मार्ग पर रात को नहीं जाऊंगा क्योंकि कोई राय तत्काल कायम न करने की शक्ति तो मुझमें नहीं है। वह तो मन है कि भटकने से बाज नहीं आता।’
गुरुजी उसका उत्तर सुनकर हंसते हुए बोले-‘वैसे यह भी संभव नहीं लगता कि तुम चका च ौंधी रौशनी वाले मार्ग पर रात को नहीं जाओ। वह नहीं तो दूसरा मार्ग रात के जाने के लिये पकड़ोगे। वहां भी ऐसा ही होगा। सामने रौशनी दायें बायें अंधेरा। न भी हो तो ऐसी रौशनी अच्छे खासे को अंधा बना देती है। दिन में भला खाक कहीं रौशनी होती है जो वहां जाओगे। रौशनी देखने की चाहत किसमें नहीं है। अरे, अगर इस रौशनी और अंधेरे के द्वंद्व लोग समझ लेते तो रौशने के सौदागर भूखे मर गये होते? सभी लोग उसी रौशनी की तरफ भाग रहे हैं। जमाना अंधा हो गया है। किसी को अपने दायें बायें नहीं दिखता। अरे, अगर तुमने तय कर लिया कि चकाचौंध वाले मार्ग पर नहीं जाऊंगा तो फिर जीवन की किसी सड़क पर दृष्टिभ्रम नहीं होगा।सवाल तो इस बात का है कि अपने निश्चय पर अमल कर पाओगे कि नहीं।’’
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com

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स्वर्ग पाने के लिए संघर्ष-हिंदी लघुकथा


वहां सीधा शिखर था जिस पर आदमी सीधे स्वर्ग में पहुंच सकता था। शर्त यही थी कि उस शिखर पर बने उसी मार्ग से पैदल जाये तभी स्वर्ग का दरवाजा दिखाई देगा। ऐसा कहा जाता था कि उसी मार्ग से -जहां तक पहुंचना आसान नहीं था- जाने पर ही स्वर्ग का दरवाजा दिखाई देता है। उस शिखर पर कोई नहीं चढ़ सकता था। आसपास गांव वालों ने कभी कोशिश भी नहीं की क्योंकि उस शिखर पर चढने के लिये केवल जो इकलौता चढ़ाई मार्ग था उस तक पहुंचने के लिये बहुत बड़ी सीढ़ी चाहिये थी जो उनके लिये बनाना मुमकिन नहीं था। उसके बाद ही उसकी चढ़ाई आसान थी। उन ग्रामीणों ने अनेक लोगों को उनकी लायी सीढ़ी से ऊपर इस आशा में पहुंचाया था कि उसके बाद वह स्वयं भी चढ़ जायेंगे पर सभी लोग ऊपर पहुंचते ही सीढ़ी खींच लेते थे और ग्रामीण निराश हो जाते थे।
एक दिन एक बहुत धनीमानी आदमी सीधे स्वर्ग जाने के लिये वहां आया। उसके पास बहुत बड़ी सीढ़ी थी। इतनी लंबी सीढ़ी टुकड़ों में बनवायी और फिर वहां तक लाने के जाने के लिये उसने बहुत सारे वाहन भी मंगवाये। वहां पहुंचकर उसने उस सीढ़ी के सारे टुकड़े जुड़वाये। । वहां लाकर उसने गांव वालों से कहा-‘तुम लोग इसी सीढ़ी को पकड़े रहो। मैं तुम्हें पैसे दूंगा।’
गांव वालों ने कहा कि -‘पहले भी कुछ लोग आये और यहां से स्वर्ग की तरफ गये पर लौटकर मूंह नहीं दिखाया। इसलिये पैसे अग्रिम में प्रदान करो।’
उसने कहा कि‘पहले पैसे देने पर तुमने कहीं ऊपर चढ़ने से पहले ही गिरा दिया तो मैं तो मर जाऊंगा। इसलिये ऊपर पहुंचते ही पैसे नीचे गिरा दूंगा।’
तब एक वृद्ध ग्रामीण ने उससे कहा-‘मैं तुम्हारे साथ सीढ़ी चढ़ूंगा। जब तुम वहां उतर जाओगे तो पैसे मुझे दे देना मैं नीचे आ जाऊंगा।’
उस धनीमानी आदमी ने कहा-‘पर अगर तुम वहां उतर गये तो फिर नीचे नहीं आओगे। वैसे ही तुम मेरी तरह बूढ़े हो और स्वर्ग पाने का लालच तुम्हारी आंख में साफ दिखाई देता है। कहीं तुम उतर गये तो मुझे स्वर्ग जाने का दरवाजा नहीं मिलेगा। मैंने पढ़ा है कि आदमी को अकेले आने पर ही वहां पर स्वर्ग का दरवाजा मिलता है।
दूसरे ग्रामीण ने कहा-‘नहीं, यह हमारा सबसे ईमानदार है और इसलिये वैसे भी इसको स्वर्ग मिलने की संभावना है क्योंकि उस स्वर्ग के लिये कुछ दान पुण्य करना जरूरी है और वह कभी इसने नहीं किया। आप तो हमें दान दे रहे हो और इसलिये स्वर्ग का द्वारा आपको ही दिखाई देगा इसको नहीं। इसलिये यह पैसे लेकर वापस आ जायेगा।’
उस धनीमानी आदमी ने कुछ सोचा और फिर वह राजी हो गया।
जब वह वृद्ध ग्रामीण उस धनीमानी आदमी के पीछे सीढ़ी पर चढ़ रहा था तब दूसरा ग्रामीण जो सिद्धांतवादी था और उसने सीढ़ी पकड़ने से इंकार कर दिया था, वह उस वृद्ध ग्रामीण से बोला-‘शिखर यह हो या कोई दूसरा, उस पर केवल ढोंगी पहुंचते हैं। तुम इस आदमी को पक्का पाखंडी समझो। कहीं यह तुम्हें ऊपर से नीचे फैंक न दे। वैसे भी जो लोग यहां से गये हैं वह अपनी सीढ़ी भी खींच लेते हैं ताकि कोई दूसरा न चढ़ सके। यही काम यह आदमी भी करेगा।’
एक अन्य ग्रामीण ने कहा-‘यह आदमी भला लग रहा है, फिर बूढ़ा भी है। इसलिये सीढ़ी नहीं खींच पायेगा। फिर जब पैसे नीचे आ जायेंगे तब हम भी जाकर देखेंगे कि स्वर्ग कैसा होता है।’
वृद्ध ग्रामीण और वह धनीमानी आदमी सीढ़ी पर चलते रहे। जब वह धनीमानी आदमी ऊपर पहुंचा तो उसने तत्काल उस सीढ़ी को हिलाना शुरु किया तो वह वृद्ध ग्रामीण चिल्लाया‘यह क्या क्या रहे हो? मैं गिर जाऊंगा।’
वह धनीमानी आदमी बोला-‘तुम अगर बच गये तो यहां आने का प्रयास करोगे। यह सीढ़ी मुझे ऊपर खींचनी है ताकि कोई दूसरा न चढ़ सके। यह भी मैं किताब में पढ़कर आया हूं। तुम पैसे लेने के लिये ऊपर आओगे पर फिर तुम्हें नीचे फैंकना कठिन है। इसलिये भाई माफ करना अपने स्वर्ग के लिये तुम्हें नीचे पटकना जरूरी है बाकी सर्वशक्तिमान की मर्जी। वह बचाये या नहीं।’
बूढ़ा चिल्लाता रहा पर धनीमानी सीढ़ी को जोर से हिलाता रहा। जिससे वह नीचे गिरने लगा तो सीढ़िया पकड़े ग्रामीणों ने उसे बचाने के लिये वह सीढ़ी छोड़ दी और धनीमानी ने उसे खींच लिया। वह ग्रामीण नीचे आकर गिरा। गनीमत थी कि रेत पर गिरा इसलिये अधिक चोट नहीं आयी।’
वह चिल्ला रहा था‘सर्वशक्तिमान उसे स्वर्ग का रास्ता मत दिखाना। वह ढोंगी है।’
दूसरे समझदार वृद्ध ग्रामीण ने कहा-‘तुम लोग भी निरे मूर्ख हो। आज तक तुम्हें यह समझ में नहीं आयी कि जितने भी स्वर्ग चाहने वाले यहां आये कभी उन्होंने अपनी सीढ़ी यहां छोड़ी या हमें पैसे दिये? दरअसल ऊपर कुछ नहीं है। मेरे परदादा एक बार वहां से घूम आये थे। वह एक धनीमानी आदमी को लेकर वहां गये जो चलते चलते मर गया। मेरे परदादा ने यह बात लिख छोड़ी है कि उस शिखर पर स्वर्ग का कोई दरवाजा वहां नहीं है जहां यह रास्ता जाता है। बल्कि उसे ढूंढते हुए भूखे प्यासे लोग चलते चलते ही मर जाते हैं और हम यहां भ्रम पालते हैं कि वह स्वर्ग पहुंच गये। कुछ तो इसलिये भी वापस लौटने का साहस नहीं करते क्योंकि उनको लगता है कि हमारा पैसा नहीं दिया और हम उनको मार न डालें।’

चोट खाने और पैसा न मिल पाने के बावजूद वह वृद्ध ग्रामीण उस समझदार से कहने लगा-‘तुम कुछ नहीं जानते। ऊपर स्वर्ग का दरवाजा है। आखिर लोग यहां आते हैं। जब ऊपर पहुंचकर लौटते ही नहीं है तो इसका मतलब है कि स्वर्ग ऊपर है।’
एक अन्य ग्रामीण बोला-‘ठीक है। इंतजार करते हैं कि शायद कोई भला आदमी यहां आये और हमें सीढ़ी नसीब हो।’
समझदार ग्रामीण ने कहा-‘भले आदमी को तो स्वर्ग बिन मांगे ही मिल जाता है इसलिये जो यहां स्वर्ग पाने आता है उसे ढोंगी ही समझा करो।’
मगर ग्रामीण नहीं माने और किसी भले आदमी की बाट जोहने लगे।
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ऊपरी आय से रिश्ता-हास्य व्यंग्य


संभावित दूल्हे के माता पिता के साथ लड़की के माता पिता वार्तालाप कर रहे थे। वहां मध्यस्थ भी मौजूद था और उसने लड़की के पिता से कहा
‘आपने घर और वर देख लिया। आपकी लड़की भी इनको पसंद है पर आज यह बताईये दहेज में कुल कितना देंगे?’
लड़की के पिता ने कहा-‘पांच लाख।’
मध्यस्थ ने लड़के के पिता की तरफ देखा। उसने ना में सिर हिलाया।
लड़की के पिता ने कहा-‘छह लाख।‘
लड़के पिता ने फिर ना में सिर हिलाया।
लड़की के पिता ने कहा-‘सात लाख’
वैसा ही जवाब आया। बात दस लाख तक पहुंच गयी पर मामला नहीं सुलझा। अचानक मध्यस्थ को कुछ सूझा उसने लड़की के पिता को बाहर बुलाया।
अकेले में उसने कहा-‘क्या बात है? आपने लड़के के पिता से अकेले में बात नहीं की थी। मैंने आपको बताया था कि नौ लाख तक मामला निपट जायेगा। एक लाख अलग से लड़के के पिता को देने की बात कहना।’
लड़की के पिता ने कहा-‘यह भला कोई बात हुई। लड़के के पिता से अलग क्या बात करना?’
मध्यस्थ ने कहा-‘आदत! लड़के के पिता ने कई जगह नौकरी की है। सभी जगह से उसे अपनी इसी आदत के कारण हटना पड़ा। अरे, वह किसी भी काम के अलग से पैसे लेने का आदी है। जहां उसका काम चुपचाप चलता है कुछ नहीं होता। जब कहीं पकड़ा जाता है तो निकाल दिया जाता है। उस्ताद आदमी है। एक जगह से छोड़ता है दूसरी जगह उससे भी बड़ी नौकरी पा जाता है।’

लड़की के बाप ने कहा-‘ठीक है। उसे बाहर बुला लो।’

मध्यस्थ ने उसे बाहर बुलाया और उससे कहा-‘आप चिंता क्यों करते हैं? आपको यह अलग से एक लाख दे देंगे और किसी को बतायेंगे भी नहीं।’

लड़के के पिता ने कहा-‘हां, यह बात हुई न! मैंने तो पहले ही नौ लाख की मांग की थी। अगर यह पहले से ही तय हो जाता तो फिर इनको एक लाख की चपत नहीं लगती!
लड़की के बाप ने आश्चर्य से पूछा-‘कैसे?’
लड़के के पिता ने कहा-‘अरे, भई आपने मेरी पत्नी के सामने दस लाख दहेज की बात कर ली तो वह कम पर थोड़े ही मानेगी। अगर आप पहले ही अलग से मामला तय कर लेते तो मैं नौ लाख पर अपनी मोहर लगा देता। मैंने आज तक अपने काम में कभी बेईमानी नहीं की। जिससे पैसा लिया है उसका काम किया है।’
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लड़का घोड़े से उतर नहीं रहा था। घोड़ी से उतरने के लिये उसे पंद्रह सौ रुपये देने की बत कही गयी। उसने ना कहा। उससे सोलह सौ रुपये फिर सत्रह सो रुपये। तीन हजार तक प्रस्ताव नहीं दिया गया पर बात नहीं बनी।

आखिर दूल्हे का दोस्त दुल्हन के पिता को अलग ले गया और बोला-‘आप भी कमाल करते हो। आपको मालुम नहीं कि लड़का ऊपरी कमाई का आदी है। आप जो घोड़ी से उतरने के पैसे देंगे वह तो अपनी मां को देगा। आप सौ पचास चाय पानी का पहले उसके जेब में डाल दीजिये। मैं उसको बता दूंगा तो वह उतर आयेगा।

दुल्हन के पिता ने पूछा-‘यह भी भला कोई बात हुई?’

दूल्हे के दोस्त ने कहा-‘आप भी कमाल करते हो। जब रिश्ता तय हो रहा था तो आपने पूछा था कि नहीं कि लड़के को उपरी कमाई है कि नहीं। कहीं हमारी लड़की की जिंदगी तन्ख्वाह में तो नहीं बंधी रह जायेगी।’

दुल्हन के पिता को बात समझ में आ गयी। उन्होंने सौ रुपये दूल्हे की जेब में डाल दिये और जब उसके दोस्त ने बताया तो वह नीचे उतर आया।
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संभावित दूल्हा दुल्हन के परिवार वालों के बीच मध्यस्थ की उपस्थिति में बातचीत चल रही थी। दूल्हे की मां ने बताया कि ‘लड़का एक कंपनी में बड़े पद पर है उसका वेतन तीस हजार रुपये मासिक है। आगे वेतन और बढ़ने की संभावना है।’
लड़की की मां ने कहा-‘तीस हजार से आजकल भला कहां परिवार चलता है? हमने अपनी लड़की को बहुत नाजों से पाला है। नहीं! हमें यह रिश्ता मंजूर नहीं है।’
लड़के के माता पिता का चेहरा फक हो गया। मध्यस्थ लड़के के माता पिता को बाहर ले गया और बोला-आपने अपने लड़के की पूरी तन्ख्वाह क्यों बतायी।’
लड़के के पिता ने कहा-‘ भई, पूरी तन्ख्वाह सही बतायी है। चाहें तो पता कर लें।
मध्यस्थ ने कहा-‘‘मेरा यह मतलब नहीं है। आपको कहना चाहिये कि पंद्रह हजार तनख्वाह है और बाकी पंद्रह हजार ऊपर से कमा लेता है।’

लड़के की मां कहा-‘पर हम तो सच बता रहे हैं। उसकी तन्ख्वाह तीस हजार ही है।’
मध्यस्थ ने कहा-‘आप समझी नहीं। ईमानदारी की तन्ख्वाह आदमी सोच समझकर कर धर चलाता है जबकि ऊपरी कमाई से दिल खोलकर खर्च करता है। आपने अपने लड़के की पूरी आय तन्ख्वाह के रूप में बतायी तो लड़की वाले सोच रहे हैं कि ऊपर की कमाई नहीं है तो हमारी लड़की को क्या ऐश करायेगा? केवन तन्ख्वाह वाला लड़का है तो वह सोच समझकर कंजूसी से खर्चा करेगा न!’

लड़के के माता पिता अंदर आये। सोफे पर बैठते हुए लड़के की मां ने कहा-‘बहिन जी माफ करना। मैंने अपने लड़के की तन्ख्वाह अधिक बताई थी। दरअसल उसकी तन्ख्वाह तो प्रद्रह हजार है और बाकी पंद्रह हजार ऊपर से कमा लेता है। मैंने सोचा जब आप रिश्ता नहीं मान रहे तो सच बताती चलूं।’

लड़की की मां एकदम उठकर खड़ी हो गयी-‘नहीं बहिन जी! आप कैसी बात करती है? आपने ऊपरी कमाई की बात पहले बतायी होती तो भला हम कैसे इस रिश्ते के लिये मना कर देते? आप बैठिये यह रिश्ता हमें मंजूर है।’
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कार और साईकिल की टक्कर-लघु कहानी laghu katha


वह साइकिल पर अपने एक तरफ गैस का छोटा सिलेंडर बाँध कर जा रहा था. उसके आगे भी हैंडल पर जो समान टंगा था उससे साफ लग रहा था की वह कोई गैस आदि को साफ करने और उनकी मरम्मत करने का काम करता होगा. एक जगह ट्रैफिक जाम था और संभाल कर चलते रहने के बाद भी उसके सिलेंडर का हिस्सा जाम में फंसी कार से टकरा गया. उसे पछतावा हुआ पर यह उसके चेहरे पर आयी शिकन से लग रहा था.

कार के अन्दर से चूड़ीदार पायजामा और सफ़ेद कुरता पहने एक आदमी निकला उसने अपनी कार देखी और उसपर लगे खरोंच के निशान दिखे तो उसे गुस्सा आगया. और उसने साइकिल वाले को पास बुलाया, उसके पास आते ही उसने उसकी गाल पर जोर से थप्पड़ जड़ दिया. उस गरीब की आंखों में पानी भर आया, और अपने गाल पर हाथ रखता हुआ वहाँ से चला गया.

एक सज्जन जो इस घटनाक्रम को देख रहे थे उस साइकिल वाले के पास गए और बोले-‘चलो, पुलिस में रिपोर्ट लिखाओ. उसको अदालत में घसीट कर दिखाएँगे कि किस तरह थप्पड़ मारा जाता है.’

उस साइकिल वाले ने लगभग रोते हुए कहा-.बाबूजी, जाने दीजिये. हम गरीबों की इज्जत क्या है? यह लोग तो ऐसे ही हैं. इन जैसे लोगों के बाप अंधे होकर अंधी कमाई कर रहे हैं और इनसे में गरीब कहाँ तक मुकाबला करूंगा?”

वह चला गया और वह सज्जन उसे जाते देखते रहे . एक दूसरा साइकिल वाला सज्जन भी उनके पास आया और बोला-‘वह सही कह रहा था. इनका कोई क्या कर सकता है.

उन सज्जन ने कहा-‘भाई, हकीकत तो यह है कि इस तरह तो गरीब का सड़क पर चलना मुशिकल हो जायेगा. अगर यह कार वाला मारकर उसे उडा जाता तो कुछ नहीं और उसकी साइकिल से थोडी खरोंच लग गई तो उसने उसे थप्पड़ मारा. इस तरह तो गरीब जब तक लड़ेगा नहीं तो जिंदा नही रह पाएगा.’

वह कार वाला दूर खडा था. दूसरा साइकिल वाला बोला-‘साहब वह गरीब आदमी कहाँ भटकता? आप मदद करते तो आपको भी परेशानी होती. हम तो गरीब लोग हैं, मैं साइकिल पर फल बेचता हूँ पर दिन भर अपमान को झेलता रहता हूँ. हम लोगों को आदत है, यह सब देखने की.’

उन सज्जन ने आसमान की तरफ देखा और गर्दन हिलाते हुए लंबी साँसे लेते हुए कहा -‘लोग समझते नहीं है को जो गरीब काम कर रहे हैं, वह अमीरों पर अहसान करते हैं क्योंकि वह कोई अपराध नहीं करते. शायद यही कारण है कि आजकल कोई छोटा काम करने की बजाय अपराध करना पसंद करते हैं. जो इस हालत में भी छोटा काम कर रहे हैं उन्हें तो सलाम करना चाहिऐ न कि इस तरह अपमानित करना चाहिए. जब तक अमीर लोग गरीब का सम्मान नहीं करेंगे तब तक इस देश में अपराध कम नहीं हो सकता.

वह सज्जन वहाँ से निराशा और हताशा में अपनी गर्दन हिलाते हुए चले गए, पीछे से दूसरा साइकिल वाला उनको जाते हुए पीछे से खडे होकर देखता रहा.

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