अपने दोष लोगों को दिखते नहीं
दूसरों के गिरेबां में लोग झांकते हैं,
गैरों धवल कपड़ों पर दाग लगते देखने की चाहत है
अपनी कमीज पर सोने के बटन टांकते हैं।
कहें दीपक बापू हर जगह तमाम विषयों होती बहस
निष्कर्ष कहीं से मिलता नहीं है,
हर कोई जमा है अपनी बात पर
तयशुदा इरादे से हिलता नहीं है,
कान बंद कर लिये अक्लमंदों ने
मौका मिलते ही जुबां से अपनी अपनी फांकते है।
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जिंदगी का हिसाब जब लगाते हैं तब होता है अहसास
कुछ सपने साकार खुद-ब-खुद साकार होते गये,
कुछ रिश्ते समय ने बदले कुछ मतलब निकलते ही खोते गये।
कहें दीपक बापू पेटी में खजाना भरने की कोशिश
कभी हमने की नहीं,
इधर से आई माया उधर बह गयी कहीं,
जब भी किया हिसाब दिमाग हमारा गड़बड़ाया,
देना कभी भूले नहीं लेना याद नहीं आया,
रोकड़ बही लिखने का बोझ हम बेकार ढोते रहे।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja “Bharatdeep”,Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak “Bharatdeep”,Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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