टुकड़ों टुकड़ों में बंटा है समाज,हर इंसान अपनं मतलब के लिये बन जाता बाज़,
छिपा रहा है हर कोई अपने बुरे कारनामो के राज,
फिर भी मानते हैं सभी
कोई फरिश्ता आसमान से उतरकर आयेगा,
जहान में एकता कायम कर पायेगा।
कहें दीपक बापू मन का वहम है
या खुद को ही धोखा खा देना
यह सोचना कि सर्वशक्तिमान
इंसानों में किसी को अपने जैसा बनायेगा।
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सड़क और उद्यान साफ रहे सभी चाहते हैं,
गंदगी कोई न फैलाये इसके लिये कोई तैयार नहीं है,
गुलाब के फूलों के सभी प्रशंसक हैं,
मगर कांटो जैसा उनका कोई यार नहीं है।
कहें दीपक बापू हम नहीं कर सकते
किसी से सफाई का वादा,
कहीं गंदगी फैलाने का भी नहीं रहता इरादा,
अपनी नाव के खेवनहार खुद ही बने लोग
किसी के सहारे जिंदगी में कोई होता पार नहीं है।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा “भारतदीप”
ग्वालियर, मध्यप्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak ‘Bharatdeep’,Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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