अन्ना हजारे के साथ जुड़े संगठनो के कर्णधारों ने उनके चेहरे का खूब उपयोग किया पर यह साफ दिखाई दिया कि कहीं न कहीं उनके लक्ष्य अस्पष्ट थे। साफ बात यह है कि अन्ना और उनकी टीम आज भी दो अलग भाग दिखाई देते हैं। अन्ना अकेले हैं पर उनके साथ जुड़े अन्य लोग अपने संगठन उनके पीछे लाकर स्वयं के चेहरे चमकाने के अलावा कुछ नहीं कर पाये। जब यह अंादोलन अपने स्वर्णिम दौर में था तब लोगों की भावनायें उच्च स्तर पर उसके साथ जुड़ी थीं। उन भावनाओं से विभोर होकर आंदोलन के कर्णधार अनेक तरह के ऐसे बयान देने लगे थे जिससे आंदोलन के लक्ष्य तथा विचार अस्पष्ट दिखाई देने लगे थे। उनके शब्दों में उत्साह अधिक पर गंभीर तथा स्पटतः विचारों का अभाव दिखाई देने लगा था। उनकी कोई स्पष्ट योजना नही थी न ही भविष्य के स्परूप की कोई कल्पना थी। खाली बयानबाजी तथा अस्पष्ट वादों के बीच यह आंदोलन लंबे समय तक लोकप्रिय नहीं बना रह सका।
अब सब थम चुका है। हमारा मानना है कि अन्ना अब शायद ही स्वयं अनशन पर बैठें क्योंकि वह हवा का रुख देखकर अपनी चाल चलने वाली ऐसी शख्सियत हैं जो अपने इसी गुण की वजह से लोकप्रिय हैं। प्रचार माध्यम अन्ना हजारे के आंदोलन को फ्लाप शो कर रहे हैं तो यह बात मानना ही पड़ती है। यकीनन अन्ना यह सब भांपने में माहिर हैं और वह अपने कदम उस तरह आगे न बढ़ायें जैसे कि उनकी टीम अपेक्षा कर रही है। इतना अनुमान तो प्रचार प्रबंधको ने लगा ही लिया होगा कि इस बार यह आंदोलन अब उनके लिये विज्ञापन प्रसारित करने का इतना समय नहीं दिला सकता। अगर हम वर्तमान समय में लोकप्रियता का आधार तय करें तो वह केवल यही है कि किसी शख्सियत की लोकप्रियता उतनी ही होती है जितनी वह प्रचार माध्यमों को विज्ञापन के बीच प्रसारित खाली समय में अपनी जगह बना सके। अन्ना समाचारों में तो हैं पर विज्ञापनों के लिये समय जुटाने का सामर्थ्य उनके आंदोलन में अब उतना नहीं है। यही कारण है कि प्रचार माध्यम अब शायद इस आंदोलन के लिये वैसे काम न करें जैसे कि पहले करते रहे थे। 9 अगस्त से बाबा रामदेव भी अपना आंदोलन चलाने वाले हैं। वह इस समय देश में लगातार इसका प्रचार कर रहे हैं। उनके इस आंदोलन की स्थिति पर भी लिखेंगे पर पहले अवलोकन करें।
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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