भेड़ों की तरह हांका जा सकता है,
सपने बेचना आना चाहिए।
लोगों की आंखें खुली रहें
पर देख न सकें,
कान बजते रहें
गाना सुर में हो या बेसुर
गाना आना चाहिए।
अपने होश को
जिंदा रखो हमेशा
कर लो दुनियां मुट्ठी में
ज़माने को बेहोश करना आना चाहिए।
———
चाहे जो भाव खरीदो
सपने बाजार में बिकतें,
मगर सच के आगे नहीं टिकते हैं,
सौदागर खेलते हैं जज़्बातों से
उनके मातहत कलमकार
दाम लेकर ही ख्वाब लिखते हैं।
पर्दे की हकीकत
जमीन पर नहीं आती
भले ही अरमान पूरे होते दिखते हैं।
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writer and editor-Deepak Bharatdeep,Gwalior, madhyapradesh
http://dpkraj.blogspot.com
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very nice