अपने को नायक दिखाने के लिये
उन्होंने बहुत सारे जुटा लिये
किराये पर खलनायक,
अपने गीत गंवाने के लिये
खरीद लिये हैं गायक।
यकीन अब उन पर नहीं होता
जो जमाने का खैरख्वाह
होने का दावा करते हैं
अपनी ताकत दिखाने के लिये
बनते हैं मुसीबतों को लाने में वही सहायक।
——————–
धोखे, चाल और बेईमानी का
अपने दिमाग में लिये
बढ़ा रहे हैं वह अपना हर कदम,
अपनी जुबान से निकले लफ्ज़ों
और आंखों के इशारो से
जमाने का भला करने का पैदा कर रहे वहम।
भले वह सोचते हों मूर्ख लोगों को
पर हम तोलने में लगे हैं यह कि
कौन होगा उनमें से बुरा कम,
किसे लूटने दें खजाना
कौन पूरा लूटेगा
कौन कुछ छोड़ने के लिये
कम लगायेगा दम।
———-
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
————————-
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका