संत शिरोमणि कबीर दास जी कहते हैं कि
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कबीर गर्व न कीजिए, ऊंचा देखि आवास
काल परौं भूईं लेटना, ऊपर जमसी घास
भावार्थ-अपना शानदार मकान और शानशौकत देख कर अपने मन में अभिमान मत पालो जब देह से आत्मा निकल जाती हैं तो देह जमीन पर रख दी जाती है और ऊपर से घास रख दी जाती है।
आज के संदर्भ में व्याख्या-यह कोई नैराश्यवादी विचार नहीं है बल्कि एक सत्य दर्शन है। चाहे अमीर हो या गरीब उसका अंत एक जैसा ही है। अगर इसे समझ लिया जाये तो कभी न तो दिखावटी खुशी होगी न मानसिक संताप। सबमें आत्मा का स्वरूप एक जैसा है पर जो लोग जीवन के सत्य को समझ लेते हैं वह सबके साथ समान व्यवहार करते हैं। हम जब किसी अमीर को देखते हैं तो उसको चमत्कृत दृष्टि से देखते हैं और कोई गरीब हमारे सामने होता है तो उसे हेय दृष्टि से देखते हैं। यह हमारे अज्ञान का प्रतीक है। यह अज्ञान हमारे लिए कष्टकारक होता है। जब थोडा धन आता है तो मन में अंहकार आ जाता है और अगर नहीं होता तो निराशा में घिर जाते हैं और अपने अन्दर मौजूद आत्मा को नहीं जान पाते। यह आत्मा जब हमारी देह से निकल जाता है तो फिर कौन इस शरीर को पूछता है, यह अन्य लोगों की मृतक देह की स्थिति को देख सीख लेना चाहिये।
कई शानदार मकान बनते हैं पर समय के अनुसार सभी पुराने हो जाते हैं। कई महल ढह गये और कई राजा और जमींदार उसमें रहते हुए पुजे पर समय की धारा उनको बहा ले गयी। इनमें से कई का नाम लोग याद तक नहीं करते। हां, इतिहास उन लोगों को याद करता है जो समाज को कुछ दे जाते हैं। वैसे अपने इहकाल में भी किसी धनी को वही लोग सम्मान देते हैं जो उससे स्वार्थ की पूर्ति करते हैं पर जो ज्ञानी,प्रतिभाशाली और दयालु है समाज उसको वैसे ही सम्मान देता है यह जाने बगैर कि उसका घर कैसा है?
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