संत कबीर के दोहे:त्रिगुणी मायावृक्ष के नीचे सब ले रहे साँस


संत शिरोमणि कबीरदास कहते हैं कि
————————

तीन गुनन की बादरी, ज्यों तरुवर की छाहिं
बाहर रहे सौ ऊबरे, भींजैं मंदिर माहिं

तीन गुणों वाली माया के नीचे ही सभी प्राणी सांस ले रहे हैं। यह एक तरह का वृक्ष है जो इसकी छांव से बाहर रहेगा वही भक्ति की वर्षा का आनंद उठा पायेगा।

जिहि सर घड़ा न डूबता, मैंगल मलि मलि न्हाय
देवल बूड़ा कलस सौं, पंछि पियासा जाय
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि जहां कभी सर और घड़ा नहीं डूबता वहां वहां मस्त हाथी नहाकर चला जाता है। जहां कलसी डूब जाती है वहां से पंछी प्यासा चला गया।

संपादकीय व्याख्या-यहां भक्ति और ज्ञान के बारे में कबीरदास जी ने व्यंजना विद्या में अपनी बात रखी है। वह कहते हैं कि प्रारंभ में आदमी का मन भगवान की भक्ति में इतनी आसानी से नहीं लगता। उसे अपने अंदर दृढ़ संकल्प धारण करना पड़ता है। ज्ञान और भक्ति की बात सुनते ही आदमी अपना मूंह फेर लेता है क्योंकि उसका मन तोत्रिगुणी माया में व्याप्त होता है। यह विषयासक्ति उसे भक्ति और ज्ञान से दूर रहने को विवश करती है ऐसे वह भगवान का नाम सुनते ही कान भी बंद कर लेता है। जब उसका मन भक्ति और ज्ञान में रमता है तब वही आदमी संपूर्ण रूप से उसके आंनद में लिप्त हो जाता है-अर्थात जहां सिर रूपी घड़ा नहीं डूबता था ज्ञान प्राप्त होने पर वहां लंबा-चौड़ा हाथी नहाकर चला जाता है। जिसे ज्ञान नहीं है वह हमेशा ही प्यासा रहता है। माया के फेरे में ही अपना जीवन गुजार देता है। इस त्रिगुणी माया की छांव में जो व्यक्ति बैठा रहेगा वह भक्ति कभी नहीं प्राप्त कर सकता है।
——————-

यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्दलेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

Post a comment or leave a trackback: Trackback URL.

एक उत्तर दें

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  बदले )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  बदले )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  बदले )

Connecting to %s

%d bloggers like this: