फंदेबाज आया और बोला
‘दीपक बापू, तुम क्रिकेट जरूर देखा करो
अरे, तुम इस बात की चिंता क्यांे करते हो कि
कौन टीम जीत रही है और कौन हार
तुम तो देखो उसमे नृत्य और गाने जैसे चित्रहार
इसीलिये तो क्रिकेट और फिल्म को मिक्स किया है
खेल भी होगा और साथ में मनोरंजन का भी व्यापार
यह क्या रेडियो पर गाने सुनते हो
और ठोकते हो ब्लाग पर हास्य कविता
तुम्हारे पाठक तो उधर ही है
जहां है क्रिकेट की बहार’’
अपने चश्में और नाक के बीच से
आंखों से झांकते हुए उसे घूरा
और फिर कहैं दीपक बापू
‘तुमने क्रिकेट कितनी खेली होगी
जितनी हमने झेली होगी
अगर उसमें वक्त नहीं खराब लोग नहीं करवाते
तो हम आज प्रेमचंद जैसे कहलाते
बैट किसी के हाथ में खेलता कोई और है
बाल जिसके हाथ में होती
वह फैंकता नजर आता है
विकेट लेता कोई और है
जब से सुना यह हमने
उतर गया क्रिकेट का नशा
अब तो हास्य कविता में मन है बसा
यह डांस देखने के लिये बहुत चैनल है
फिर क्रिकेट के साथ क्या देखना
दिखा रहे हैं जो लोग
उनका खेल से क्या वास्ता
उनका तो लोगों की जेब पर जोर है
अब नहीं उठा सकते क्रिकेट के मनोरंजन का बोझ
पाठक जब देख रहे हैं क्रिकेट
तो हम ठोक देंगे कोई कविता
मैच देखने के बाद सबकी हालत तो
वैसे ही हो जाती है
जैसे नाचने के बाद मैले पैर
देखकर रोता मोर है
फिर मन बहलाने के लिये हमारे पास तो
अपने पास शब्दों का है बहुत भंडार
लिख-लिखकर होती जा रही अपनी
हास्य कविता की पैनी धार
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टिप्पणियाँ
अच्छी कविता.
बढ़िया रचना है