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संत कबीर वाणी:बुगली नीर बिटालिया
बुगली नीर बिटालिया, सायर सायर चढ़या कलंक
और पखेरू पी गये, हंस न बौवे चंच
बुगले ने चौंच डुबोकर सागर का पानी जूठाकर डाला। सागर सारा ही कलंकित हो गया और दूरे पक्षी उसे पी-पीकर उड़ गये, पर हाँ ही ऐसा है जो अपनी चौच उसमें नहीं डुबौता।
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